PATNA: भाइयों के झगड़े का किस्सा तो हर तरफ देखने को मिल जाएगा. चाहे वह कोई आम परिवार हो या फिर बिहार का कोई सियासी कुनबा। लेकिन लोजपा अध्यक्ष रामविलास पासवान और उनके दोनों भाइयों की तिकड़ी ऐसी रही है जिसकी कोई मिसाल देखने को नहीं मिलती। बिहार की सियासत में चट्टानी एकता वाली सबसे मजबूत भाइयों की तिकड़ी आज टूट गई। रामविलास पासवान ने अपने सबसे छोटे भाई रामचंद्र पासवान को हमेशा के लिए खो दिया। खुद रामविलास पासवान के लिए यह गम कितना बड़ा है इसका अंदाजा लगा पाना मुश्किल है।
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सियासत में भाइयों के बीच आपसी प्रेम की ऐसी मिसाल कहीं और देखने को नहीं मिलेगी। साल 1969 में पहली बार विधायक बने रामविलास पासवान ने ना केवल अपनी राजनीति को आगे बढ़ाया बल्कि अपने दोनों छोटे भाइयों को भी सियासी जमीन मुहैया कराई। रामविलास जिस वक्त पहली बार विधानसभा पहुंचे थे उस समय उनके छोटे भाई रामचंद्र पासवान की उम्र केवल 7 साल थी।
बात जब रामचंद्र पासवान के पॉलीटिकल लॉन्चिंग की हुई तो बड़े भाई रामविलास ने दलित सेना का गठन कर दिया। तब रामविलास पासवान जनता दल में हुआ करते थे। रामचंद्र पासवान दलित सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए। दलित सेना बनाए जाने के पीछे सीधा मकसद यह था कि किसी भी राजनीतिक दल में रामचंद्र पासवान की लॉन्चिंग होने के पूर्व उनके साथ एक बड़ा संगठन खड़ा रहे। रामविलास पासवान और उनके परिवार की राजनीति को करीब से देखने वाले जानते हैं कि तीनों भाइयों के बीच प्रेम कितना गहरा रहा है। जब कभी भी रामविलास पासवान दिल्ली से पटना पहुंचे तो लोजपा कार्यालय पहुंचने के साथ अपने दोनों भाइयों से बंद कमरे में मुलाकात किया करते थे। पार्टी की हर बैठक और प्रेस वार्ता में सभी भाई साथ-साथ दिखे। लोजपा कार्यालय में इफ्तार की दावत हो या होली मिलन का आयोजन तीनों भाइयों की तिकड़ी कभी भी अलग नहीं दिखी। उम्र के इस पड़ाव में रामविलास पासवान के लिए अपने छोटे भाई रामचंद्र को खो देना सबसे बड़ा झटका है क्योंकि लोजपा अध्यक्ष को यह बात पता है कि अब उनकी तिकड़ी कभी भी साथ-साथ सियासत करते नहीं दिखेगी।