PATNA : बिहार के गया जिले में मुस्लिम समुदाय के युवकों ने समाज के लिए एक मिसाल पेश किया है. दरअसल मुस्लिम युवकों ने एक हिंदू महिला का अंतिम संस्कार कर समाज में एक बड़ा संदेश पहुंचाया है. इस घटना का वीडियो भी सामने आया है, जिसमें मुस्लिम युवक 'राम नाम सत्य है' बोलकर कंधे पर अर्थी को ले जाते दिख रहे हैं.
मामला गया जिले के इमामगंज का है, जहां रानीगंज के तेतरिया गांव में मुस्लिम युवकों ने समाज के लिए एक मिसाल पेश किया. यहां मुस्लिम समाज के कुछ लोगों ने हिंदू महिला की अर्थी को कंधा दिया और उनका अंतिम संस्कार भी करवाया. सोशल मीडिया पर इसका वीडियो और फोटो जमकर वायरल हो रहा है. लोगों का कहना है कि ये हिंदु- मुस्लिम की एकता की मिसाल है.
किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित रही मृतक वाली महिला की पहचान 58 वर्षीय प्रभावती देवी पति दिग्विजय प्रसाद के रूप में की गई है. इस संबंध मगध ट्रेडर्स के प्रोपराइटर और सामाजिक कार्यकर्ता मो. शारीरिक जी ने बताया कि रानीगंज पंचायत के तेतरिया गांव की रहने वाली एक महिला कुछ दिनों से बीमार चल रही थी, उन्हें रानीगंज के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. अचानक उनकी तबीयत बिगड़ने लगी तो इसे देख वहां के डॉक्टरों ने महिला को कोरोना रिपोर्ट जांच करवाने की सलाह दी. जब महिला को उनके परिजनों के द्वारा इमामगंज सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में ले जाकर कोरोना की जांच की गई तो उसका रिपोर्ट नेगेटिव आया. इसके बाद उस महिला को उनके परिजनों ने घर लेकर आने लगे. इस दौरान घर पहुंचने से पहले ही मौत हो गई.
वहीं परिजनों को मन में आशंका थी कि उसे कोरोना संक्रमण होने के कारण ही मौत हुई है. जिसके कारण डरे सहमे परिजनों ने मृतक के शव को हाथ नहीं लगा रहे थे और उस शव को गाड़ी पर ही छोड़ दिए. शव दोपहर से लेकर रात 8 बजे तक उसी तरह गाड़ी पर पड़ा रहा. जब मुस्लिम समाज के लोगों को इस बात की जानकारी मिली तो वे परिवारवालों को दिलासा देने पहुंचे. उस शव को खुद उन्होंने अपने हाथों से गाड़ी से उतारकर निवारी पर रखा गया. साथ ही उन्होंने गांव से बांस काटकर मृतक की अर्थी बनाई. तब जाकर के यह सब देख उनके पीछे-पीछे मृतक के पती बुजुर्ग दिग्विजय प्रसाद, पुत्र निर्णाय कुमार और विकास आगे आए. इसके बाद मृतक के पार्थिव शरीर को उनके दोनों पुत्र और मुस्लिम समाज के युवाओं और बुजुर्गों ने कंधा देकर श्मशान तक पहुंचाया. इस दौरान रास्ते में राम नाम सत्य भी बोला और श्मशान में जाकर बाकायदा हिंदू रीति रिवाज से अंतिम संस्कार किया गया.
मृतक महिला के बेटे निर्णाय कुमार और विकास ने बताया कि मो. रफीक, मो. कलामी, मो. बारीक, मो. लड्डन और मो. शरीक ने अन्य मुस्लिम समाज के लोगों ने उसका सहयोग किया और यह हमारे समाज की एकता के लिए अच्छी बात . उधर दूसरी तरफ पड़ोसी मो. रफीक ने बताया कि हम दोनों समुदाय के लोगों को समाज में एक दूसरे के साथ रहना चाहिए और धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए.
मो. शरीक ने बताया कि समाज के पिछले कुछ समय से समाज में हिंदू-मुस्लिम के बीच बैर वाले सियासी बयान सामने आये हैं लेकिन इन तस्वीरों से साफ है कि भारतीय संस्कृति में गंगा-जमुना की तहजीब अभी भी शामिल है. हिंदू व्यक्ति की अर्थी को कंधा देने को मुस्लिम समाज के लोग इसे अपना फर्ज भी बता रहे हैं. उनका कहना है वह भारतवासी हैं और किसी से भेदभाव नहीं मानते हैं.