PATNA : इस वक्त एक ताजा खबर बिहार के सियासी गलियारे से सामने आ रही है. बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है. सीएम नीतीश को लिखे पत्र में तेजस्वी यादव ने उनके सामने तीन बड़ी मांगों को रखा है. तेजस्वी ने लोजपा के संस्थापक और पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान और आरजेडी के कद्दावर नेता रहे डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह की आदमकद प्रतिमा स्थापित करने की मांग की है.
इससे पहले गुरूवार को भी नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने मीडिया के जरिए नीतीश सरकार के सामने इन मांगों को रखा था. उन्होंने कहा था कि बिहार की राजनीति में अपनी अमिट छाप छोड़ने वाले इन दोनों नेताओं की प्रतिमा स्थापित होनी चाहिए और साथ ही इनकी जयंती या पुण्यतिथि पर राजकीय समारोह का आयोजन हो. इसके अलावा तेजस्वी यादव ने राज्य सरकार से यह मांग की थी कि नीतीश सरकार रघुवंश बाबू के उन मांगों को पूरा करे, जो उन्होंने अपने आखिरी समय में मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में की थी.
शुक्रवार को तेजस्वी ने सीएम नीतीश को जो पत्र भेजा, उसमें लिखा है कि "स्व० डॉक्टर रघुवंश प्रसाद सिंह एवं स्व० रामविलास पासवान जी दोनों ही राज्य के महान विभूति होने के साथ-साथ प्रखर समाजवादी नेता थे. दोनों ही राजनेताओं ने अपने सामाजिक सरोकारों और सक्रिय राजनीतिक जीवन के माध्यम से बिहार राज्य की उल्लेखनीय सेवा की. दोनों बिहार के ऐसे सपूत रहे हैं जिनके व्यक्तित्व और कृतित्व से हम सभी बिहारवासी सदा ऋणी रहेंगे."
उन्होंने आगे लिखा कि "निधन से कुछ दिन पूर्व स्व० डॉ रघुवंश बाबू ने आपको (मुख्यमंत्री को) सम्बोधित पत्र के माध्यम से अपनी कुछ माँगे पूर्ण करने की इच्छा व्यक्त की थी. मुझे विश्वास है कि आप उन माँगों को पूर्ण करने हेतु आवश्यक कदम उठा रहे होंगे. रघुवंश बाबू की अंतिम इच्छाओं को सम्मान देते हुए उन्हें पूरा करना ही उनके प्रति हमलोगों की सच्ची श्रद्धांजलि होगी."
"इसी प्रकार स्व० रामविलास पासवान जी सामाजिक न्याय, समतावादी विकास और समाजवाद के प्रबल पक्षधर थे. उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन वंचितों उपेक्षितों के सामाजिक उत्थान, संघर्ष, रक्षा और विकास के लिए समर्पित किया. वो बिहार के विकास के लिए सदैव संघर्षरत रहे. इसलिए विनम्र अनुरोध है कि कृपया स्व० रघुवंश बाबू और स्व० रामविलास पासवान जी की राज्य में आदमकद प्रतिमा स्थापित करते हुए उनकी जयंती और पुण्यतिथि को राजकीय समारोह घोषित किया जाए."
गौरतलब हो कि 13 सितंबर 2020, इतिहास की तारीख का वो दिन था, जिस दिन लोकतंत्र की जननी बिहार के वैशाली क्षेत्र से आने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री और राजद के कद्दावर नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने दुनिया को अलविदा कह दिया. जीवन के आखिरी समय में इस दुनिया को अलविदा कहने से महज तीन दिन पहले 10 सितंबर को रघुवंश बाबू ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को कई पन्नों का पत्र लिखा और उन्होंने अपनी आखिरी इच्छाएं व्यक्त की. जीवन के आखिरी पड़ाव पर रघुवंश बाबू का सबसे बड़ा सपना ये रहा कि बिहार की राजगद्दी पर बैठने वाला व्यक्ति वर्धमान महावीर की जन्मस्थली, गौतम बुद्ध की कर्मस्थली और लोकतंत्र की जननी वैशाली में गणतंत्र दिवस के दिन झंडोतोलन करे.
दिवंगत नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने मरने से पहले बिहार के सीएम नीतीश कुमार को लिखे पत्र लिखा था और कहा था कि 26 जनवरी के दिन गणतंत्र दिवस के अवसर पर मुख्यमंत्री वैशाली में झंडा फहराएं. नीतीश को लिखे पत्र में उन्होंने कहा था कि "वैशाली जनतंत्र की जननी है. विश्व का प्रथम गणतंत्र है, लेकिन इसके लिए सरकार ने कुछ नहीं किया है. इसलिए मेरा आग्रह है कि झारखंड राज्य बनने से पहले 15 अगस्त को मुख्यमंत्री पटना में और 26 जनवरी को रांची में राष्ट्रध्वज फहराते थे. इसी प्रकार 26 जनवरी को पटना में राज्यपाल और मुख्यमंत्री रांची में राष्ट्रध्वज फहराते थे. उसी तरह 15 अगस्त को मुख्यमंत्री पटना में और राज्यपाल विश्व के प्रथम गणतंत्र वैशाली में राष्ट्रध्वज फहराने का फैसला कर इतिहास की रचना करें. इसी प्रकार 26 जनवरी को राज्यपाल पटना में और मुख्यमंत्री वैशाली गढ़ के मैदान में राष्ट्रध्वज फहराएं. आप 26 जनवरी, 2021 को वैशाली में राष्ट्रध्वज फहराएं. इस आशय की सारी औपचारिकताएं पूरी हैं. फाइल मंत्रिमंडल सचिवालय में लंबित है."
