बीडीओ चाहिये अपनी जाति का: बिहार के विधायकों के जातिवाद से ग्रामीण विकास विभाग परेशान, लेकिन पोस्टिंग करना मजबूरी

बीडीओ चाहिये अपनी जाति का: बिहार के विधायकों के जातिवाद से ग्रामीण विकास विभाग परेशान, लेकिन पोस्टिंग करना मजबूरी

PATNA : बिहार के विधायकों को चुनाव में वोट सारी जातियों का चाहिये लेकिन अपने क्षेत्र में पदाधिकारी अपनी ही जाति के चाहिये. जून का महीना चल रहा है औऱ इस महीने में बिहार में बीडीओ से लेकर दूसरे अधिकारियों की ट्रांसफर पोस्टिंग होती है. बीडीओ यानि प्रखंड विकास पदाधिकारी की पोस्टिंग ग्रामीण विकास विभाग करता है औऱ बिहार के विधायकों ने बीडीओ की पोस्टिंग को लेकर जो फरमाइश की है उससे विभाग सांसत में है. विधायकों को अपने क्षेत्र में अपनी जाति का बीडीओ चाहिये. सरकार परेशान है कि उनकी डिमांड को पूरा कैसे करें.


ट्रांसफर-पोस्टिंग का खेल
दरअसल बिहार सरकार ने नियम बना रखा है कि विभागों में अधिकारियों की ट्रांसफर पोस्टिंग जून के महीने में ही होगी. दूसरे महीने में किसी ट्रांसफर पोस्टिंग के लिए सीएम से मंजूरी लेनी पडती है. ऐसे मे बिहार का ग्रामीण विकास विभाग बडे पैमाने पर बीडीओ की ट्रांसफर पोस्टिंग की तैयारी में लगा है. नीतीश कुमार के कार्यकाल में एक परंपरा बन गयी है कि बीडीओ-सीओ की पोस्टिंग में विधायकों की अनुशंसा मान ली जाये. खास कर सत्तारूढ गठबंधन के विधायकों की बात मानी जाये. लिहाजा बीडीओ के ट्रांसफर से पहले बकायदा विधायकों से उनके क्षेत्र के प्रखंडों में पोस्टिंग के लिए बीडीओ के नाम की अनुशंसा की मांगी जाती है. इस बार विधायको ने जो अनुशंसा दी है उससे ग्रामीण विकास विभाग परेशान हो गया है.


बीडीओ चाहिये अपनी जाति का
ग्रामीण विकास विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि विधायकों की फरमाइश ही ऐसी आयी है कि पोस्टिंग करने में पसीने छूट जायेंगे. ऐसे विधायकों की तादाद अच्छी खासी है जिन्होंने अपनी जाति के ही अधिकारी की पोस्टिंग की मांग की है. एक-एक विधायक के विधानसभा क्षेत्र में तीन-तीन प्रखंड तक हैं. हद देखिये कि विधायक जी को तीनों प्रखंडों में अपनी जाति का ही विधायक चाहिये. जैसे,  मुजफ्फरपुर जिले के दो विधानसभा क्षेत्रों में तीन प्रखंड है. दोनों के विधायक एनडीए क हैं. विधायक जी ने जो सूची भेजी है उसमें तीन बीडीओ का नाम दिया गया है, तीनों विधायक के स्वजातीय हैं.  गंभीर बात ये है कि विधायक की सूची में एक ऐसे बीडीओ की पोस्टिंग की सिफारिश की गयी है, जिन पर गंभीर आरोप है. लेकिन विधायक की सिफारिश को मानना विभाग की मजबूरी है. 


पश्चिमी चंपारण के एक विधानसभा क्षेत्र का किस्सा भी कम दिलचस्प नही है. वहां दो प्रखंड हैं. सरकार का नियम है कि अगर गंभीर आरोप न हों तो किसी बीडीओ को तीन साल से पहले नहीं बदला जाये. लेकिन पश्चिम चंपारण के विधायक ने अपने क्षेत्र के दोनों प्रंखडों के लिए नये बीडीओ के नाम की सिफारिश कर दी है. जिन नाम की सिफारिश की गयी है वे दोनों विधायक की जाति के हैं. विभाग के सामने मुश्किल ये भी है कि दोनों प्रखंडों के मौजूदा बीडीओ का तीन साल का कार्यकाल पूरा नहीं हुआ है. ऐसे में विधायक जी की सिफारिश कैसे पूरा करें इस फेरे में ग्रामीण विकास विभाग परेशान है.


बीडीओ भी कर रहे हैं खेल
दिलचस्प बात है कि पोस्टिंग के लिए बीडीओ भी खेल कर रहे हैं. एक-एक बीडीओ अपने जाति के दो-तीन विधायकों को पकड़ रहे हैं औऱ उन सबों से अपन पोस्टिंग के लिए सिफारिशी पत्र लिखवा ले रहे हैं. आलम ये हो गया है कि ऐसे कई बीडीओ हैं जिनके नाम की सिफारिश तीन-तीन विधायकों ने कर दी है. ग्रामीण विकास विभाग मुश्किल में है कि किस विधायक की अनुशंसा को माने और किसे रिजेक्ट करे.


विकास के लिए विधायकों की सिफारिश मानते हैं
उधर ग्रामीण विकास विभाग के मंत्री श्रवण कुमार मानते हैं कि बीडीओ की पोस्टिंग में विधायकों की इच्छा का सम्मान किया जाता है. मंत्री के मुताबिक विधायक चुने हुए जनप्रतिनिधि होते हैं औऱ उनके समक्ष जनता की अपेक्षा को पूरा करने की चुनौती होती है. ऐसे में सरकार चाहती है कि विधायक और प्रखंड के अधिकारी मिल कर विकास कार्यों को सही तरीके से पूरा करायें. इसी कारण बीडीओ की पस्टिंग में ज्यादातर विधायकों की मांग को मान लिया जाता है. मंत्री श्रवण कुमार भी मानते हैं कि अगर सभी विधायकों की मांगों को मान लिया जाये तो बीडीओ की पोस्टिंग में सामाजिक समीकरण का ख्याल रख पाना संभव नहीं होगा.