नीतीश की हैसियत सिर्फ एक हजार वोट की : उपचुनाव के रिजल्ट ने तेजस्वी के कानों में बजायी खतरे की घंटी, नये गठबंधन से नुकसान?

नीतीश की हैसियत सिर्फ एक हजार वोट की : उपचुनाव के रिजल्ट ने तेजस्वी के कानों में बजायी खतरे की घंटी, नये गठबंधन से नुकसान?

PATNA: क्या बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की हैसियत सिर्फ एक हजार वोट की है? बिहार की दो सीटों पर हुए उप चुनाव के बाद यही नतीजा निकाला जा रहा है. मोकामा औऱ गोपालगंज में हुए उप चुनाव के रिजल्ट के मायने यही निकल रहे हैं कि तेजस्वी यादव को नीतीश कुमार से दोस्ती से कोई नफा नहीं हुआ. हां, नुकसान होता जरूर दिख रहा है. 2020 के विधानसभा चुनाव के बाद जितने भी उप चुनाव हुए उसमें तेजस्वी का ग्राफ तेजी से उपर जा रहा था. लेकिन नीतीश से दोस्ती के बाद दो सीटों पर उपचुनाव के रिजल्ट से तेजस्वी जरूर सकते में होंगे.


मोकामा में क्यों फंसी राजद?

बिहार में दो सीटों पर हुए उप चुनाव में सबसे ज्यादा चर्चा मोकामा विधानसभा क्षेत्र की हो रही थी. बाहुबली अनंत सिंह के सजायाफ्ता होने के कारण यहां उप चुनाव हो रहा था. राजद ने अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी को मैदान में उतारा था. नीलम देवी चुनाव जीत भी गयीं. लेकिन उऩकी जीत के बाद भी राजद की नींद जरूर उड़ी होगी. आंकड़े ऐसी ही कहानी कह रहे हैं. 2020 के विधानसभा चुनाव में जब अनंत सिंह राजद के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे तो उन्होंने तकरीबन 36 हजार वोट से जीत हासिल की थी. 2022 के उपचुनाव में अनंत सिंह की पत्नी को राजद, कांग्रेस, वाम पार्टियों के साथ-साथ नीतीश कुमार का भी समर्थन था. लेकिन नीलम देवी सिर्फ 16 हजार 741 वोटों से चुनाव जीत पायीं.


ऐसा तब हुआ जब मोकामा विधानसभा सीट पर तीस साल में पहली दफे चुनाव लड़ रही थी. बीजेपी ने इस उप चुनाव से पहले कभी वहां चुनावी तैयारी की ही नहीं थी. 1995 से ही बीजेपी गठबंधन में चुनाव लड़ती आयी थी. हमेशा ये सीट जेडीयू के कोटे में जाता था. 2015 में जब जेडीयू से गठबंधन नहीं था तो बीजेपी ने ये सीट लोजपा के लिए छोड़ दिया था. पहली दफे चुनाव लड़ रही बीजेपी ने मोकामा में लगभग 63 हजार वोट हासिल किये. जबकि 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी समर्थित जेडीयू उम्मीदवार को सिर्फ 42 हजार 749 वोट आया था. यानि बीजेपी ने उससे भी 20 हजार ज्यादा वोट हासिल किया.


नीतीश की हैसियत क्या है

सबसे पहले ये जान लेना जरूरी है कि मोकामा विधानसभा क्षेत्र नीतीश कुमार के लिए गृह क्षेत्र के जैसा है. मोकामा विधानसभा क्षेत्र पहले बाढ़ लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा था, जहां से नीतीश कुमार लगातार सांसद हुआ करते थे. अब ये जानिये कि नीतीश के आने से राजद को फायदा क्या हुआ. 2020 में जब नीतीश राजद का विरोध कर रहे थे तो RJD के उम्मीदवार अनंत सिंह को 78 हजार 721 वोट मिले थे. 2022 में जब नीतीश ने राजद का समर्थन किया तो RJD उम्मीदवार नीलम देवी को 79 हजार 744 वोट आये. यानि पहले से एक हजार वोट ज्यादा.


