PATNA: बिहार में विधानसभा की दो सीटों पर हुए उपचुनाव के रिजल्ट आने के बाद दोनों पक्षों की ओर से तरह-तरह के दावे किये जा रहे हैं. लेकिन इस चुनाव के परिणाम ने बीजेपी को बडी नसीहत दे दी है. अगर आखिरी वक्त में चिराग पासवान बीजेपी के लिए मैदान में नहीं उतरे होते तो भाजपा का क्या होता. सियासी जानकार मान रहे हैं कि चिराग अगर बीजेपी के साथ नहीं होते तो फिर भाजपा की नैया डूबनी तय थी.
चिराग की रोशनी में खिला कमल
आंकड़े इसकी गवाही देते हैं. गोपालगंज जैसी परंपरागत सीट पर बीजेपी अगर लगभग दो हजार वोट से जीती है तो उसका श्रेय चिराग पासवान को ही जाता है. गोपालगंज सीट पर पासवान जाति के वोटरों की तादाद 8 हजार से ज्यादा बतायी जाती है. पासवान जाति के वोटर चुनाव प्रचार के शुरूआती दौर में राजद उम्मीदवार के पक्ष में बताये जा रहे थे. लेकिन चुनाव के आखिरी दौर में चिराग पासवान के गोपालगंज में रोड शो ने माहौल बदल दिया. गोपालगंज के वरीय पत्रकार मुकेश कुमार सिंह के मुताबिक अगर पासवान जाति के वोटरों ने भाजपा का साथ नहीं दिया होता तो बीजेपी उम्मीदवार की हार तय थी.
मोकामा में भी चिराग ने बदली हवा
बीजेपी के रणनीतिकार इस बात से भी खुश हैं कि मोकामा जैसी सीट पर उसे लगभग 63 हजार वोट आ गये. मोकामा ऐसी सीट है जहां से बीजेपी कम से कम तीस साल से चुनाव लड़ी ही नहीं. बीजेपी हमेशा अपने गठबंधन के सहयोगी पार्टी को मोकामा सीट देती आयी. पहली दफे चुनाव लड़े बीजेपी 63 हजार वोट ले आ पाना अपनी उपलब्धि मान रही है. लेकिन इसमें भी चिराग पासवान ने बड़ा रोल निभाया.
दरअसल, मोकामा में जब चुनाव प्रचार आखिरी दौर में था तो चिराग पासवान ने वहां रोड शो किया था. चिराग के रोड शो में उमड़ी भीड़ ने ही माहौल बदला. मोकामा में पहले से ही लोजपा की अच्छी पकड़ रही है. पिछले विधानसभा चुनाव में भी चिराग ने अपने दम पर उम्मीदवार खड़ा किया था तो उसे 13 हजार से ज्यादा वोट आये थे. मोकामा में पासवान जाति के वोटरों की संख्या 12 से 15 हजार के बीच बतायी जाती है.
मोकामा के लोगों के मुताबिक चिराग पासवान के रोड शो के बाद पासवान जाति के वोटरों ने सड़क पर एलान करना शुरू कर दिया कि वे बीजेपी को वोट देंगे. इसके बाद ही दूसरे तबके के लोगों को लगा कि बीजेपी रेस में है. लिहाजा दूसरी जाति का वोट भी भाजपा में जुड़ता गया. तभी भाजपा 63 हजार वोट लाने में सफल हो पायी.
बीजेपी के लिए गठबंधन जरूरी
इस चुनाव ने बीजेपी को ये भी मैसेज दिया है कि अगर बिहार फतह करना है तो दूसरी पार्टियों से गठबंधन करना होगा. लेकिन ऐसी एक-दो ही पार्टियां हैं जो भाजपा के साथ तालमेल कर सकती हैं. नीतीश और तेजस्वी पहले से ही 7 पार्टियों का महागठबंधन बना कर बैठे हैं. इसमें जेडीयू, राजद, कांग्रेस, हम, माले, सीपीआई और सीपीएम शामिल हैं. ये तमाम पार्टियां ऐसी हैं जो बीजेपी के साथ नहीं जायेंगी. ऐसे में कुछ जनाधार वाली दो ही पार्टियां बच रही हैं जिनसे बीजेपी गठबंधन कर सकती है. इसमें से एक लोजपा(रामविलास) है, जिसके अध्यक्ष चिराग पासवान हैं.
क्या पारस की होगी छुट्टी
मोकामा और गोपालगंज उपचुनाव में एक बात और साफ हुई कि बीजेपी ये समझ रही है कि केंद्र में मंत्री पद पर बैठे पशुपति कुमार पारस किसी काम के नहीं रहे. तभी बीजेपी ने एक बार भी उन्हें चुनाव प्रचार के लिए नहीं कहा. दिल्ली में बैठे भाजपा के दिग्गज चिराग पासवान को प्रचार करने के लिए मनाते रहे. लोजपा(रामविलास) के सूत्रों के मुताबिक खुद अमित शाह के कई दफे की कोशिश के बाद चिराग पासवान चुनाव प्रचार करने के लिए राजी हुए. ऐसे में सवाल ये उठ रहा है कि भाजपा अब कितने दिनों तक पशुपति कुमार पारस को मंत्री बना कर रखेगी.
लेकिन चर्चा ये भी है कि चिराग पासवान फिलहाल खुद मंत्री बनने को राजी नहीं हैं. अमित शाह से बातचीत के दौरान भी उन्होंने मंत्री बनने के ऑफर को ठुकरा दिया था. बीजेपी के नेता ये भी कोशिश कर रहे हैं कि चाचा-भतीजा यानि पारस औऱ चिराग फिर से एक साथ आ जायें. लेकिन ऐसा हो पाना भी मुश्किल दिख रहा है.