Pradosh Vrat: सनातन धर्म में प्रदोष व्रत को अत्यधिक शुभ माना जाता है। इस दिन भगवान शिव की पूजा का विधान है और भक्त कठिन व्रत का पालन करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत को सच्चे मन से करने और शिवलिंग पर विशेष वस्तुएं अर्पित करने से विवाह में आने वाली रुकावटें दूर होती हैं और मनचाहा जीवनसाथी प्राप्त होता है।
उत्तराखंड के ऋषिकेश में स्थित ग्रह स्थानम के ज्योतिषी अखिलेश पांडेय के अनुसार, इस वर्ष पौष माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 28 दिसंबर को सुबह 2:26 बजे शुरू होकर 29 दिसंबर को सुबह 3:32 बजे समाप्त होगी। उदया तिथि के अनुसार, 28 दिसंबर को पौष का पहला और साल का अंतिम प्रदोष व्रत रखा जाएगा। इस बार यह व्रत शनिवार को पड़ रहा है, जिसे शनि प्रदोष व्रत कहा जाता है।
शनि प्रदोष व्रत का महत्व:
शनि प्रदोष व्रत का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि इसमें भगवान शिव के साथ शनि देव की पूजा होती है। शनि देव को न्याय का देवता माना जाता है, और उनका प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर गहरा होता है। यह व्रत शनि के अशुभ प्रभावों को शांत करने और उनकी कृपा पाने का एक प्रभावी उपाय है।
शनि प्रदोष व्रत पर पूजा विधि:
इस दिन सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और शिवलिंग की पूजा करें।
शिवलिंग पर जल अर्पित करते समय “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें।
शिवलिंग पर केसर अर्पित करें, जिससे दरिद्रता दूर होती है और रुके हुए कार्य पूरे होते हैं।
जल में गंगाजल और चावल मिलाकर शिवलिंग पर अर्पित करें। मान्यता है कि इससे कर्ज खत्म होता है और धन लाभ होता है।
व्रत के दौरान संयम और पूर्ण भक्ति का पालन करें।
भूलकर भी न करें ये काम:
शिवलिंग पर हल्दी और सिंदूर चढ़ाना वर्जित है। ये वस्तुएं शिव की पूजा के लिए अशुभ मानी जाती हैं और इनका उपयोग करने से व्रत का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता।
शनि प्रदोष व्रत के लाभ:
यह व्रत न केवल जीवन के कष्टों को दूर करता है, बल्कि सुख-समृद्धि और शांति का भी मार्ग प्रशस्त करता है। जो लोग शनि के अशुभ प्रभावों से परेशान हैं, उन्हें इस व्रत का पालन अवश्य करना चाहिए।