ऐसा तब हुआ जब उप चुनाव में मोकामा में वोटिंग का परसेंटेज बढ़ गया था. 2020 के विधानसभा चुनाव की तुलना में 2022 के उप चुनाव में ज्यादा वोटिंग हुई. जाहिर है अगर ज्यादा वोटिंग हुई तो उम्मीदवारों के वोट बढ़ेंगे ही. लेकिन अगर इस तथ्य को न भी माना जाये तो सवाल ये उठ रहा है कि नीतीश कुमार के साथ आने से राजद को क्या फायदा हुआ. आंकड़े बता रहे हैं कि सिर्फ एक हजार वोट का फायदा हुआ. बात सीधी सी है कि 2020 में अकेले लड़कर जितने वोट मिले थे इस दफे उससे एक हजार ज्यादा वोट बढ़ गये.


अगर अनंत सिंह न होते तो क्या होता

सवाल ये भी उठ रहा है कि अगर अनंत सिंह की पत्नी राजद की उम्मीदवार नहीं होती तो क्या होता. मोकामा क्षेत्र में अनंत सिंह की हैसियत किसी से छिपी हुई नहीं है. वे निर्दलीय चुनाव लड़ कर भी यहां से चुनाव जीत चुके हैं. 2015 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू और राजद साथ थे. अनंत सिंह निर्दलीय चुनाव लड़ रहे थे और तब भी उन्होंने जेडीयू-राजद के साझा उम्मीदवार नीरज कुमार को लगभग 19 हजार वोटों से हराया था. मोकामा में हुए पिछले 7 चुनावों में अनंत सिंह ने 6 बार जीत हासिल की है. जानकार बता रहे हैं कि इस दफे भी मोकामा क्षेत्र से राजद को नहीं बल्कि अनंत सिंह को जीत मिली है. हां, नीतीश के आने का नुकसान ये हुआ कि जीत का मार्जिन 2020 ही नहीं बल्कि 2015 के चुनाव से भी कम हो गया.


गोपालगंज में भी राजद को नहीं मिला जेडीयू का वोट

वैसे राजद इसे अपनी उपलब्धि बता सकती है कि गोपालगंज सीट पर उसने बीजेपी को कड़ा मुकाबला दिया. बीजेपी ये सीट लगभग 2 हजार वोटों से जीतने में ही सफल रही. जबकि 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के सुभाष सिंह 36 हजार से ज्यादा वोटों से जीत हासिल की थी. लेकिन रिजल्ट के आंकड़े बता रहे हैं कि अगर वहां कड़ा मुकाबला हुआ तो उसका भी श्रेय नीतीश कुमार को नहीं दिया जा सकता है.


2020 के विधानसभा चुनाव में गोपालगंज से राजद ने अपना उम्मीदवार उतारा ही नहीं था. ये सीट कांग्रेस के खाते में चली गयी थी. कांग्रेस ने वहां से आसिफ गफूर को उम्मीदवार बनाया था. लेकिन तेजस्वी के मामा साधु यादव बसपा के टिकट पर चुनाव मैदान में उतर गये थे. साधु यादव ने राजद के आधार वोट यानि यादवों का ज्यादातर वोट समेट लिया था. लिहाजा 2020 के चुनाव में साधु यादव ने 41 हजार से ज्यादा वोट पाया और वे ही दूसरे नंबर पर रहे थे. कांग्रेस के आसिफ गफूर तीसरे नंबर पर थे. 2020 के चुनाव में भी अगर साधु यादव और कांग्रेस के आसिफ गफूर का वोट एक साथ होता तो बीजेपी चुनाव हारने की स्थिति में होती.


गोपालगंज में यादवों ने राजद का दिया साथ

2022 के उप चुनाव में एक बार फिर साधु यादव ने अपनी पत्नी इंदिरा देवी को बसपा के टिकट पर मैदान में उतार दिया था. लेकिन यादवों ने साधु यादव से पल्ला झाड़ लिया. इंदिरा देवी को 9 हजार वोट भी नहीं आ पाये. गोपालगंज उत्तर प्रदेश से सटा इलाका है और वहां के दलित वोटरों पर मायावती का प्रभाव है. इंदिरा देवी को मायावती के समर्थक दलित वोटरों का ही वोट मिला. साधु यादव अपनी बिरादरी यानि यादव वोटरों में कोई सेंधमारी नहीं कर पाये. राजद के कैंडिडेट को उसका फायदा मिला.


