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पंडा समाज ने उठाया परंपरा को जीवित रखने का बीड़ा, अपने पितरों का कर रहे पिंडदान

1st Bihar Published by: PANKAJ KUMAR Updated Sat, 05 Sep 2020 01:38:00 PM IST

पंडा समाज ने उठाया परंपरा को जीवित रखने का बीड़ा, अपने पितरों का कर रहे पिंडदान

GAYA : बिहार में कोविड-19 को लेकर संक्रमण के रोकथाम के मद्देनजर राज्य सरकार व जिला प्रसाशन द्वारा इस बार गया में होने वाले विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला को रद्द कर दिया गया है. पितृपक्ष मेला रद्द किए जाने के बाद तीर्थयात्रियों व पिंडदानियों के आने पर रोक लग गयी है. वर्षों से चली आ रही धार्मिक मान्यताओं व परंपरा को जीवित रखने के उद्देश्य से विष्णुपद क्षेत्र के गयापाल पंडा खुद अपने पितरों का 15 दिनों का पिंडदान कर रहे है. इस दौरान विभिन्न पिंडवेदियों पर पिंडदान व कर्मकांड किया जाएगा. वहीं कोरोना को लेकर विष्णुपद मंदिर बंद होने और पिंडदानियों के आगमन पर रोक के बाद लॉकडाउन- 1 से ही गया पाल पंडा खुद पिंडदान कर रहे है. 


विभिन्न धार्मिक ग्रंथो में वर्णित है कि गया में पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष व सद्गति की प्राप्ति होती है. यही कारण है कि अश्विन कृष्ण पक्ष में 15 दिनों के पितृपक्ष मेला का आयोजन किया जाता है. इस दौरान देश-विदेश से लाखों की संख्या में हिन्दू सनातन धर्मावलम्बी यहां आते हैं और अपने पितरों को मोक्ष दिलाने की कामना को लेकर पिंडदान, तर्पण व कर्मकांडो को करते है. ग्रंथो में यह वर्णित है कि भगवान राम व सीता ने अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान किया था. 


वहीं पिंडदान करने वाले पंडा समाज के विवेक भैया मोती वाले पंडा ने बताया की हमलोग अपने पितरों का श्राद्ध कर रहे हैं. वेद और पुराणों में यह वर्णित है कि पुत्र के तीन कर्तव्य हैं जिनको पालन करना है. पहला कर्तव्य है अपने माता पिता की बातों का पालन करना, दूसरा है जब माता-पिता अपना शरीर छोड़ देते हैं तो अपने माता-पिता का क्रियाक्रम करना और तीसरा कर्तव्य है गया जी में अपने पितरों का पिंडदान करना. लेकिन कोरोना महामारी को लेकर जिस गया जी में देश-विदेश से लोग अपने पितरों का पिंडदान करने आते थे वो इस बार नहीं आ पाए हैं. इसलिए परंपरा को जीवित रखने का संकल्प लेकर हमलोग पिंडदान कर रहे हैं.