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शहीद को सम्मान मिला पर आश्रित को नहीं मिली नौकरी, शहीद की विधवा बोली..बेटा को नौकरी नहीं मिली तो 15 अगस्त को लौटा देंगे सम्मान

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Thu, 27 Jul 2023 04:58:19 PM IST

 शहीद को सम्मान मिला पर आश्रित को नहीं मिली नौकरी, शहीद की विधवा बोली..बेटा को नौकरी नहीं मिली तो 15 अगस्त को लौटा देंगे सम्मान

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MUNGER: पति के शहीद होने के बाद विधवा अपने बेटे को नौकरी दिलाने के लिए दर-दर भटक रही है। उसका कहना है कि पति को सम्मान मिला लेकिन उनके बेटे को आज तक नौकरी नहीं मिल पाई है। यदि बेटे को नौकरी नहीं मिली तो 15 अगस्त को वो मिले सम्मान को लौटा देगी। बता दें पीड़िता ने तमाम अधिकारियों के साथ-साथ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से तक से जनता दरबार में गुहार लगा चुकी है लेकिन आज तक उसे न्याय नहीं मिल पाया है। 


दरअसल लोकसभा चुनाव में उनके पति की ड्यूटी लगी थी। 1996 में मसौढ़ी में चुनाव कराकर वापस लौटने के दौरान लैंडमाइंस ब्लास्ट में बीएमपी-5 में तैनात सिपाही मुंगेर जिलान्तर्गत नयारामनगर थाना क्षेत्र के नौवागढ़ी निवासी राजेश्वर मंडल शहीद हो गए थे। उस समय उनके बच्चे अबोध थे। उस समय शहीद का राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार हुआ था। शहीद की विधवा पत्नी जयमाला देवी को भी पुलिस विभाग के अधिकारियों द्वारा उस समय सम्मानित किया गया था। शहीद के आश्रित को अनुकंपा पर बहाली के लिए पत्र भेजा गया था। 


लेकिन आश्रित के नाबालिग रहने के कारण शहीद की विधवा ने बाल आरक्षी के रूप में बेटे को नौकरी देने का आवेदन दिया था। लेकिन आश्रित को नौकरी आज तक नहीं मिल पाई। शहीद का बड़ा पुत्र नीतेश कुमार आज 28 साल का हो गया है। आश्रित को नौकरी के लिए शहीद की विधवा पत्नी डीजीपी से लेकर मुख्यमंत्री के जनता दरबार सहित सभी वरीय अधिकारियों के यहां चक्कर लगाकर थक चुकी है लेकिन आश्रित को नौकरी आज तक नहीं मिल पाई है। अब तो विभाग ने पत्र भेजकर स्पष्ट कह दिया है कि इस मामले में मुख्यमंत्री ही कुछ कर सकते हैं। 


विभागीय स्तर से अनुकंपा पर आश्रित को नौकरी संभव नहीं है। विभाग द्वारा भेजे गए पत्र के बाद शहीद की विधवा ने बताया कि शहीद सिपाही का परिवार दर-दर की ठोकर खा रहा है। अगर शहीद के आश्रित को अनुकंपा पर नौकरी नहीं मिलती है तो वह शहीद को मिला सम्मान लेकर वो क्या करेगी? 15 अगस्त को वह शहीद को मिला सम्मान वापस करेगी। शहीद की विधवा जयमाला देवी कहती है कि पिछले 26 साल से वह पेंशन और आश्रित को नौकरी के लिए हर जगह का चक्कर लगा कर थक चुकी है। बहुत दौड़ धूप के बाद वर्ष 2011 में पेंशन चालू हुआ लेकिन आश्रित बेटा को नौकरी आज तक नहीं मिल पाई है। जबकि तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने एक आश्रित को नौकरी देने की घोषणा की थी।


फिलहाल शहीद की विधवा अपने तीन पुत्र जो मजदूरी करते हैं उनके साथ किसी तरह गुजर बसर कर रही है और बेटे की नौकरी के इंतजार में बैठी है। 15 अगस्त को वह बहुत बड़ा कदम उठाने जा रही है। पति को मिले मेडल और सम्मान को वह वापस करेगी। क्योंकि अब वह अधिकारियों के यहां फरियाद लगाकर थक चुकी है। पीड़िता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी न्याय की गुहार लगा चुकी है लेकिन आज तक उसे न्याय नहीं मिल सका है।