PATNA : जनता दल यूनाइटेड के नेताओं में इन दिनों नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री पद के योग्य बताने की होड़ मची थी. नीतीश के नये सेनापति उपेंद्र कुशवाहा तो अपनी हर मीटिंग में इस बात को दुहरा रहे थे. लेकिन शायद इससे बीजेपी की नाराजगी की खबर मिल गयी. सो पटना में आज जेडीयू के राष्ट्रीय परिषद की बैठक हुई तो एक अजीबो गरीब वाकया हुआ. जेडीयू की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में बकायदा प्रस्ताव पारित किया गया कि नीतीश कुमार प्रधानमंत्री पद के दावेदार नहीं हैं.
नीतीश की उल्टी चाल
अमूमन पार्टियां अपनी बैठक में प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री पद के दावेदार का एलान करती हैं. लेकिन जेडीयू की बैठक में आज अलग ही प्रस्ताव पारित हुआ. पार्टी के राष्ट्रीय प्रधान महासचिव के सी त्यागी ने प्रेस को बताया “हमने अपनी पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में बकायदा प्रस्ताव पारित किया है. नीतीश कुमार प्रधानमंत्री पद के दावेदार नहीं हैं. हमारी पार्टी मजबूती के साथ एनडीए में है जिसके प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी हैं. नीतीश कुमार में प्रधानमंत्री बनने की योग्यता है लेकिन वे प्रधानमंत्री पद के दावेदार नहीं. हमने प्रस्ताव पारित कर इस बात को स्पष्ट किया है.”
केसी त्यागी ने कहा कि उनकी पार्टी जेडीयू बीजेपी की सबसे विश्वसनीय और सबसे मजबूत सहयोगी पार्टी है. ऐसे में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर कोई सवाल उठाने की बात ही पैदा नहीं होती. पत्रकारों ने जब सवालों का तांता लगा दिया तो केसी त्यागी ने कहा कि पत्रकार खुद तय कर लें कि नीतीश कुमार प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं. जेडीयू ने साफ कर दिया है कि नीतीश कुमार प्रधानमंत्री पद के दावेदार नहीं हैं. केसी त्यागी ने कहा कि ये प्रस्ताव इसलिए पारित करना क्योंकि लोग कंफ्यूजन पैदा करते हैं. कोई भ्रम की स्थिति नहीं हो इसलिए जेडीयू ने ये प्रस्ताव पारित किया है.
जेडीयू में बेचैनी क्यों
किसी पार्टी की बैठक में ऐसा प्रस्ताव चौंकाने वाला है. सवाल ये है कि आखिरकार नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी की बैठक में ये प्रस्ताव पारित क्यों कराया. इसके दो कारण हैं. दरअसल नीतीश कुमार ने दो अहम मसले पर मोर्चे पर बीजेपी के खिलाफ खुला मोर्चा खोल दिया है. सबसे बड़ा मसला जातिगत जनगणना का है. नीतीश कुमार ने इस तेवर के साथ इस मसले पर राजनीति की है जैसे कि विपक्षी पार्टियां भी नहीं कर रही हैं. उन्होंने पहले मीडिया में बयान दिया, फिर अपने सांसदों से पत्र लिखवाया, फिर अपनी पार्टी के सांसदों को गृह मंत्री अमित शाह के पास भेजा फिर खुद पत्र लिखा औऱ आखिर में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल लेकर प्रधानमंत्री से मिलने चले गये. ये सब तब हुआ जब केंद्र की सरकार ने संसद में कह दिया था कि जाति के आधार पर जनगणना कराने का कोई प्रस्ताव नहीं है.
नीतीश कुमार जातिगत जनगणना पर बड़ी सधी हुई राजनीति कर रहे हैं. वे बीजेपी को फंसा चुके है. अब बीजेपी को इस मामले को न उगलते बन रहा है और ना निगलते. इस मसले पर नीतीश ने जो राजनीति की है उससे बीजेपी के अंदर मैसेज ये गया है कि नीतीश पूरे देश में बीजेपी का तो नुकसान कराना चाहते ही हैं खुद पिछड़ों के नेता के तौर पर उभरना चाहते हैं.
वहीं दूसरा मसला जनसंख्या नियंत्रण कानून का है. उत्तर प्रदेश में बीजेपी सरकार ने जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने की बात कही है. अभी कानून बना नहीं है लेकिन जेडीयू ने पहले दिन से ही मोर्चा खोल दिया. नीतीश कुमार खुद कह रहे हैं अपनी पार्टी के नेताओं से बुलवा रहे हैं और आज पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में प्रस्ताव भी पारित करा दिया कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून बनाना गलत है. नीतीश कुमार कह रहे हैं कि बिहार मॉडल से जनसंख्या नियंत्रण होगा. जनसंख्या नियंत्रण कानून पर नीतीश के विरोध का मतलब यही लगाया जा रहा है कि वे देश भर के मुसलमानों को साधना चाहते हैं.
नीतीश की इस सियासत के बीच ही उपेंद्र कुशवाहा जैसे जेडीयू नेताओं ने जोर शोर से कहना शुरू कर दिया कि नीतीश कुमार प्रधानमंत्री पद के योग्य नेता हैं. बीजेपी ने नीतीश की पॉलिटिक्स और जेडीयू नेताओं के बयानों को गंभीरता से लिया है. सूत्र बताते हैं कि बीजेपी की ओऱ से जेडीयू को अपनी नाराजगी से अवगत भी करा दिया गया है. इसके बाद ही नीतीश को सफाई देनी पड़ी है.
वैसे ये भी दिलचस्प है कि नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री पद का दावेदार सिर्फ उनकी पार्टी के कुछ नेता ही मान रहे हैं. उनकी पार्टी बिहार में तीसरे नंबर की पार्टी है. बीजेपी विरोधी पार्टियों में उनकी स्वीकार्यता भी नहीं है. ऐसे में उन्हें प्रधानमंत्री पद का दावेदार कौन मान रहा है ये भी खोज का विषय है.