PATNA : कृषि मंत्री के पद पर रहते हुए सुधाकर सिंह ने जब विभागीय कामकाज की आलोचना की थी और अपने ही विभाग के अधिकारियों को चोर बता डाला था तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नाराज हो गए थे। नीतीश कुमार सुधाकर सिंह की उस बात को लेकर खफा हुए जिसमें उन्होंने खुद को चोरों का सरदार बताया था। सुधाकर सिंह कृषि मंत्री रहते हुए विभाग के अधिकारियों की असलियत जान गए थे और इसीलिए उन्होंने सार्वजनिक तौर पर इसकी आलोचना की थी, लेकिन नीतीश कुमार को यह आलोचना पसंद नहीं आई। नतीजा यह हुआ कि पहले कैबिनेट की बैठक में उनकी सुधाकर सिंह से बहस हुई और फिर बाद में सुधाकर सिंह के इस्तीफे के साथ इस कहानी का अंत हुआ। लेकिन अब कृषि विभाग के अधिकारियों के निकम्मेपन की जो कहानी सामने आ रही है, वह दरअसल किसी और ने नहीं बल्कि राज्य के विकास आयुक्त ने पकड़ी है।
कृषि विभाग के कामकाज की समीक्षा के दौरान राज्य के विकास आयुक्त ने गहरी नाराजगी जताई है। विकास आयुक्त का मानना है कि राज्य में 10 ऐसी योजनाएं हैं जो कृषि विभाग से जुड़ी हैं और जिनपर प्रगति बेहद शिथिल देखी जा रही है। इस लचर कार्यप्रणाली को लेकर उन्होंने विभाग के अधिकारियों से अपनी नाराजगी जताई है। कृषि विभाग की समीक्षा योजना के दौरान विकास आयुक्त ने कृषि विभाग के सचिव और चारों निदेशकों से विभागीय कार्य की समीक्षा करने, योजनाओं की स्थिति जाने और प्रोजेक्ट प्लानिंग एंड मॉनिटरिंग को लेकर पूरी रिपोर्ट तलब की है। कृषि सचिव अब हर सप्ताह दो दिन की बजाय एक दिन यानी हर सोमवार को योजनाओं की प्रगति की समीक्षा करेंगे। इसके अलावे सभी निदेशकों को हर शुक्रवार को पीपीएम निदेशक को रिपोर्ट भेजने का निर्देश भी दिया गया है। विकास आयुक्त ने कृषि सचिव से इस मामले में सख्ती बरतने को भी कहा है।
कृषि विभाग के कार्य प्रणाली को लेकर राज्य के विकास आयुक्त ने जिस तरह नाराजगी जताई है, वह इस बात का भी संकेत माना जा रहा है कि विभागीय मंत्री होते हुए सुधाकर सिंह ने अंदर की हालत समझ ली थी। कृषि मंत्री के तौर पर उन्हें इस बात का अंदाजा हो गया था कि अधिकारी किस तरह लापरवाही कर रहे हैं। सरकार जिन योजनाओं को किसानों के हितों के लिए तैयार करती है उसे कैसे ठंडे बस्ते में डाला जा रहा है। इन बातों को मुखर होकर सुधाकर सिंह ने खुले मंच से कहा लेकिन नीतीश कुमार अपनी सरकार की कार्यशैली की आलोचना बर्दाश्त नहीं कर पाए। सुधाकर सिंह का इस्तीफा भले ही करा दिया गया लेकिन आज उनकी ही कही बात पर राज्य के विकास आयुक्त आगे बढ़ रहे हैं और कृषि विभाग के अधिकारियों का निकम्मापन उजागर हो रहा है।