फर्स्ट बिहार आपको पहले भी बता चुका है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी महान समाजवादी नेता रधुवंश प्रसाद सिंह के निधन पर गहरी शोक संवेदना व्यक्त की थी और उन्होंने कहा था कि उनके जाने से बिहार और देश की राजनीति में शून्य पैदा हो गया. उन्होंने जमीन से जुड़ी राजनीति की. वे गरीबी को करीब से जाननेवाले नेता थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि मैं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से आग्रह करता हूं कि पिछले तीन-चार दिनों में अपने पत्र में रघुवंश बाबू ने वैशाली के बारे में जो भी चिंता व्यक्त की उसे सबलोग मिलकर पूरा करने का हरसंभव प्रयास करें. उन्होंने कहा था कि इन दिनों रघुवंश बाबू के भीतर कुछ बातों को लेकर मंथन चल रहा था.
पीएम मोदी ने आगे कहा था कि रघुवंश जी ने जिन आदर्शो को लेकर राजनीति की और जिसके साथ चले थे, उनके साथ रहना संभव नहीं हो पा रहा था. अस्वस्थ होते हुए भी उन्हें अपने क्षेत्र वैशाली की भी उतनी ही चिंता थी. उन्होंने अपनी चिंता बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी को पत्र लिखकर व्यक्त की. उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का ध्यान वैशाली के विकास की ओर भी आकृष्ट कराया है. मेरा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से आग्रह है कि उन्होंने पत्र में जो भी इच्छा जताई है, उसे मैं और आप मिलकर पूरा करें. उनके सपनों और विकास कार्यो को हमलोग पूरा करेंगे.
रघुवंश बाबू की 5 आखिरी इच्छाएं -
1. वैशाली की पहचान दुनिया में गणतंत्र की जननी के रूप में है. इसलिए वैशाली को उसी रूप में सम्मान मिले. 26 जनवरी को मुख्यमंत्री खुद यहां राष्ट्रीय ध्वज फहराएं और राजकीय समारोह का आयोजन हो. संयुक्त बिहार में गणतंत्र दिवस पर मुख्यमंत्री रांची में ध्वज फहराते थे और राज्यपाल पटना में. रांची की जगह अब वैशाली को शामिल किया जाए.
2. भगवान बुद्ध ने वैशाली छोड़ते समय स्मृति के रूप में एक भिक्षा पात्र दिया था, जो अभी अफगानिस्तान में है. रघुवंश इसकी वापसी चाहते थे. लोकसभा में भी मुद्दा उठा चुके थे. आश्वासन तो मिला था. लेकिन समाधान नहीं हो सका. अपनी आखिरी इच्छा में रघुवंश ने नीतीश कुमार से आग्रह किया था कि वो पहल करें और भिक्षा पात्र को वापस लाएं.
3. रघुवंश मजदूरों की रोजगार गारंटी के सूत्रधार थे. इसलिए कृषि कार्य में मजदूरों की कमी को देखते हुए वह चाहते थे कि मनरेगा के तहत सभी किसानों के खेतों में काम कराने की व्यवस्था की जाए. इसमें आधी मजदूरी सरकार की ओर से और आधी किसानों की ओर से देने का प्रावधान किया जाए और मुखिया को नोडल एजेंसी बनाया जाए.
4. रघुवश प्रसाद सिंह ये भी चाहते थे कि वैशाली के तालाबों को जल-जीवन-हरियाली अभियान से जोड़ा जाये. साथ ही विश्व के प्रथम गणतंत्र के सम्मान में महात्मा गांधी सेतु रोड में हाजीपुर के पास भव्य द्वार बनाकर मोटे अक्षरों में विश्व का प्रथम गणतंत्र वैशाली द्वार अंकित कराया जाये.
5. रघुवंश बाबू ने राष्ट्रकवि दिनकर की वैशाली से संबंधित कविताओं को जगह-जगह मोटे अक्षरों में लिखवाने का आग्रह किया था. ताकि आने-जाने वाले लोग दूर से ही पढ़ सकें. उन्होंने बज्जीनां सत अपरीहानियां धम्मा के अनुसार सातो धर्मो का उल्लेख जगह-जगह बड़ी दीवार पर पाली, हिंदी और अंग्रेजी में लिखवाने और वैशाली के उद्धारक जगदीशचंद्र माथुर की प्रतिमा लगाने का भी आग्रह किया था.