Bihar Politics: बिहार विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो गई है. चुनाव में साल भर से भी कम समय बचा है. ऐसे में नीतीश सरकार अपनी छवि सुधारने,आमलोगों के गुस्से को कम करने में जुट गई है. हाल के दिनों में दो-तीन ऐसे मसले आए, जिससे आम लोगों में भारी आक्रोश दिखा. हालांकि सत्ताधारी गठबंधन अपने वोटरों के गुस्से को भांप गई है. लिहाजा डैमेज कंट्रोल में जुट गई है. सारे विवादित निर्णयों को ठंडे बस्ते में डाला जा रहा है. बात चाहे भूमि सर्वे की हो, स्मार्ट मीटर का मामला हो या फिर शिक्षकों के स्थानांतरण का. इन सभी मामलों में नीतीश सरकार बैकफुट पर है. दूसरी तरफ अपनी बिगड़ी छवि सुधारने को लेकर नीतीश सरकार ने विज्ञापन का सहारा लेना शुरू कर दिया है. विज्ञापन को लेकर सरकारी खजाना खोल दिया गया है.
प्रचार के भरोसे नीतीश सरकार
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बार-बार कहते हैं, ''वे काम में विश्वास करते हैं, प्रचार-प्रसार में नहीं.'' अखबारों में वैसे लोग प्रचार करते हैं जो काम नहीं करते, हम तो सिर्फ काम करते हैं. हालांकि ये बातें सिर्फ कहने भर की है. नीतीश सरकार ने भी प्रचार-प्रसार को लेकर खजाना खोल दिया है. सामने विधानसभा का चुनाव है, काफी कम समय बचा है. ऊपर से कई मुद्दों पर सरकार कटघरे में है. जनता में भारी आक्रोश है. लिहाजा नीतीश सरकार ने विज्ञापन वाला रास्ता अख्तियार किया है. बिहार की अखबारों में पूरे पन्ने का विज्ञाापन दिया जा रहा है. विज्ञापन के माध्यम से बताया जा रहा है, ''नीतीश कुमार की सरकार किसानों की हितैषी है.'' बुधवार को भी बिहार से छपने वाले विभिन्न अखबारों में रंगीन विज्ञापन जारी किया गया है, जिसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तस्वीर छपी है. विज्ञापन उर्जा विभाग का है. विज्ञापन खासकर किसानों के लिए जारी की गई है. मकसद यही है कि बिजली बिल को लेकर किसानों-मजदूरों में जो आक्रोश है, उसे कम किया जाय. विज्ञापन के माध्यम से बताया गया है कि सरकार किसानों से मामूली बिजली बिल लेती है. प्रति यूनिट बिजली का अधिकांश पैसा सरकार सब्सिडी के रूप में देती है. कृषि कार्य वाले कनेक्शन पर सिर्फ 55 पैसे प्रति यूनिट देना पड़ेगा. सरकार ने बताया है कि किसान कृषि कार्य के लिए कनेक्श लें, कोई परेशानी नहीं होगी. हर खेत तक सिंचाई का पानी पहुंचाने का हमारा लक्ष्य है.
गुस्सा शांत करने के लिए सर्वे कार्य को कोल्ड स्टोरेज में डाला
बिहार में चल रहे भूमि सर्वेक्षण कार्य को लेकर नीतीश सरकार ने बड़ा फैसला ले लिया है. किसानों-रैयतों के लिए सरकार ने बड़ी मोहलत देने की घोषणा की है. सरकार ने कहा है कि 31 मार्च तक स्वघोषणा पत्र जारी किया जा सकता है. लेकिन अंदरखाने की खबर है कि विधानसभा चुनाव 2025 तक भूमि सर्वे के काम को ढिलाई बरतने का निर्देश दे दिया गया है. विधानसभा चुनाव के बाद ही सर्वे कार्य में तेजी आने की संभावना है. क्यों कि बिहार की सत्ताधारी जेडीयू-भाजपा के नेता यह मानते हैं कि सर्वेक्षण का कार्य इतना आसान नहीं है. कागजात निकालने में लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. जिससे लोगों में आक्रोश पनप रहा. चुनाव से पहले सर्वेक्षण को लेकर सरकार ने सख्ती बरती तो लेने को देने पड़ जाएंगे. चुनाव में भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है. लिहाजा सरकार ने जमीन सर्वे के कार्य को एक तरह से कहें तो ठंडे बस्ते में डाल दिया है. हालांकि बीजेपी ने कहा है कि सर्वे का कार्य होकर रहेगा. भाजपा के विधायक व पूर्व राजस्व मंत्री रामसूरत राय कहते हैं कि सरकार हर हाल में भूमि सर्वेक्षण का कार्य कराएगी. सर्वेक्षण हो जाने से भू-माफियाओं पर लगाम लगेगा.
हर विवाद को खत्म करने की कोशिश
सरकारी स्कूल के शिक्षकों की छुट्टी, स्थानांतरण-पदस्थापन का मुद्दा भी काफी बढ़ गया था. जिससे न सिर्फ शिक्षक बल्कि उनके परिवार के लोगों में भारी आक्रोश पनप गया था. सत्ताधारी विधायकों ने यह बात नेतृत्व तक पहुंचाई,यह मसला कायम रहा तो चुनाव में सीधा नुकसान होगा. नतीजा यह हुआ कि सरकार बैकफुट पर चली गई. शिक्षकों की छुट्टी पहले की तरह कर दी गई है. वहीं स्थानांतरण पर सरकार ने नरमी बरतने के संकेत दे दिए हैं.
विवेकानंद की रिपोर्ट