DELHI: दिग्गज समाजवादी नेता शरद यादव को लगभग पांच दशकों के बाद देश के पावर सेंटर यानि दिल्ली के लुटियन जोन को छोड़ना पड़ा. मंगलवार को शऱद यादव ने दिल्ली के 7 तुगलक रोड का अपना बंगला खाली कर दिया. सांसद न होने के बावजूद सरकारी बंगले में रह रहे शरद यादव को लालू से आखिरी उम्मीद थी. उम्मीद टूट गयी तो आखिरकार शरद लुटियन जोन से विदा हो गये.
घर बदल रहा हूं राजनीति नहीं
वैसे 7 तुगलक रोड के इस बंगले में शरद यादव लगभग 22 सालों से रह रहे थे. मंगलवार को सरकारी बंगले से उनका सामान ट्रकों में भर कर ले जाया जाने लगा. शऱद यादव घर से बाहर आये तो मीडिया के लोग मौजूद थे. पत्रकारों ने सवाल पूछा-क्या उनकी राजनीति खत्म हो गयी. शऱद यादव सवाल सुन नहीं पा रहे थे. उनकी बेटी सुबाषिणी राज राव को शरद यादव के कानों में चीख कर ये बताना पड़ा कि मीडिया क्या सवाल पूछ रही है. शरद यादव बोले-घर बदल रहा हूं, राजनीति नहीं. मेरी राजनीति जारी रहेगी.
क्या लालू ने दगा दिया
दरअसल कुछ ही महीने पहले शरद यादव ने अपनी पार्टी का राजद में विलय कराया था. हालांकि शरद 2019 का लोकसभा चुनाव राजद के टिकट पर लड़े थे लेकिन फिर भी वे अपनी अलग पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल चला रहे थे. कुछ महीने पहले दिल्ली में उसका विलय राजद में कराया गया था. मीडिया ने मंगलवार को शऱद यादव से सवाल पूछा-क्या लालू यादव ने उन्हें राज्यसभा नहीं भेज कर दगा दिया. शरद यादव बोले-राज्यसभा चुनाव के लिए सारे उम्मीदवारों के नाम घोषित हो चुके हैं. अब उस पर चर्चा क्यों करें. वो पुरानी बात हो चुकी है, जिस पर बात करने की कोई जरूरत नहीं है.
वापस फिर लौटेंगे
शरद यादव 7 तुगलक रोड के बंगले से दिल्ली के छतरपुर में अपनी बेटी सुबाषिणी के घर शिफ्ट हो गये हैं. बंगला खाली होने के समय उनके साथ मौजूद पत्नी रेखा यादव ने मीडिया से कहा-ये मत समझिये कि हम दिल्ली के लुटियन जोन को हमेशा के लिए छोड़ कर जा रहे हैं. हम पूरी मजबूती के साथ वापस लौटेंगे. शायद शऱद यादव की पत्नी को अपने बेटे शांतनु औऱ बेटी सुबाषिणी से उम्मीदें होंगी. दोनों राजनीति में उतर चुके हैं. सुबाषिणी ने 2020 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लडा था. वहीं शऱद यादव के बेटे शांतनु 2024 के लोकसभा चुनाव में राजद के टिकट के दावेदार हैं.
बता दें कि शरद यादव 48 साल पहले दिल्ली आये थे. सिर्फ 27 साल की उम्र में ही उन्होंने 1974 में मध्यप्रदेश के जबलपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था. उस चुनाव को जीत कर वे दिल्ली आय़े थे. उसके बाद से वे हमेशा समाजवादी राजनीति के केंद्र में रहे. वे लंबे अर्से तक नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के भी अध्यक्ष रहे. 2017 में जब नीतीश ने राजद से नाता तोड़ कर बीजेपी के साथ सरकार बनायी तो शरद यादव ने उसका खुलकर विरोध किया. इसके बाद उन्हें जेडीयू से बाहर कर दिया गया था. उनकी राज्यसभा सदस्यता भी समाप्त हो गयी थी. लेकिन कोर्ट के फैसले से लुटियन जोन के बंगले में जमे रहे. आखिरकार उन्हें वो बंगला खाली करना पड़ा.