बिहार में छिड़ने वाला है सियासी संग्राम! जातीय गणना पर घमासान के बाद अब आर्थिक सर्वे को लेकर बवाल तय; रिपोर्ट पेश होते ही उठने लगे सवाल

बिहार में छिड़ने वाला है सियासी संग्राम! जातीय गणना पर घमासान के बाद अब आर्थिक सर्वे को लेकर बवाल तय; रिपोर्ट पेश होते ही उठने लगे सवाल

PATNA: बिहार का सियासी पारा एक बार फिर गर्म होने की प्रबंल संभावना दिख रही है। पिछले दिनों बिहार सरकार ने जातीय गणना के आंकड़ों को सार्वजनिक किया था। बिहार में जातियों की संख्या सामने आने के बाद खूब घमासान हुआ। अभी यह घमासान थमा ही था कि बिहार सरकार ने विधानसभा में सामाजिक- आर्थिक सर्वे की रिपोर्ट को पेश किया। अब इसको भी लेकर सवाल उठने शुरू हो गए हैं और आने वाले दिनों में इसको लेकर सियासी बवाल तय माना जा रहा है।


दरअसल, बिहार की तत्कालीन एनडीए सरकार ने राज्य में जातीय गणना कराने का फैसला लिया था। केंद्र से मंजूरी नहीं मिलने के बाद बिहार सरकार ने अपने बूते पर इस काम को पूरा करने का निर्णय लिया। बिहार सरकार ने इसपर पांच सौ करोड़ से अधिक की राशि खर्च की। इस बीच बिहार में सरकार बदल गई और राज्य में एनडीए की जगह महागठबंधन की सरकार बन गई। इस बीच जातीय गणना का मामला हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा लेकिन आखिरकार बिहार सरकार की जीत हुई और दो चरणों में जातीय गणना का काम पूरा है।


बीते 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के मौके पर बिहार सरकार ने जातीय गणना के आंकड़ो को सार्वजनिक कर दिया। आंकड़ों के सार्वजनिक होने के बाद इसको लेकर संग्राम छिड़ गया। एक तरफ जहां बिहार की सरकार इसे अपनी उपलब्धि बताती रही तो दूसरी तरफ विपक्षी दल जातीय गणना के आंकड़ों पर सवाल उठाते रहे। बीजेपी समेत विपक्ष के सभी दल जातीय गणना के समर्थन में तो रहे लेकर इसके आंकड़ों पर सवाल उठाते रहे। विपक्षी दलों का आरोप था कि सरकार ने राजनीतिक लाभ लेने के लिए कुछ जाति और धर्म की संख्या बढ़ाकर दिखाई है, जबकि साजिश के तरह कुछ जातियों की संख्या कम कर दी है। इसको लेकर सिसायत खूब गर्म हुई।


अब बिहार विधानमंडल के शीतकालीन सत्र के दूसरे दिन नीतीश-तेजस्वी की सरकार ने सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट को भी सदन के पटल पर रखा है। इस रिपोर्ट में यह बताया गया है कि किस जाति और वर्ग के लोगों की सामाजिक और आर्थिक दशा क्या है। इसमें बताया गया है कि राज्य में किस जाति और वर्ग के कितने लोग संपन्न हैं और कितने लोग गरीब हैं, किस जाति के लोगों की आय कितनी है, शिक्षा कितनी है, किसके पास गाड़ी है, किसके पास पक्का मकान है, वगैर-वगैर।


आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट जारी होने के बाद इसको लेकर सियासत भी शुरू हो गई है। एनडीए में शामिल हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा ने सबसे पहले इसको लेकर सवाल उठाया है। पूर्व सीएम जीतन राम मांझी ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा कि, ‘वाह रे जातिगत जनगणना। सूबे के 45.54% मुसहर अमीर हैं, 46.45% भुईयां अमीर हैं? साहब सूबे के किसी एक प्रखंड में 100 मुसहर या भूईयां परिवारों की सूची दे दिजिए जो अमीर हैं? आप चाचा भतीजा को जब जनगणना करना था तो फिर कागजी लिफाफेबाजी क्यों? सूबे में “जनगणना”के बहाने खजाने की लूट हुई है’।


इसके बाद मांझी ने फिर लिखा, ‘बिहार सरकार मानती है”जिस परिवार की आय प्रति दिन 200₹ है वह परिवार गरीब नहीं है” गरीबी का इससे बडा मजाक नहीं हो सकता। माना कि एक परिवार में 5 सदस्य हैं तो सरकार के हिसाब से परिवार का एक सदस्य को 40₹ में दिन गुजारना है। चाचा-भतीजा जी 40₹ में कोई व्यक्ति दिन भर गुजारा कर सकता है’? जीतन राम मांझी के इस ट्वीट के बाद अन्य विपक्षी दलों के भी हमलावर होने की संभावना है। ऐसे में कहा जा रहा है कि बिहार में एक बार फिर सियासी महासंग्राम छिड़ने के हालात बन रहे हैं।