PATNA: बिहार सरकार के एक और फैसले पर सियासी घमासान शुरू हो सकता है। यह फैसला राज्य के चार लाख नियोजित शिक्षकों को राज्य कर्मी का दर्जा देने से जुड़ा है। राज्य सरकार ने इन्हें राज्य कर्मी का दर्जा देने से पहले सक्षमता परीक्षा लेने का निर्णय लिया है। ऐसे में शिक्षक विरोध कर रहे हैं। अब इन टीचरों के साथ राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा भी खड़ी नजर आ रही है।
भाजपा विधानमंडल दल के नेता विजय सिन्हा और प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी का कहना है कि नियोजित शिक्षक अपने अधिकार को लेकर संघर्षरत हैं। वर्ष 2006 से नियोजित शिक्षकों की ओर से अपनी बात सरकार तक पहुंचाने के लिए लगातार आंदोलन, प्रदर्शन और हड़ताल जैसे माध्यम अपनाए जा रहे हैं।
नियोजित शिक्षक सरकार के आश्वासनों के बीच अभी तक झूलते एवं उलझते रहे हैं। बीते 33 वर्षों से राज्य में शिक्षा व शिक्षकों की स्थिति लचर बनी हुई है।
वहीं, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) भी नियोजित शिक्षकों के हित में आवाज बुलंद करने की रणनीति बना रही है। पिछले दिनों शिक्षा विभाग द्वारा कई छुट्टियां रद्द कर दी गई थीं। इस मामले में भी भाजपा के आक्रामक रुख ने राज्य सरकार को निर्णय वापस लेने पर बाध्य कर दिया था।
उधर नियोजित शिक्षकों का कहना है कि, बिहार सरकार की ओर से शिक्षकों को राज्य कर्मचारी का दर्जा देने का जो आदेश जारी किया गया है, वह काफी हास्यास्पद और गैर जवाबदेह है। इस अलोकतांत्रिक निर्णय को तत्काल वापस लेना चाहिए।