DESK: कोरोना के कारण पहली बार 2020 में रेलवे की टाइम टेबल नहीं छप पाई है। भारतीय रेलवे के इतिहास में पहली बार यह परम्परा टूटती नजर आ रही है। दरअसल 2020 में कोरोना महामारी ने हर वर्ग और हर क्षेत्र को प्रभावित किया है। यही नहीं कामकाज के तौर तरीकों को भी बदल कर रख दिया है। इसने भारतीय रेलवे को भी नहीं छोड़ा है बल्कि कोरोना काल के दौरान रेलवे की रफ्तार पर भी इसने खासा असर डाला है। रेलवे ने नाम और नंबर बदलकर ट्रेनों का परिचालन तो शुरू कर दिया लेकिन रेलवे के इतिहास में पहली बार रेलवे का वार्षिक टाइम टेबल पर ग्रहण लग गया है। ऐसी स्थिति में रेलवे 2020 में ट्रेनों की समय सारिणी तक नहीं छाप पाई है जबकि 1934 से ही हर साल जून तक टाइम टेबल प्रकाशित हो जाती थी लेकिन इस बार यह परंपरा टूटती नजर आ रही है।
रेलवे के जानकारों के अनुसार रेलवे टाइम टेबल का प्रकाशन 1934 से ही लगातार जारी है। जुलाई महीने तक टाइम टेबल छप जाता था क्योंकि रेलवे में नई समय सारिणी पहली जुलाई से लागू होती थी जिसके बाद नई समय सारिणी स्टालों पर बिकने लगती थी। किसी साल यदि कोई दिक्कत आई तो भी आमतौर पर अगस्त तक इसका प्रकाशन हो जाता था। लेकिन इस बार मई 2020 से ही कोरोना का संक्रमण बढ़ता जा रहा था। जिसे लेकर पूरे देश में लॉकडाउन लागू किया गया इस दौरान ट्रेनों के पहिये थम गए। अनलॉक में ट्रेनें शुरू भी हुईं तो उन्हें स्पेशल के रूप में चलाया जा रहा है। सूत्रों के अनुसार स्पेशल ट्रेनों का किराया बढ़ाकर रेलवे घाटे की भरपाई करने की कोशिशों में जुटा है। ट्रेनों का संचालन कब तक पूरी तरह सामान्य होगा यह अब तक स्पष्ट नहीं है। समय सारिणी नहीं छपने की एक वजह यह भी बताई जाती है।
रेलवे द्वारा जारी टाइम टेबल में स्थानीय ट्रेनों की एक-एक जानकारी होती है। ट्रेनों की टाइमिंग, गाड़ी संख्या, ट्रेनों का ठहराव, शिकायतों के लिए टॉल-फ्री नम्बर भी अंकित रहते हैं। आजादी से पहले एनईआर या आसपास के अन्य रेलवे के पास टाइम टेबल प्रकाशन की व्यवस्था नहीं थी। उस समय टाइम टेबल ढाका से छपकर आता था। यहां एनईआर के रिकॉर्ड में ढाका से प्रकाशित 1934 का टाइम टेबल आज भी मौजूद है। पूर्वोत्तर रेलवे के पूर्व मुख्य परिचालन प्रबंधक राकेश त्रिपाठी का कहना हैं कि रेलवे टाइम टेबल की बहुत ही अहमियत होती है। 37 साल की सेवा में हर वर्ष नियमित रूप से रेलवे का टाइम टेबल प्रकाशित होता रहा है लेकिन कोरोना के कारण 2020 में रेलवे के इतिहास में पहली बार यह परंपरा टूटी है।