विधानसभा उप चुनाव में हार कर भी जीती भाजपा, BJP से पंगा नीतीश कुमार को भारी पड़ा

विधानसभा उप चुनाव में हार कर भी जीती भाजपा, BJP से पंगा नीतीश कुमार को भारी पड़ा

PATNA: बिहार की विधानसभा की पांच और लोकसभा की एक सीट पर हुए उप चुनाव में सिर्फ एक सीट पर लड़ रही भाजपा हार कर भी जीत गयी. बीजेपी भले ही किशनगंज सीट हार गयी लेकिन पिछले चुनाव की तुलना में उसका वोट शेयर बढ़ गया. लेकिन सबसे बड़ी बात कि उसने नीतीश कुमार को संदेश दे दिया है-भाजपा से पंगा लेना मंहगा पड़ेगा. उप चुनाव में नीतीश कुमार की करारी हार के पीछे भाजपा कार्यकर्ताओं की नाराजगी भी बड़ा कारण माना जा रहा है.

भाजपा कार्यकर्ताओं की नाराजगी भारी पड़ी

दरअसल उप चुनाव के दौरान ही पटना में पानी से तबाही मची और इसके बाद जदयू-भाजपा में जमकर तू-तू मैं-मैं शुरू हो गयी. दोनों पक्ष से नेता एक दूसरे को देख लेने की धमकी देने लगे. नतीजा ये हुआ कि पूरे राज्य में भाजपा और जदयू के बीच दूरी बढ़ गयी. बाद में अमित शाह ने नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ने का एलान कर मामले को शांत किया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. पूरे उप चुनाव में किसी सीट पर भाजपा-जदयू के बीच तालमेल नहीं बन पाया.

दरौंदा में पूरी जिला भाजपा निर्दलीय उम्मीदवार के साथ थी

दरौंदा में भाजपा नेता कर्णवीर सिंह उर्फ व्यास सिंह चुनाव मैदान में कूद गये. पार्टी ने उन्हें निष्कासित कर दिया लेकिन पूरी सिवान भाजपा व्यास सिंह के पक्ष में काम कर रही थी. पूर्व सांसद ओम प्रकाश यादव से लेकर पार्टी के पूर्व जिलाध्यक्ष मनोज सिंह जैसे नेता खुल कर व्यास सिंह के पक्ष में वोट मांग रहे थे. नतीजा ये हुआ कि व्यास सिंह चुनाव जीत गये. जीत का फासला देखिये. जदयू के अजय सिंह को तकरीबन 24 हजार वोट मिले तो भाजपा के बागी व्यास सिंह को दो गुणा से भी ज्यादा 51 हजार से भी अधिक वोट मिले. 


नाथनगर सीट पर भी भाजपा कार्यकर्ताओं की नाराजगी साफ दिख रही थी. भाजपा के कार्यकर्ता चुनाव से उदासीन थे. जदयू का खेल एक निर्दलीय उम्मीदवार अशोक कुमार ने बिगाड दिया. अशोक कुमार को 11 हजार से ज्यादा वोट आये. स्थानीय लोगों के मुताबिक निर्दलीय प्रत्याशी को आये सारे वोट NDA के ही थे. गौरतलब है कि नाथनगर में जीत-हार का फासला कुछ सौ वोट का रहा. 


बेलहर में भी उदासीन थे भाजपा के वर्कर 

बेलहर के जदयू उम्मीदवार गिरधारी यादव से पहले से ही भाजपा के कार्यकर्ता खफा थे. बची खुची कसर उस बयानबाजी ने कर दी, जो पटना में जलत्रासदी के वक्त हुई. इसके बाद बीजेपी के कार्यकर्ता जदयू के चुनावी अभियान से दूर ही रहे. बीच में सुशील मोदी समेत बीजेपी के कुछ और नेताओं ने जाकर अपनी पार्टी के वर्कर को मनाने की कोशिश की लेकिन JDU-BJP के कार्यकर्ताओं का दिल नहीं मिल पाया. कमोबेश ऐसी ही स्थिति सिमरी बख्तियारपुर में भी थी. बीजेपी ने बिहार के हर क्षेत्र में बूथ पर अपना सेटअप तैयार कर रखा है. लेकिन भाजपा के बूथ मैनेजमेंट सिस्टम ने कहीं भी जदयू के उम्मीदवार के  लिए काम नहीं किया. 


किशनगंज में हार कर भी भाजपा को फायदा

इस उप चुनाव में बीजेपी ने सिर्फ एक सीट पर चुनाव लडा था और वो थी किशनगंज. पार्टी की उम्मीदवार स्वीटी सिंह भले ही तकरीबन 10 हजार वोटों से चुनाव हार गयी. लेकिन उनके वोट पिछले विधानसभा चुनाव से बढ़ गये. 2015 के विधानसभा चुनाव में स्वीटी सिंह ही भाजपा उम्मीदवार थीं और वो 17 हजार 200 वोट से चुनाव हारी थीं. पिछले चुनाव के मुकाबले इस चुनाव में भाजपा का वोट प्रतिशत भी बढ़ गया.


नीतीश के सामने बड़ी चुनौती

उप चुनाव के परिणाम ने नीतीश कुमार को आने वाली चुनौती का संकेत दे दिया है. आगे विधानसभा चुनाव है. सांगठनिक तौर पर जदयू की स्थिति बेहद कमजोर है. जदयू का संगठन ज्यादातर कागज पर सिमटा है. लेकिन भाजपा ने हर विधानसभा क्षेत्र में अपना तंत्र खड़ा कर रखा है. अगर बीजेपी के सिस्टम ने आगे भी गच्चा दिया तो फिर 2020 की डगर नीतीश के लिए बेहद मुश्किल होगी.