NDA की बैठक में चिराग- पारस की तस्‍वीरों ने खींचा सबका ध्‍यान, 6% वोट बैंक पर BJP की नजर; जानिए क्या है दोनों को साथ रखने के मायने

NDA की बैठक में चिराग- पारस की तस्‍वीरों ने खींचा सबका ध्‍यान, 6% वोट बैंक पर BJP की नजर; जानिए क्या है दोनों को साथ रखने के मायने

PATNA : राजधानी दिल्ली में मंगलवार को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए की बैठक आयोजित की गई। इस बैठक की सबसे रोचक तस्वीर चिराग पासवान और पशुपति पारस की रही। चिराग अपने चाचा पशुपति पारस का पांव छूते नजर आए तो पशुपति पारस भी उन्हें गले लगाते हुए नजर आए। जिसके बाद इस बात की चर्चा तेज हो गए कि ,क्या पारस मान गए ? क्या रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान ने उन्हें मना लिया?  क्या दोनों के बीच हाजीपुर सीट को लेकर समझौता हो गया? जब इन सवालों का जवाब ढूंढने के लिए पशुपति पारस और चिराग पासवान से सवाल किया गया तो पशुपति पारस में बस यही कहा कि -परिवार परिवार होता है और हम एक परिवार के सदस्य है। इसलिए उनसे पांव छुआ तो गले लगाना मेरा फर्ज है। 


जबकि चिराग पासवान ने कहा कि- पशुपति पारस मेरे चाचा हैं और चाचा से इतने बड़े मौके पर आशीर्वाद ना लें यह कैसे संभव है। मेरी इनसे किन्हीं बातों को लेकर राजनीतिक मतभेद हो सकती है लेकिन पारिवारिक मतभेद नहीं है। हालांकि सबसे बड़ी बात रही कि हाजीपुर सीट को लेकर अब तक जो दोनों अपना-अपना दावा ठोक रहे थे।  कल इन सवाल पर दोनों  चुप्पी साध ली और इस सवाल को अनसुना करते हुए नजर आए। 


दरअसल,  दिल्ली में मंगलवार को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की बैठक में चाचा पशुपति कुमार पारस और भतीजा चिराग पासवान की एक-दूसरे से गले लगते तस्वीर सामने आई तो  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा चिराग के गाल छूकर स्नेह जताने वाली भी तस्वीर सामने आई। अब ये दोनों तस्वीर की सियासी फिजा में कुछ अलग ही कहानि‍यां बयां कर रही है। अब यह कहा जा रहा है कि आगामी लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी बिहार में 6 % पासवान वोट बैंक के लिए कुछ भी करने को तैयार है यही वजह है कि बीजेपी अपने स्तर से  चिराग पासवान को मनाने में जुटा हुआ था। अब  चिराग मान गए हैं और उन्होंने ऐलान कर दिया है कि अब वह एनडीए का हिस्सा है और भाजपा का साथ खुले तौर पर इस बार लोकसभा चुनाव में देंगे। 


वहीं, पशुपति पारस पहले से ही एनडीए का हिस्सा है और मोदी कैबिनेट में मंत्री भी हैं। इस लिहाजा उनका समर्थन एनडीए को पहले से है। लेकिन, सबसे बड़ा सवाल यह है कि पारस इस बार क्या हाजीपुर सीट से चुनाव लड़ेंगे,या फिर कल भाजपा ने उन्हें यह सीट छोड़ने पर मना लिया है। जब इन्हीं सवालों का जवाब ढूंढने की कोशिश की गई तो आधिकारिक तौर पर तो कोई जानकारी सामने नहीं आई है।  लेकिन, बीजपी के एक करीबी सूत्रों ने यह बताया कि इस बार पारस अपना यह सीट छोड़ रहे हैं। लेकिन, उन्हें ऐसी सीट दी जा रही है जहां से उनकी जीत तय है। यह सीट वर्तमान में उनके ही पार्टी के कब्जे में हैं और सीट के उम्मीदवार को चिराग की वर्तमान सीट दिए जाने की चर्चा तेज है। 


इधर, बात करें कि आखिरकार भाजपा क्यों इन दोनों को अपने साथ रखना चाह रही है तो इसका जवाब है कि बिहार में पासवान का वोट बैंक 6 % है। इस बार के लोकसभा में चुनाव में यह वोट बैंक काफी काम आने वाला है। अगर इन दोनों में बिखराव होता है तो इन वोट बैंक में भी बिखराव होगा और इसका फायदा अन्य दलों को भी होगा। बिहार में 6 प्रतिशत पासवान (दुसाध) मतदाता हैं और एलजेपी के गठन के वक्त से ही वे रामविलास के प्रति वफादार हैं।


 लेकिन, पिछले कुछ दिनों से जिस तरह बिहार सरकार उनके लिए काम कर रही है ऐसे में अगर पारस साथ  छोड़ते है और नीतीश के साथ जाते हैं तो कम से कम 3 % का नुकसान हो सकता है। रामविलास पासवान के निधन पर नीतीश कुमार पासवान मतदताओं को अपनी तरफ करना चाहेंगे। लोजपा पर कब्जे की लड़ाई में फिलहाल आगे दिख रहे पशुपति पारस का भी झुकाव नीतीश कुमार की ओर है। बस यही वजह है कि भाजपा उनका साथ नहीं छोड़ना चाहती है और अपने साथ रखने के लिए उनके साथ लगातार डील की जा रही है। इस बीच अब कल को तस्वीर सामने आई है उससे कुछ हद तक सबकुछ सही लग रहा है। हालांकि, राजनीति कुछ भी पहले से तय नहीं होता है इस लिहाजा इनकी यह मुलकात को सब सही होने पुष्टि आधिकारिक रूप से नहीं कहा जा सकता है।