नीतीश की भाजपा से दोस्ती की गुंजाइश नहीं: बिहार BJP ने प्रस्ताव पारित कर CM पर कड़ा हमला बोला, कहा-देश तोड़ने में लगे हैं मुख्यमंत्री

नीतीश की भाजपा से दोस्ती की गुंजाइश नहीं: बिहार BJP ने प्रस्ताव पारित कर CM पर कड़ा हमला बोला, कहा-देश तोड़ने में लगे हैं मुख्यमंत्री

PATNA: देश के सियासी हलकों में लगातार ये चर्चा हो रही है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार फिर से पलटी मार सकते हैं. चर्चा ये हो रही है कि नीतीश कुमार बीजेपी के संपर्क में हैं औऱ वे राजद से नाता तोड़ कर भाजपा के साथ जा सकते हैं. लेकिन बिहार भाजपा ने आज फिर इस संभावना को खारिज कर दिया. बीजेपी ने आज राजनीतिक प्रस्ताव पारित किया है, जिसमें नीतीश कुमार पर तीखा हमला बोला गया है.


शनिवार को बिहार भाजपा की कोर कमेटी की बैठक थी. इसमें पार्टी ने राजनीतिक प्रस्ताव पारित किया. इसमें कहा गया है कि नीतीश कुमार इंडी गठबंधन के दूसरे साथियों के साथ मिलकर देश को तोड़ने की कोशिश में लगे हैं. भाजपा ने कड़ा हमला बोलते हुए कहा है कि बिहार में बालू-शराब एवं जमीन के माफियाओं की सरकार चलाने वाले लालू-नीतीश-तेजस्वी ने बलात्कार, हत्या, लुट को सूबे का प्रमुख उद्योग बना दिया है. अगले लोकसभा चुनाव में इनकी दाल नहीं गलने वाली है और बिहार के लोग यहां की सारी 40 सीटों पर भाजपा और उसके सहयोगी दलों की जीत तय करेंगे. 


बीजेपी ने किया पिछ़ड़ों के लिए काम

बिहार बीजेपी के राजनीतिक प्रस्ताव में कहा गया है कि उसके समर्थन से बिहार में जातीय जनगणना हुई. उसके बाद अगर पिछड़ों, अतिपिछड़ों अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्गों के आरक्षण में वृद्धि हुई है तो वह भाजपा के अन्त्योदय के लक्ष्यों का हिस्सा है. देश में मंडल आयोग की सिफारिशों के आधार पर जब आरक्षण लागू करने का फैसला लिया गया था तो उसे भी भाजपा का समर्थन हासिल था. बिहार में 2005 के बाद जब बीजेपी की मदद से एनडीए सरकार बनी तभी अतिपिछड़ों के उत्थान के लिए आरक्षण समेत कई और फैसले लिये गये. इस बार भी अगर आरक्षण का दायरा बढ़ा है तो उसे बीजेपी का पूर्ण समर्थन मिला. 


बीजेपी ने कहा है कि नरेन्द्र मोदी की सरकार ने ही पिछड़ों के लिए मेडिकल में 27% आरक्षण दिया.  राष्ट्रीय ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया. इसी सरकार में  27 से ज्यादा केंद्रीय मंत्री पिछड़े वर्गों से बने.  अतिपिछड़ों को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान देने के लिए रोहिणी कमीशन का का गठन किया और 18 कामगार अतिपिछडे वर्ग के लोगों के लिए पीएम विश्वकर्मा जैसी योजना चलायी गयी. पीएम विश्वकर्मा योजना के तहत अकेले बिहार में 2 लाख से ज्यादा लोगों को जोड़ा जा चूका है, जिन्हें रोजगार के लिए 3 लाख रूपए तक की पूँजी उपलब्ध करायी जा रही है. 


बीजेपी ने कहा है कि इंडी गठबंधन के राहुल गाँधी, लालू यादव और नीतीश कुमार जैसे नेता देश को तोड़ने की नीति पर तेजी से काम कर रहे हैं. जबकि नरेंद्र मोदी ने युवा, गरीब, महिला और किसान को भारत की चार प्रमुख जाति बताकर देश की मानसिकता को स्पष्ट कर दिया है. नरेंद्र मोदी सरकार ने साबित किया है कि बगैर किसी विभेद के नीतिगत निर्णय कैसे लिए जाते हैं. देश की जनता कांग्रेस एवं उसके साथियों के ठगने की नीति को पहचान चुकी है और तीन राज्यों के परिणाम भी स्पष्ट करते हैं की देश की मेहनती जनता अब उनके झूठ के शिगुफों में नहीं फसने वाली है


भाजपा ने अपने प्रस्ताव में कहा है कि बिहार में इंडी गठबंधन के सभी नेताओं ने आर्थिक- सामाजिक सर्वे का ढोल पिटा था. लेकिन अब उसके निराशाजनक आंकड़ों पर निर्णायक निर्णय लेने के बजाये उसे ठन्डे बसते डालकर भूल चुके हैं. आर्थिक- सामाजिक गणना के रिपोर्ट ने यह बताया है की अतिपिछडे वर्ग के 4 प्रतिशत, पिछड़े वर्ग के 7.68 प्रतिशत एवं अनुसूचित जाति वर्ग के मात्र 3 प्रतिशत लोग स्नातक की परीक्षा पास कर सके हैं.  


