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10-May-2025 08:12 PM
By First Bihar
GAYA: गया जिले के मानपुर थाना क्षेत्र अंतर्गत बुनियादगंज वार्ड संख्या 47 स्थित दहियारी टोला में एक बार फिर निजी अस्पताल में इलाज में लापरवाही का मामला सामने आया है। जहां बीडी हॉस्पिटल में भर्ती कराई गई 33 वर्षीय खुशबू कुमारी की इलाज के दौरान संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। घटना से गुस्साए परिजनों ने अस्पताल प्रशासन के खिलाफ जमकर विरोध किया और मुख्य सड़क को घंटों जाम कर दिया।
इलाज के दौरान इंजेक्शन देने के बाद बिगड़ी स्थिति
मृतका के परिजनों ने आरोप लगाया है कि खुशबू को 9 मई की रात करीब 8 बजे बीडी हॉस्पिटल में स्टोन (गुर्दे की पथरी) के इलाज के लिए भर्ती कराया गया था। खुशबू के पिता बसंत यादव और बहन सोनम कुमारी के अनुसार, डॉक्टरों ने मरीज को एक इंजेक्शन दिया, जिसके बाद वह बेहोश हो गई और फिर होश में नहीं आई। हालत बिगड़ने के कुछ समय बाद अस्पताल का पूरा स्टाफ अस्पताल से गायब हो गया, जिससे परिजनों में हड़कंप मच गया।
फर्जीवाड़े का आरोप, लाइसेंस व डिग्री की जांच की मांग
परिजनों ने आरोप लगाया कि बीडी हॉस्पिटल बिना लाइसेंस और बिना प्रमाणित मेडिकल स्टाफ के संचालित हो रहा है। सोनम कुमारी ने दावा किया कि अस्पताल के अधिकतर डॉक्टर और कर्मचारी फर्जी हैं, जिनके पास कोई मान्यता प्राप्त डिग्री नहीं है। उन्होंने प्रशासन से मांग की है कि अस्पताल की पूरी जांच कराई जाए और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो।
गुस्साए लोगों ने किया सड़क जाम हंगामा
मौत की खबर फैलते ही गुस्साए परिजनों और स्थानीय लोगों ने अस्पताल के सामने की सड़क को दो घंटे तक जाम कर दिया। मौके पर बुनियादगंज थाना प्रभारी धन्नु यादव अपनी टीम के साथ पहुंचे और लोगों को समझा-बुझाकर मामला शांत कराया। पुलिस ने शव को मगध मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल भेज दिया है और कहा है कि परिजनों से लिखित शिकायत मिलने के बाद उचित कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
मृतका खुशबू कुमारी, निवासी रामपुर थाना क्षेत्र के वार्ड संख्या 31, रामपुर मोहल्ला, अपने पीछे तीन मासूम बच्चों को छोड़ गई हैं। इनमें एक तीन वर्षीय पुत्र ऋषभ कुमार, और दो बेटियां ग्यारह वर्षीय राशि कुमारी व दस वर्षीय ट्विंकल कुमारी शामिल हैं। खुशबू के पति स्वर्गीय राकेश यादव की कुछ वर्ष पूर्व मृत्यु हो चुकी थी। इस त्रासदी से परिवार पूरी तरह टूट चुका है।
गया के बीडी हॉस्पिटल में पहले भी इलाज में लापरवाही का आरोप लग चुका हैं, जिसमें महिलाओं और बच्चों की जान जा चुकी है। बावजूद इसके, प्रशासन की ओर से अब तक कोई सख्त कदम नहीं उठाया गया है। यह मामला न केवल चिकित्सा संस्थानों की अनियमितता को उजागर करता है, बल्कि यह भी बताता है कि निजी स्वास्थ्य सेवाओं पर सरकारी निगरानी कितनी ढीली है..