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29-Dec-2024 10:05 AM
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Acharya Kishore Kunal Passed Away: बिहार से बड़ी खबर सामने आ रही है। राम मंदिर ट्रस्ट के सदस्य आचार्य किशोर कुणाल का निधन हो गया है। किशोर कुणाल का हृदय गति रुकने से निधन हुआ है। किशोर कुणाल को आज सुबह कार्डियक अरेस्ट हुआ और उन्हें तुरंत महावीर वत्सला अस्पताल ले जाया गया, जहां उनका निधन हो गया। आचार्य किशोर कुणाल महावीर मंदिर न्यास के सचिव थे। इसके साथ ही वह पटना के पूर्व SSP भी थे और इस दौरान उनकी एक पहचान बॉबी हत्याकांड से मिला था और आइए जानते हैं की क्या था बॉबी हत्याकांड और इसमें किशोर कुणाल की क्या भूमिका थी ?
कौन था किशोर कुणाल
किशोर कुणाल का जन्म 10 अगस्त 1950 को हुआ था। उन्होंने अपनी स्कूलिंग मुजफ्फरपुर जिले के बरुराज गांव से की। 20 साल बाद, उन्होंने पटना यूनिवर्सिटी से इतिहास और संस्कृत में ग्रेजुएशन किया। वे 1972 में गुजरात कैडर से भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारी बने और पुलिस अधीक्षक पद पर तैनात हुए। वहां से वे 1978 में अहमदाबाद के पुलिस उपायुक्त बने। वह संस्कृत अध्येता भी है।'
साल 1983 बिहार विधानसभा में काम करने वाली एक लड़की की मौत होती है और चार घंटे के अंदर चुपचाप उसके शरीर को ले जाकर दफना दिया जाता है। हालांकि, किसी तरह यह खबर एक अखबार के हाथ लगती है और यह खबर 11 मई 1983 को प्रकाशित की गई। इसके बाद देश भर में कोहराम मच गया ऐसे में फिर हरकत में आते हैं एक IPS ऑफिसर। इनका नाम था किशोर कुणाल।
बॉबी हत्याकांड से मिली नई पहचान
इस IPS ऑफिसर की तफ्तीश जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, एक-एक कर परतें खुलती हैं.कि लड़की को दफनाने की जल्दबाज़ी यूं ही नहीं की गई थी। उसकी मौत के बाद दो-दो रिपोर्ट तैयार हुई थीं। दोनों में मौत की वजह अलग-अलग। आगे तफ्तीश में कुछ बड़े नाम जुड़ते हैं और पता चलता है कि लड़की के रसूख वाले लोगों से संबंध थे। इतना ही नहीं पुलिस पर दबाव था कि इस मामले को जल्द से जल्द निपटाए। लेकिन जांच अफसर अड़ जाते हैं (Bihar Bobby Scandal) और वह IPS अधिकारी कोई और नहीं बल्कि किशोर कुणाल (Acharya Kishore Kunal Passed Away) थे।
नेताओं का दवाब
इसके बाद लड़की के शरीर को निकालकर पोस्ट मॉर्टम किया जाता है और जो रिपोर्ट आती है, उससे बिहार में हड़कंप मच जाता है। इसकी वजह यह होती है कि इससे कई नेताओं की कुर्सी तक हिला कर रख दिया था। इन नेताओं ने तो पुलिस वालों को यह तक कह दिया था कि यदि बॉबी सेक्स स्कैंडल को जल्द से जल्द रफा दफा करें वरना हर किसी की मुश्किलें बढ़ जाएगी।
फिर शुरू होता है राजनीति का असली खेल। सत्ता के हाथ न्याय का गला किस कदर दबोच लेते हैं, ये कहानी उसकी एक बानगी है क्या हुआ था 1983 में बिहार में? क्या था बिहार का बॉबी हत्याकांड, जिसने पूरे देश को हिला दिया था. कैसे एक पुलिस अफसर ने इस हत्याकांड की परतें खोलीं.और कैसे सत्ता ने उसके हाथ रोक दिए।
बिहार विधानसभा में टाइपिस्ट थी बॉबी
किस्से की शुरुआत होती है 11 मई 1983 से। पटना से निकलने वाले एक लोकल दैनिक अख़बार में उस रोज़ एक खबर छपी थी। खबर थी एक मौत की. श्वेता निशा त्रिवेदी नाम की एक लड़की, जो बिहार विधानसभा में टाइपिस्ट का काम करती थी। कांग्रेस की एक वरिष्ठ नेता और विधान परिषद की तत्कालीन सभापति राजेश्वरी सरोज दास की गोद ली हुई बेटी। 35 साल की श्वेता निशा दिखने में बेहद खूबसूरत थी। घर पर उनका निक नेम बेबी था. लेकिन उसकी मौत के बाद खबरनवीसों ने उसका नाम बॉबी कर दिया। आगे जाकर ये केस बॉबी हत्याकांड नाम से मशहूर हुआ। सबसे बड़ा सवाल था कि जल्दबाज़ी में बॉबी के शरीर को दफनाया क्यों गया और कहां दफनाया गया?
