Bihar Election 2025: ‘बिहार के बच्चे ट्रेनों में धक्के खा रहे हैं’, प्रशांत किशोर का पीएम मोदी और अमित शाह पर हमला Bihar Election 2025: ‘बिहार के बच्चे ट्रेनों में धक्के खा रहे हैं’, प्रशांत किशोर का पीएम मोदी और अमित शाह पर हमला एक बोरी सिक्का लेकर बेटी को स्कूटी दिलाने पहुंचा पिता, शोरूम के कर्मचारियों ने किया स्वागत Bihar News: बिहार में चेकिंग के दौरान CRPF जवानों और दारोगा के परिवार के बीच मारपीट, बीच सड़क पर खूब चले लात-घूंसे; वीडियो वायरल Bihar Election 2025: ‘सरकार बनी तो 20 महीने में चीनी मिल चालू करेंगे’, दरभंगा में तेजस्वी यादव की बड़ी घोषणा Bihar Election 2025: ‘सरकार बनी तो 20 महीने में चीनी मिल चालू करेंगे’, दरभंगा में तेजस्वी यादव की बड़ी घोषणा मंत्री अशोक चौधरी और JDU महासचिव रंजीत झा का जहानाबाद में जनसंपर्क, कहा- CM नीतीश के नेतृत्व में विकसित बिहार का सपना हो रहा साकार Bihar Election 2025: मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव की दहाड़, नाम लिए बिना पाकिस्तान को कुत्ते की पूंछ बताया Bihar Election 2025: मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव की दहाड़, नाम लिए बिना पाकिस्तान को कुत्ते की पूंछ बताया देश मे अमन शांति बनाए रखने के लिए महागठबंधन की सरकार जरूरी: मुकेश सहनी
1st Bihar Published by: FIRST BIHAR Updated Mon, 10 Feb 2025 02:07:33 PM IST
जेडीयू का खुलासा - फ़ोटो google
Bihar Politics: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू पिछले कुछ दिनों से प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी के लिए हो रही फंडिंग पर सवाल उठा रही है। जेडीयू ने एक बार फिर से जन सुराज पार्टी और उसके नेता प्रशांत किशोर के दावों की हकीकत बताया है। जेडीयू ने दावा किया है कि प्रशांत किशोर बिहार में फंडिंग का बड़ा खेल खेल रहे हैं। जेडीयू ने जन सुराज पार्टी के वित्तीय स्त्रोतों पर सवाल उठाए हैं।
दरअसल, जेडीयू के मुख्य प्रवक्ता और बिहार विधान परिषद के सदस्य नीरज कुमार एवं जदयू नेता अजीत पटेल ने प्रशांत किशोर की राजनीतिक गतिविधियों एवं जन सुराज और उसकी कार्यप्रणाली पर गंभीर संदेह जताया है। उन्होंने कहा कि जन सुराज पार्टी में राष्ट्रीय अध्यक्ष का चेहरा तक सामने नहीं आता, प्रशांत किशोर स्वयं को पार्टी का संरक्षक बताते हैं, लेकिन चुनाव आयोग के दस्तावेजों में उनका नाम दर्ज नहीं है। इससे पार्टी के वास्तविक नेतृत्व और नियंत्रण को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है।
जेडीयू ने दावा किया है कि प्रशांत किशोर की पार्टी को प्रत्यक्ष रूप से फंडिंग नहीं मिल रही, बल्कि 'Joy of Giving Global Foundation' नामक NGO को आर्थिक सहायता प्राप्त हो रही है। इस NGO का वित्तीय प्रबंधन संदिग्ध व्यक्तियों के हाथों में है, जो बार-बार अपने निदेशकों को बदलते रहते हैं। राजनीतिक उद्देश्यों के लिए NGO का इस्तेमाल कानूनी और नैतिक रूप से गलत है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में इस NGO को 48.75 करोड़ रुपये की डोनेशन प्राप्त हुई, जिसमें सबसे बड़ा डोनेशन (₹14 करोड़) रामसेतु इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड से आया है। बिहार की राजनीति के लिए ज्यादातर चंदा तेलंगाना और हैदराबाद की कंपनियों से क्यों आ रहा है, यह भी एक महत्वपूर्ण प्रश्न है।
जेडीयू नेता ने दावा किया है कि कई कंपनियों की वास्तविक पूंजी बहुत कम है, लेकिन उन्होंने करोड़ों रुपये का दान दिया है। 'रामसेतु इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड' जैसी कंपनियों के नाम और निदेशक बार-बार बदले गए हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि इन कंपनियों के माध्यम से काले धन को सफेद किया जा रहा है। प्रशांत किशोर खुद को गांधीवादी बताते हैं, लेकिन उनकी पदयात्रा पर करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं, जबकि गांधी मैदान में दरियां और कंबल के भाड़े का भुगतान तक नहीं किया गया। Joy of Giving Global Foundation के माध्यम से फंडिंग कर पब्लिसिटी की जा रही है, जिससे यह पूरी प्रक्रिया संदेह के घेरे में आती है।
उन्होंने कहा है कि Joy of Giving Global Foundation एक चैरिटेबल संस्था के रूप में पंजीकृत है, लेकिन इसे राजनीतिक कार्यों में लिप्त पाया गया है। इसके निदेशक हर 2-3 वर्षों में बदल दिए जाते हैं, जिससे जवाबदेही तय न हो सके। इस NGO के माध्यम से प्रशांत किशोर की पार्टी को अपारदर्शी रूप से फंडिंग दी जा रही है। यदि प्रशांत किशोर पारदर्शिता की बात करते हैं, तो उन्हें अपनी पार्टी की वित्तीय जानकारी सार्वजनिक करनी चाहिए। यह भी संदेह उत्पन्न होता है कि क्या प्रशांत किशोर बिहार में कॉर्पोरेट लॉबी का नया राजनीतिक मॉडल ला रहे हैं ? क्या यह 1857 से पहले के ईस्ट इंडिया कंपनी के मॉडल की पुनरावृत्ति है? बिहार की जनता कॉर्पोरेट द्वारा राजनीति के नियंत्रण को स्वीकार नहीं करेगी।
जेडीयू ने कहा है कि प्रशांत किशोर द्वारा प्रस्तुत राजनीतिक बदलाव का मॉडल संदेह के घेरे में है। यदि वे सच में बिहार के भविष्य के लिए काम कर रहे हैं, तो उन्हें अपनी पार्टी की वित्तीय पारदर्शिता सुनिश्चित करनी चाहिए। अन्यथा, यह पूरा अभियान सिर्फ एक राजनीतिक स्टंट और कॉर्पोरेट लॉबी का खेल प्रतीत होता है। बिहार की जनता को अब यह तय करना होगा कि उन्हें पारदर्शिता चाहिए या एक और राजनीतिक ड्रामा।