PATNA : बिहार में महागठबंधन की सरकार है। इस सरकार का गठन पिछले साल अगस्त महीने में नीतीश कुमार के भाजपा से अलग होने के बाद राजद के साथ आने से हुआ था। सरकार के गठन के बाद कई तरह के सवाल भी उठे और सरकार ने उसका बेहतरीन तरीके से जवाब भी दिया। लेकिन कुछ-कुछ मसाला पर सरकार अभी भी विफल दिख रही है। इसी में से एक सबसे बड़ा मसला है प्रवासी मजदूर की देखरेख और उसका ख्याल रखना। और सरकार इस मसले पर कितनी सजग और सतर्क है इसका एक और नमूना उसे वक्त देखने को मिला जब सरकार में शामिल मंत्री से इसको लेकर सवाल किया गया तो वह सवाल को टालते दिखे।
यह पूरा वाकया क्या है हम आपके सवालों और जवाबों के जरिए बतलाते हैं। बिहार सरकार के मंत्री श्रवण कुमार जदयु के तरफ से आयोजित एक कार्यक्रम में शामिल होने पार्टी ऑफिस में मौजूद थे। जहां पत्रकारों ने उसे सवाल किया कि - उत्तराखंड हादसे में झारखंड और अन्य जगहों के नोडल ऑफिसर वहां गया लेकिन बिहार के एक भी ऑफिसर वहां नहीं गए, ऐसा क्यों?
इसके बाद मंत्री श्रवण कुमार का जवाब पढ़िए , मंत्री ने कहा - इस मामले में बिहार के लोग और बिहार की सरकार काफी संवेदनशील है। जब भी ऐसे मामले देश के अंदर होते हैं। देश के बाहर भी होते हैं तो बिहार की सरकार तत्परता से आगे आती है। तो ऐसी बात नहीं है कि नहीं गए। हमारे यहां के अधिकारियों ने बात किया होगा वहां के अधिकारियों से। इसी तरह से सब तरह से काम चलाते रहता है।
अब इन बयानों का मतलब निकल जाए तो यही कहा जा सकता है कि बिहार सरकार के मंत्री को भी सही ढंग से यह नहीं मालूम कि उनके ऑफिसर की सही मायने में बातचीत हुई भी है या नहीं। उनके ऑफिसर इसको लेकर तत्पर है भी या नहीं। इसके बाद सरकार की काफी कीड़ि किडी होने लगी। नीतीश - तेजस्वी को लगा आने वाले दिनों में लोकसभा का चुनाव होना है। लिहाजा यदि इस मामले में तत्परता नहीं दिखाई गयी तो मुश्किलें बढ़ सकती है। लिहाजा आनन - फानन में एक अधिकारी को उत्तराखंड भेजा गया है।
मिली जानकारी के अनुसार, टनल में फंसे मजदूरों को सुरक्षित बिहार लाने के लिए श्रम संसाधन विभाग ने एक अधिकारी को उत्तराखंड भेजा गया है। विभाग के अनुसार टनल से सुरक्षित निकाए गए पांचों श्रमिकों को बिहार लाने के लिए दिल्ली से एलईओ को भेजा गया है जो देर रात ऋषिकेष, एम्स पहुंच गए। उत्तराखंड भेजे गए श्रम अधिकारी को कहा गया है कि बिहार के सभी श्रमिकों को लाने के लिए वे समुचित व्यवस्था करें। इतना ही नहीं सरकार ने यह भी तय किया है कि विपक्ष इसे बड़ा मुद्दा न बनाए इस वजह से इन मजदूरों को सरकार पुरस्कृत भी करेगी और सम्मान भी करेगी।
वहीं, सवाल यह है कि उत्तराखंड टनल हद में मुख्य रूप से बिहार,उत्तर प्रदेश और झारखंड के मजदूर फंसे हुए थे। ऐसे में इसको लेकर झारखंड और उत्तर प्रदेश की सरकार तो काफी सजग दिखाई। वहां के मुख्यमंत्री ने इसको लेकर अपना पक्ष भी रखे। लेकिन, शुरू से लेकर भी अभी तक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस मसले पर कुछ भी बोलते हुए नजर नहीं आए। इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश और झारखंड से अधिकारियों की टीम भी बहुत पहले से ही उत्तराखंड में मौजूद थी। लेकिन, बिहार के कोई अधिकारी कल सुबह तक नहीं नजर आए थे।
ऐसे में जब बिहार सरकार के मंत्री से इसको लेकर सवाल हुआ तो उन्होंने बड़े ही आसानी से इसे भी राजनीतिक रंग दे डाला और कहा कि - भाजपा जब कोई अच्छा काम करती है तो उसका क्रेडिट खुद पर लेती है और जब कोई बड़ा काम होता है तो उसके क्रेडिट लेने से पीछे हट जाती है। लेकिन वापस से जब उनसे यह सवाल किया गया कि बिहार से लोग क्यों नहीं गए तो उन्होंने कहा कि बिहार के अधिकारियों की बातचीत हुई होगी उत्तराखंड के अधिकारियों से। मतलब साफ था कि मंत्री जी यह तक नहीं बता पा रहे थे कि क्या अधिकारियों की बातचीत हुई है या नहीं हुई है बस वह अनुमान लगाकर मीडिया को जवाब दे रहे थे।
बहरहाल, अब देखना यह है कि आगामी वर्षों में लोकसभा का चुनाव है और ऐसे में जब प्रवासी मजदूरों को लेकर बिहार सरकार यह रवैया अपना आती है तो फिर जब मतदान की बारी आएगी तो क्या इन प्रवासी मजदूर का साथ जदयू को मिलेगा या फिर उत्तराखंड हादसे में भाजपा सरकार को जो सफलता मिली है उसे मुद्दा बनाकर नीतीश सरकार पर हमला किया जाएगा।