किशोर को लगा दाल में काला
इसके बाद एक पुलिस अधिकारी को इस दाल में काला नजर आ रहा था। इस पुलिस अधिकारी का नाम था, किशोर कुणाल (Acharya Kishore Kunal Passed Away) यह पटना के तत्कालीन SSP हुआ करते थे। 2021 में उनकी लिखी एक किताब रिलीज़ हुई, 'दमन तक्षकों का'. इस किताब में कुणाल ने इस केस को लेकर कई खुलासे किए। सिलसिलेवार तरीके से चलें तो कुणाल ने अखबार की इस खबर के आधार पर केस की जांच शुरू की।
उन्होंने सबसे पहले बॉबी की माताजी राजेश्वरी सरोज दास से पूछताछ की। दास ने उन्हें बताया कि 7 मई की शाम बॉबी अपने घर से निकली और फिर देर रात वापिस आई। घर आते ही उसने पेट में दर्द की शिकायत की. जल्द ही उसे खून की उल्टियां होने लगी। जल्दबाज़ी में उसे पटना मेडिकल कॉलेज ले जाया गया और इमरजेंसी वार्ड में भर्ती कराया गया। इसके बाद उसे घर भेज दिया गया जहां उसकी मौत हो गई। दास के पास से पुलिस को कुछ ऐसा मिला जिससे पक्का हो गया कि इस मामले में कुछ गड़बड़ जरूर है।
बॉबी की मौत के बाद दो रिपोर्ट तैयार
दरअसल बॉबी की मौत के बाद दो रिपोर्ट तैयार की गई थीं। एक जिसमें कहा गया था कि मौत की वजह इंटरनल ब्लीडिंग है। वहीं एक दूसरी रिपोर्ट में कहा गया था कि बॉबी की मौत हार्ट अटैक से हुई है। एक में मौत का वक्त सुबह के 4 बजे लिखा था, तो दूसरी में साढ़े चार बजे। असल में मौत की वजह क्या थी, और मौत का वक्त क्या था, ये पता करने का सिर्फ एक तरीका था। ऑफिसर कुणाल ने तय किया कि बॉबी का शरीर निकाल कर पोस्टमार्टम करवाया जाएगा. अदालत से इजाजत लेकर पोस्टमार्टम करवाया गया और उसमें से अलग ही बात निकलकर सामने आई। बॉबी के विसरा की जांच में 'मेलेथियन' नाम का जहर पाया गया. इस रिपोर्ट ने पुलिस के शक को हकीकत में बदल दिया। अब साफ हो चुका था कि बॉबी का कत्ल किया गया था।
बॉबी को जहर किसने दिया?
