PATNA: 32 साल पुराना मामला, सवा साल पहले कोर्ट ने वारंट जारी किया. 6 महीने बाद पुलिस ने कोर्ट को कहा-चौकीदार से वारंट खो गया. कोर्ट ने फिर से वारंट जारी किया. पुलिस उसे भी दबा कर बैठ गयी. कोर्ट ने तब कुर्की जब्ती का वारंट जारी कर दिया. पुलिस ने उसे भी दबा दिया. ये सारे वारंट तब फाइल में से निकले जब पप्पू यादव को सबक सिखाना जरूरी हो गया था. जन अधिकार पार्टी के अध्यक्ष पप्पू यादव की गिरफ्तारी की इनसाइड स्टोरी ऐसी ही है. कानून के राज के दावों की पोल खोलने वाली इन इनसाइड स्टोरी की फर्स्ट बिहार ने पूरी तफ्तीश की है. जानिये पूरा मामला
क्या है मामला जिसमें पप्पू यादव की गिरफ्तारी हुई
करीब 32 साल पहले 29 जनवरी 1989 मधेपुरा के मुरलीगंज थाने में अपहरण का एक केस दर्ज हुआ. शैलेंद्र यादव नाम के एक व्यक्ति ने केस दर्ज कराया कि पप्पू यादव ने अपने चार साथियों के साथ मिलकर राजकुमार यादव औऱ उमा यादव नाम के दो व्यक्तियों का अपहरण कर लिया है. पुलिस जब तक कुछ कार्रवाई करती उससे पहले अपहृत बताये जा रहे दोनों व्यक्ति सकुशल अपने घर वापस लौट आये.
लेकिन पुलिस का केस चलता रहा. पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज होने के तीन महीने बाद पप्पू यादव को गिरफ्तार कर लिया. इस मामले में कुछ दिनों तक जेल में रहने के बाद पप्पू यादव बेल पर रिहा होकर बाहर चले आय़े. तब तक उनका राजनीतिक सफर भी शुरू हो गया था. पप्पू यादव पहले विधायक बने और फिर सांसद. एक दौर था कि सीमांचल के इलाके में पप्पू यादव के समर्थन के बगैर किसी राजनीतिक पार्टी के लिए जीत हासिल कर पाना मुमकिन नहीं था.
पुलिस ने सवा साल तक वारंट दबाये रखा
जनवरी 1989 में दर्ज हुए मामले में न केस करने वाले एक्टिव थे ना अभियुक्त बनाये गये पप्पू यादव. लेकिन ये मुकदमा मधेपुरा कोर्ट में चल रहा था. मधेपुरा के एसीजेएम प्रथम के कोर्ट में अपहरण के इस मामले पर सुनवाई चल रही थी. इस केट में सुनवाई के दौरान पप्पू यादव हाजिर नहीं हो रहे थे. नाराज कोर्ट ने पिछले 10 फरवरी 2020 को ही पप्पू यादव को गिरफ्तार करने का वारंट जारी कर दिया था. ये वो वक्त था जब पप्पू यादव पटना से लेकर मधेपुरा तक लगातार आवाजाही कर रहे थे. लेकिन पुलिस ने वारंट के आधार पर उनकी गिरफ्तारी नहीं की.
कोर्ट में पुलिस बोली-वारंट खो गया
उधर मधेपुरा के कोर्ट में सुनवाई लगातार जारी थी. वारंट जारी होने के 7 महीने बाद यानि 17 सितंबर 2020 को कोर्ट ने फिर पुलिस से पूछा कि वारंट का क्या हुआ. पुलिस ने कोर्ट में कहा कि वारंट की जो कॉपी अदालत से जारी की गयी थी, वह चौकीदार से खो गया. कोर्ट ने पुलिस को फटकार लगायी औऱ फिर से 17 सितंबर 2020 को वारंट जारी कर दिया. पुलिस पप्पू यादव की गिरफ्तारी का ये वारंट भी दबा कर बैठ गयी. कुछ महीने बाद ही बिहार विधानसभा चुनाव हुआ था. पप्पू यादव पूरे बिहार में घूम रहे थे. मधेपुरा में तो वे चुनाव ही लड़ रहे थे. लेकिन उनकी गिरफ्तारी नहीं हुई.
नीतीश कुमार के कानून के राज में पुलिस की कारगुजारियों की फेहरिस्त यहीं नहीं खत्म हो जाती. पुलिस जब पप्पू यादव को गिरफ्तार नहीं कर पायी तो कोर्ट ने पिछले 22 मार्च 2021 को पप्पू यादव के घर की कुर्की जब्ती करने का वारंट जारी कर दिया. पुलिस वह वारंट भी दबा कर बैठ गयी. सुशासन की पुलिस को शायद सही समय का इंतजार था जब पप्पू यादव को गिरफ्तार किया जा सके.
मंगलवार को पुलिस ने ढूढ कर निकाला वारंट
मंगलवार को भी पप्पू यादव को जब गिरफ्तार किया गया तो मधेपुरा के केस में गिरफ्तारी नहीं हुई थी. पटना पुलिस की पांच थानों की पुलिस डीएसपी के नेतृत्व में पप्पू यादव के घर पर इसलिए पहुंची थी कि पटना पुलिस के पीरबहोर थाने में पप्पू यादव पर पीएमसीएच में हंगामा करने का मुकदमा दर्ज किया था. पप्पू यादव ने पीएमसीएच में मरीजों की बदहाली की खबर जानने के बाद वहां पहुंच कर मरीजों के परिजनों से बात की थी. पुलिस ने इसी गुनाह के लिए पप्पू यादव के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था औऱ पांच थानों की पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया था.
थाने में पटना पुलिस को ये लगा कि पीएमसीएच में हंगामे का जो केस दर्ज हुआ है उसमें तो पप्पू यादव को जेल भेजा ही नहीं जा सकता. वो जमानतीय मुकदमा है औऱ उसमें थाने से ही बेल दे देना पड़ेगा. लेकिन बिहार का पूरा पुलिस महकमा पप्पू यादव को सबक सिखाने पर आमदा था. लिहाजा आनन फानन में उन जिलों में पप्पू यादव के खिलाफ मामले ढूढवाये जाने लगे जहां पहले कभी पप्पू के खिलाफ केस दर्ज हुआ था. मधेपुरा में 32 साल पुराना मामला मिल गया. पप्पू की गिरफ्तारी के काफी देर बाद मधेपुरा पुलिस को तत्काल पटना पहुंचने को कहा गया. मधेपुरा पुलिस पटना पहुंची औऱ आखिरकार पप्पू यादव को जेल भेजने का टारगेट पूरा कर ही लिया गया.