कुल जनसँख्या के मात्र सात प्रतिशत लोग ही बिहार में स्रातक की परीक्षा पास कर सके हैं. बिहार के 1 करोड़ 76 लाख 34 हजार 176 परिवार दस हजार प्रति माह से कम कमाते हैं जो कुल जनसँख्या का 64 प्रतिशत है. पिछड़े औऱ अतिपिछड़े वर्गों में ऐसे गरीब परिवारों की संख्या लगभग 67 प्रतिशत, अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों में यह आंकड़ा 86 प्रतिशत है. 


अतिपिछडे वर्ग के मात्र 0.81 प्रतिशत, पिछड़े वर्ग के 1.52 प्रतिशत एवं अनुसूचित जाति के मात्र 0.51 प्रतिशत लोगों के पास कंप्यूटर है. राज्य के 44 प्रतिशत अतिपिछडे, 36 प्रतिशत पिछड़े और 65 प्रतिशत अनुसूचित जाति वर्ग के लोग टिन छप्पर या झोपड़ों में जीवन जीने को विवश हैं. 


बीजेपी ने कहा है कि जातिगत गणना के आंकडें बताते हैं लालू-नीतीश का सामजिक न्याय का नारा सिर्फ एक धोखा है. लालू-नीतीश ने बिहार में नयी व्यवस्थाओं को जन्म ही नहीं लेने दिया. शिक्षा के क्षेत्र में,  नवाचार के क्षेत्र में, नयी आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के मामले में कुछ नहीं किया गया. लालू-नीतीश ने ऐसा कुछ नहीं किया जिससे बिहार में कुछ निवेश बढ़ सके. जबकि बालू-शराब एवं जमीन के माफियाओं की सरकार चलाने वाले लालू-नीतीश-तेजस्वी ने बलात्कार, हत्या, लुट को बिहार का प्रमुख उद्योग बना दिया है. 


बीजेपी के राजनीतिक प्रस्ताव में कहा गया है कि दुनियाभर में रोजगार के अवसरों को तलाश रहे बिहार के कुशल या अकुशल कामगार विश्वभर के भव्य आर्थिक तंत्रों को अपने आँखों से देख रहे हैं. उनके मन में है की बिहार भी उसी रास्ते पर आगे बढ़े लेकिन उनके सपनों को पूरा करने के बजाय बिहार का शासक वर्ग नजरें झुकाने के बजाय गौरवपूर्ण अट्ठाहस करते हुए समाजवाद एवं परिवारवाद के आड़ में भविष्य की जमीन भ्रष्टाचार युक्त इंडी गठबंधन में तलाश रहे हैं. 


भाजपा बिहार के इंडी गठबंधन के नेताओं से मांग करती है की आर्थिक-सामाजिक आंकड़ों पर अपनी नीति को स्पष्ट करें और बताये की इस रिपोर्ट पर उसकी कार्ययोजना क्या है ? और अगर उन्हें कुछ नहीं सूझता है तो वे त्यागपत्र दे दें क्योंकि बिहार की जनता भी झूठे एवं आकंठ भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे नेताओं एवं उनकी अगली पीढ़ी के अकर्मण्य लोगों से मुक्ति चाहती है. 


भाजपा ने अपने प्रस्ताव में कहा है कि बिहार के विकास के लिए नरेन्द्र मोदी जी की सरकार ने अपने दोनों मुट्ठी खोल रखा है. पिछले 10 सालों में अकेले बिहार को 10 लाख करोड़ से ज्यादा की राशि उपलब्ध करायी है, लेकिन क्या यह सच नहीं है की आज की वैश्विक आर्थिक संरचना से भारत का कोई एक हिस्सा अगर अछूता है तो वह बिहार है क्योंकि यह जमीन वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में नवाचारों, नयी तकनीकों, समकालीनता के हर सिद्धांत, नवजागरण और समावेश के हर आर्थिक- सामाजिक परिवेश के लिए कब्रगाह है. 


पहले भारत के जिन पांच राज्यों को बीमारू राज्य कहा जाता था उनमें से चार राज्य मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, राजस्थान एवं उड़ीसा इस श्रेणी से बाहर हो गए हैं. लेकिन बिहार अपने गौरवशाली अतीत को याद करते हुए आंसुओं के सैलाब में डूबा हुआ बजबजा रहा है.  बिहार आज बीते जमाने के उस जमींदार की तरह है जिसके पास हवेली तो है लेकिन उसके शोभे के तौर पर मौजूद रहे हाथी खत्म हो चुके हैं और अगली पीढ़ी सिक्कड़ को लेकर मतिभ्रम में है की हमारे कुल में कभी हाथी होते थे.