अब बारी थी पता लगाने की कि बॉबी को जहर किसने दिया? कुणाल ने बॉबी का बैकग्राउंड की तफ्तीश की तो पता चला कि बॉबी का रसूखदार लोगों से मिलना जुलना था। एक बात ये भी पता चली कि 1978 में जब बॉबी को विधानसभा में नौकरी मिली तो वहां एक विशेष प्राइवेट एक्सचेंज बोर्ड लगाया गया था। सिर्फ इसलिए ताकि बॉबी को टेलीफोन ऑपरेटर की नौकरी मिल जाए और बाद में वो बोर्ड बंद कर दिया गया और बॉबी को टाइपिस्ट के नौकरी मिल गयी। ऐसे में विधानसभा में नौकरी के दौरान उसकी कई नेताओं और विधायकों से अच्छी जान पहचान हो गई थी।
7 मई की रात वहां बॉबी से मिलने के लिए एक आदमी आया
तफ्तीश के लिए कुणाल एक और बार बॉबी की माताजी के सरकारी आवास पहुंचे। यहां उन्होंने पाया कि बॉबी की चीजें गायब हैं। उसी सरकारी आवास से लगा एक आउट हाउस हुआ करता था। जहां दो लड़के रहते और पुलिस ने उनसे पूछताछ की। उन लड़कों ने बताया कि 7 मई की रात वहां बॉबी से मिलने के लिए एक आदमी आया था। इस शख्स का नाम था रघुवर झा और यह कांग्रेस की एक बड़ी नेता राधा नंदन झा का बेटा था।
कांग्रेस की एक बड़ी नेता के बेटा का नाम आया था सामने
अपनी किताब में कुणाल बताते हैं कि बॉबी की मां राजेश्वरी सरोज दास ने भी बताया था रघुवर झा ने बॉबी को एक दवाई दी थी। जिसके बाद उसकी तबीयत बिगड़ने लगी और बाद में उसकी मौत हो गई. बॉबी ने चूंकि ईसाई धर्म अपना लिया था इसलिए उसे दफनाया गया। पुलिस के अनुसार केस का मुख्य अभियुक्त विनोद कुमार था। जिसने नकली डॉक्टर का रोल किया रघुवर झा के कहने पर बॉबी को दवाई पीने को दी। चूंकि केस में एक बड़े नेता के बेटे का नाम आ रहा था। इसलिए मामला हाई प्रोफ़ाइल बन गया। पुलिस की जांच जैसे -जैसे आगे बड़ी, सत्ता के गलियारों में हड़कंप मचने लगा। अदालत में केस पहुंचा।
वहां राजेश्वरी दास ने अपने बयान में बताया कि कैसे नकली डॉक्टर से बॉबी का इलाज़ करवाया गया और झूठी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट बना दी गई। केस की ख़बरें अब लोकल अख़बारों से देश के अख़बारों तक पहुंच चुकी थी। धीरे-धीरे इस केस में और कई लोगों का नाम जुड़ा। इनमें से कुछ सत्ताधारी विधायक और सरकार में मंत्री तक थे। जल्द ही मामले में राजनीति का रंग भी ओड़ लिया। विपक्ष की कम्युनिस्ट पार्टी ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री आरोपियों को न पकड़ने के लिए पुलिस पर दबाव डाल रहे हैं।
कर्पूरी ठाकुर ने CBI जांच की मांग
वहीं, विपक्ष के नेता कर्पूरी ठाकुर इस मामले में बार बार CBI जांच की मांग कर रहे थे। कुणाल लिखते हैं कि इस केस में उन पर काफी दबाव था उनके वरिष्ठ अधिकारी ऐसे बर्ताव कर रहे थे मानों सच का पता लगाकर उन्होंने कोई गुनाह कर दिया है। ऐसे में एक रोज़ कुणाल के पास सीधे मुख्यमंत्री का कॉल आया। जगन्नाथ मिश्र तब बिहार के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। कुणाल लिखते हैं कि CM ने उनसे पूछा, ये बॉबी कांड का मामला क्या है?
उसके बाद कुणाल ने उन्हें जवाब दिया, सर कुछ मामलों में आपकी छवि अच्छी नहीं है, किंतु चरित्र के मामले में आप बेदाग हैं, इस केस में पड़िएगा तो यह ऐसी आग है कि हाथ जल जाएगा। अत: कृपया इससे अलग रहें। किताब के अनुसार जवाब सुनकर मुख्यमंत्री ने फोन रख दिया था आगे क्या हुआ? चूंकि मामला नेताओं की साख से जुड़ा था इसलिए सरकार पर भी दबाव पड़ रहा था। इस बीच मई 1983 में लगभग 4 दर्ज़न विधायक और मंत्रियों की एक टीम मुख्यमंत्री से मिली. कहते हैं सरकार बचाने के लिए जग्गनाथ मिश्र प्रेशर में आ गएऔर 25 मई को ये केस CBI को सौंप दिया गया।
इधर, CBI की ये रिपोर्ट जैसे ही सामने आई, बिहार में विपक्ष ने फिर हंगामा खड़ा कर दिया क्योंकि CBI की रिपोर्ट नेताओं को क्लीन चिट दे रही थी तब पटना की फॉरेंसिक लैब की तरफ से भी CBI की रिपोर्ट पर सवाल उठाए गए। उनके अनुसार पोस्टमार्टम में सेंसिबल टैबलेट का कोई अंश नहीं था और बॉबी की मौत 'मेलेथियन' जहर से हुई थी। इस पर CBI ने सफाई देते हुए कहा कि गलती से लेबोरेटरी में रखे किसी दूसरे विसरा से बॉबी के विसरा में मेलेथियन चला गया होगा। ये कहकर CBI ने इसे आत्महत्या का केस बताकर केस बंद कर दिया।