बिहार के प्रमोद ने जीता गोल्ड : मां-बाप करते हैं मजदूरी, बैडमिंटन खरीदने के नहीं थे पैसे, बुआ ने लिया था गोद

बिहार के प्रमोद ने जीता गोल्ड : मां-बाप करते हैं मजदूरी, बैडमिंटन खरीदने के नहीं थे पैसे, बुआ ने लिया था गोद

VAISHALI : टोक्यो पैरालंपिक में बिहार के बेटे प्रमोद भगत ने इतिहास रच दिया. उन्होंने बैडमिंटन में भारत के लिए गोल्ड जीत लिया है. मेडल जीतने के बाद उनके गांव में जश्न का माहौल है. लेकिन प्रमोद भगत के पैरालंपिक तक पहुंचने का सफ़र बहुत कठिन रहा. उनके संघर्ष की कहानी काफी लंबी है. जब फर्स्ट बिहार की टीम प्रमोद भगत के गांव पहुंची तो वहां पर उनके माता-पिता, भाई-बहन और ग्रामीणों ने उनकी संघर्ष की कहानी सभी से साझा की. 



बिहार के हाजीपुर के रहने वाले प्रमोद भगत बैडमिंटन में पैरालिंपिक मेडल जीतने वाले पहले भारतीय बन गए. दुनिया के नंबर एक खिलाड़ी प्रमोद ने शनिवार को पुरूष एकल एसएल 3 वर्ग में ब्रिटेन के डेनियल बेथेल को हराकर गोल्ड जीता. यह पहला मौका है जब बैडमिंटन को पैरालिंपिक में जगह दी गई. 



प्रमोद बिहार के हाजीपुर के रहने वाले हैं, लेकिन 5 साल की उम्र में पैर में पोलियो के कारण उनकी बुआ बेहतर इलाज के लिए ओडिशा लेकर चली गई थीं. जहां उन्होंने अपनी कमजोरी को ताकत बनाया और बैडमिंटन खेलना शुरू किया. तब उनके पास बैडमिंटन खरीदने तक के पैसे नहीं थे. अपने भाई के बैडमिंटन से उन्होंने खेलना शुरू किया और आज देश भर में बिहार का परचम लहराया है. 



प्रमोद के पिता गांव में रहकर खेती करते हैं. पिता रामा भगत कहते हैं- "बचपन से ही उसकी खेल में रुचि थी. वो सबको हरा देता था. तभी उसको पोलियो हो गया. इससे सब निराश हो गए थे. हमारी बहन किशुनी देवी और बहनोई कैलाश भगत को कोई संतान नहीं है. उन्होंने उसे गोद ले लिया और अपने साथ भुवनेश्वर में रखा. वहीं उसकी शिक्षा-दीक्षा हुई. इंटर के बाद उसने ITI किया है.'



वहीं, प्रमोद के भाई सुरेश पटेल ने एक तरफ जहां प्रमोद की सफलता पर खुशी जाहिर की. वहीं दूसरी तरफ बिहार में खेल के लिए किसी तरह की कोई सुविधा नहीं होने पर उन्होंने नाराजगी जाहिर की. उन्होंने कहा कि आज अगर बिहार में खेल को बढ़ावा देने की व्यवस्था होती तो आज प्रमोद को ओडिशा जाने की जरूरत नहीं पड़ती.



टोक्यो में भारत को चौथा स्वर्ण पदक दिलाने के बाद भगत ने कहा, ‘यह मेरे लिए बहुत विशेष है, मेरा सपना सच हो गया. बेथेल ने बहुत कोशिश की, लेकिन मैं संयमित रहा और अपना बेहतर खेल दिखाया. मैं इस पदक को अपने माता-पिता और हर उस व्यक्ति को समर्पित करना चाहूंगा जिसने मेरा समर्थन किया. मैं खुश हूं कि मैं भारत को गौरवान्वित कर सका. मैं दो साल पहले जापान में इन्हीं प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ खेला था और हार गया था. वो मेरे लिए सीखने का मौका था. आज मैं उसी स्टेडियम में हूं और वही माहौल है लेकिन मैंने जीतने की रणनीति निकाली.’