कचरा उठाव के लिए खरीदे गए 14 हजार से ज्यादा ई रिक्शा खुद बन गए कचरा, विधानसभा में उठा मामला तो मंत्री ने मुखिया पर फोड़ा ठीकरा

कचरा उठाव के लिए खरीदे गए 14 हजार से ज्यादा ई रिक्शा खुद बन गए कचरा, विधानसभा में उठा मामला तो मंत्री ने मुखिया पर फोड़ा ठीकरा

PATNA : बिहार विधानसभा शीतकालीन सत्र के तीसरे दिन प्रश्न उत्तर काल के दौरान बीजेपी के विधायक अमरेंद्र प्रताप ने सरकार पर ही सवाल उठा दिया। भाजपा के विधायक ने कहा कि कचरा उठाओ के लिए हजारों ई रिक्शा खरीदा गया लेकिन इसका कोई उपयोग नहीं किया गया ? तो इसके बारे में सरकार क्या जवाब देगी और उसकी क्या योजना है?


बीजेपी के अमरेन्द्र प्रताप सिंह ने सवाल किया कि  कचरा उठाव के खरीदे गये 14879 रिक्शा खराब" को ध्यान में रखते हुये क्या मंत्री, ग्रामीण विकास विभाग, यह बतलाने की कृपा करेंगे कि-क्या यह बात सही है कि राज्य के गाँवों में लोहिया स्वच्छ भारत अभियान के तहत कचरा उठाव के लिये 78560 पैडल व 5846 ई-रिक्शा की खरीदारी वर्ष 2023 में की गई थी ? क्या यह बात सही है कि गुणवत्तापूर्ण खरीदारी नहीं होने के कारण 17.7 प्रतिशत पैंडल एवं 21 प्रतिशत ई-रिक्शा जनवरी, 2024 में ही खराब होने एवं कुछ जिलों में रिक्शा खरीदारी के बावजूद इस्तेमाल नहीं होने तथा 12 से अधिक जिलों में पैंडल रिक्शा की खरीदारी अभी तक नहीं होने के कारण ? 


इस दौरान उन्होंने कहा कि  कचरा उठाव बंद है और यदि उपर्युक्त खंडों के उत्तर स्वीकारात्मक हैं, तो सरकार उक्त खरीदे गये रिक्शा की जाँच कराने एवं जिन जिलों में रिक्शा की खरीदारी नहीं हुई है वहाँ खरीदारी कराने का विचार रखती है, नहीं, तो क्यों ?


इसके जवाब में बिहार सरकार के मंत्री श्रवण कुमार ने कहा कि स्वच्छता का जो काम है वह काफी महत्वपूर्ण है। यह मनुष्य की जीवन से जुड़ा हुआ है। अगर माननीय सदस्य ने कह रहे हैं कि कचरा उठाने वाली गाड़ी ठीक नहीं है तो उसको कैसे ठीक कराया जाए तो उसके लिए मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि ग्राम पंचायत के पास इसको लेकर राशि रहती है। और 1 साल तक इसके मरम्मत का कार्य विभाग की तरफ से किया जाता है। 


इसके बाद यदि वह खराब हो जाता है तो पंचायत में 15 में वित्तीय राशि के माध्यम से उसको ठीक करवाया जा सकता है। इसके बाद बीजेपी विधायक ने कहा कि इसमें लगे हुए मजदूरों की भी मजदूरी नहीं मिल रही है।इसके जवाब ने कहा कि मैंने पहले ही कह दिया है कि 1 साल तक हम मजदूरों के मानदेय का भुगतान करते हैं। इसके बाद ग्राम पंचायत के तरफ से इनको मजदूरी दी जाती है। इसमें कोई समस्या है तो वह ग्राम पंचायत को देखना है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?