DESK: लोकसभा चुनाव के बाद से अपनी अलग दुकान चला रहे RLSP के चीफ उपेंद्र कुशवाहा अचानक से एक्शन में क्यों आ गये हैं. ऐसा क्या हुआ कि वे प्रदेश कांग्रेस के मुख्यालय में कांग्रेस प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल से मुलाकात करने पहुंच गये? सियासी सूत्र इसका कारण लालू और कुशवाहा के बीच शनिवार को हुई मुलाकात को बता रहे हैं. वे बता रहे हैं कि कुशवाहा को लालू प्रसाद यादव ने लॉलीपॉप थमा दिया है. तभी वे अचानक एक्शन में आ गये हैं.
लालू-कुशवाहा मुलाकात में क्या हुआ
दरअसल इस शनिवार को लालू प्रसाद यादव ने खुद उपेंद्र कुशवाहा को मिलने के लिए रांची के रिम्स में बुलाया था. राजद के एक सीनियर लीडर के मुताबिक लालू प्रसाद यादव अपने बेटे तेजस्वी यादव के नेतृत्व पर उठ रहे सवाल को लेकर खासी चिंता में हैं. कांग्रेस के छोटे से लेकर बड़े नेताओं ने तेजस्वी को महागठबंधन का नेता मानने से इंकार कर दिया है. उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी भी तेजस्वी को महागठबंधन का नेता या अगले चुनाव में मुख्यमंत्री पद का दावेदार मानने को तैयार नहीं थे. ऐसे में लालू ने कुशवाहा को अपने पाले में लाने के लिए ही मुलाकात के लिए बुलाया था. एक घंटे से ज्यादा समय तक चली इसी मुलाकात में कुशवाहा को मिला, जिसके बाद उनके तेवर बदल गये हैं.
क्या है लालू का उपेंद्र कुशवाहा को ऑफर
राजद के एक वरीय नेता के मुताबिक लालू प्रसाद यादव ने उपेंद्र कुशवाहा को विधानसभा चुनाव में डिप्टी सीएम का दावेदार बनाने का ऑफर दिया है. लालू के प्रस्ताव के मुताबिक अगर तेजस्वी यादव को सीएम पद का दावेदार मान लिया जाता है तो डिप्टी सीएम पद के दो दावेदार होंगे. एक उपेंद्र कुशवाहा और दूसरा कांग्रेस का कोई दलित नेता. सूत्रों के मुताबिक उपेंद्र कुशवाहा को ये ऑफर रास आ गया. इसके बाद से ही वे एक्शन में हैं.
शक्ति सिंह गोहिल से क्या बात हुई
सियासी परंपराओं के मुताबिक दो अलग-अलग पार्टियों के नेताओं की मुलाकात किसी पार्टी के दफ्तर में नहीं होती. लेकिन उपेंद्र कुशवाहा इतना सब्र भी नहीं कर सके. वे कांग्रेस के दफ्तर में शक्ति सिंह गोहिल से मुलाकात करने पहुंच गये. कांग्रेस के एक नेता के मुताबिक उपेंद्र कुशवाहा ने गोहिल से कहा कि वे कांग्रेस के आलाकमान को तेजस्वी के नेतृत्व में बिहार का विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए तैयार करें. हालांकि शक्ति सिंह गोहिल ने उन्हें कोई ठोस आश्वासन तक नहीं दिया.
मांझी का कोई मोल नहीं
लालू प्रसाद यादव के नये फार्मूले में जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी जैसे नेताओं का कोई महत्व नहीं रह गया है. लालू प्रसाद दोनों को खास तवज्जो देने को तैयार नहीं हैं. लिहाजा दोनों को ही लालू से मिलने का समय नहीं मिला है. लालू से मिलने रांची जा रहे जीतन राम मांझी को तो एक बार हजारीबाग से वापस लौटा दिया गया. दरअसल राजद के ज्यादातर नेताओं ने लालू को फीडबैक दिया है कि लोकसभा चुनाव के दौरान दोनों नेता अपने वोट बैंक को महागठबंधन में शिफ्ट नहीं करा पाये. विधानसभा चुनाव में भी कमोबेश यही स्थिति रहने की संभावना है. लिहाजा राजद, कांग्रेस और रालोसपा के गठबंधन पर ही ज्यादा फोकस करना बेहतर होगा.