बीजेपी के वोट में सेंधमारी

गोपालगंज में अगर बीजेपी कड़े मुकाबले में फंसी तो उसका एक और प्रमुख कारण था बीजेपी के वोट में सेंधमारी. दरअसल तेजस्वी यादव ने पहली दफे प्रयोग करते हुए गोपालगंज से वैश्य समुदाय के मोहन प्रसाद को टिकट दे दिया था. मोहन प्रसाद ने बीजेपी के आधार वोट माने जाने वाले वैश्यों के वोट में जमकर सेंध लगायी. इसमें भी नीतीश कुमार की कोई भूमिका नहीं रही. 


गिरने लगा तेजस्वी का ग्राफ

तीन महीने पहले नीतीश से दोस्ती करने वाले तेजस्वी प्रसाद यादव के लिए उप चुनाव का परिणाम बहुत बेहतर नहीं माना जा सकता. 2020 के विधानसभा चुनाव के बाद बिहार में तेजस्वी का ग्राफ लगातार उपर जा रहा था. मोकामा और गोपालगंज में उपचुनाव से पहले बिहार में तीन और विधानसभा क्षेत्रों में उप चुनाव हुए. इसी साल बोचहां में विधानसभा का उपचुनाव हुआ था. इस सीट पर 2020 में राजद का उम्मीदवार 11 हजार वोट से चुनाव हार गया था. जीत एनडीए में शामिल मुकेश सहनी की पार्टी के उम्मीदवार मुसाफिर पासवान को मिली थी. मुसाफिर पासवान के निधन के बाद 2022 के अप्रैल में जब बोचहां में उपचुनाव हुआ तो राजद का उम्मीदवार 36 हजार से ज्यादा वोटों से चुनाव जीता. 


2020 के बाद तेजस्वी की बढती लोकप्रियता का अंदाजा पिछले साल तारापुर और कुशेश्वरस्थान में हुए उपचुनाव में भी हुआ था. इन दोनों सीटों पर तेजस्वी के उम्मीदवार ने पहले के मुकाबले काफी बेहतर प्रदर्शन किया था. लेकिन अब स्थिति बदलती हुई नजर आ रही है. 


तेजस्वी से बिदके वोटर?

मोकामा और गोपालगंज उपचुनाव के रिजल्ट के बाद ये भी बात सामने आ रही है कि A टू Z की बात करने वाले तेजस्वी यादव से वोटर बिदक भी रहे हैं. सियासी जानकार सबसे पहला उदाहरण पासवान जाति के वोटरों का दे रहे हैं. पासवान जाति के वोटरों की कोई नाराजगी तेजस्वी यादव से नहीं थी. तभी बोचहां उपचुनाव में तेजस्वी के उम्मीदवार को पासवान जाति का थोक में वोट मिली था. लेकिन नीतीश के साथ जाने के बाद तेजस्वी से पासवान जाति के वोटर दूर हुए हैं. उपचुनाव के दौरान ही रामविलास पासवान पर नीतीश कुमार की टिप्पणी से पासवान जाति के लोगों में भारी नाराजगी फैली.


सियासी जानकार बता रहे हैं कि नीतीश से तेजस्वी के गठजोड़ का असर भूमिहार वोटरों पर भी पड़ा है. 1990 से ही लालू यादव से दूर रहे भूमिहार वोटरों ने बोचहां उपचुनाव के साथ साथ विधान परिषद के चुनाव में तेजस्वी यादव का जमकर साथ दिया था. सियासी जानकारों के मुताबिक नीतीश कुमार के कारण तेजस्वी यादव से ये वोट बैंक भी बिदक रहा है.


कमोबेश यही स्थिति राजपूत और ब्राह्मण वोटरों की भी है. इन जातियों का भी झुकाव तेजस्वी यादव की ओऱ बढ़ रहा था लेकिन नीतीश के साथ जाने के बाद दूरी बढ़ रही है. राजपूतों का एक बड़ा तबका मान रहा है कि तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार के कारण सुधाकर सिंह की बलि ले ली. इसका असर मोकामा में देखने को मिला, जहां राजपूतों का ज्यादातर वोट बीजेपी को चला गया. 


बड़ा सवाल ये है कि क्या तेजस्वी यादव अपनी रणनीति बदलेंगे. नीतीश कुमार साथ जाने का नुकसान तो साफ दिख रहा है. ये भी दिख रहा है कि नीतीश कुमार अपना वोट बैंक ट्रांसफर कराने की स्थिति में नहीं है. या फिर नीतीश के पास कोई बडा वोट बैंक रह ही नहीं गया है. अगर ऐसा ही होता रहा तो फिर तेजस्वी की आगे की राजनीति खतरे में है.