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Bhagwat Chapter One Raakshas Review: अरशद और जितेंद्र की जोड़ी ने रच दिया थ्रिलर धमाका, जानें पूरा रिव्यु

Bhagwat Review:अरशद वारसी और जितेंद्र कुमार की फिल्म ‘भागवत चैप्टर 1: राक्षस’ कल, यानी 17 अक्टूबर 2025 को रिलीज हो रही है। ये पहली बार है जब ये दोनों शानदार कलाकार साथ नजर आएंगे। जानिए कैसे इस डगमगाती कहानी को सस्पेंस और दमदार एक्टिंग ने खास बना दिया

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Thu, 16 Oct 2025 01:13:17 PM IST

Bhagwat Review

Bhagwat Review - फ़ोटो Google

Bhagwat Review: अरशद वारसी और जितेंद्र कुमार की फिल्म ‘भागवत चैप्टर 1: राक्षस’ कल, यानी 17 अक्टूबर 2025 को रिलीज हो रही है। ये पहली बार है जब ये दोनों शानदार कलाकार साथ नजर आएंगे। जानिए कैसे इस डगमगाती कहानी को सस्पेंस और दमदार एक्टिंग ने खास बना दिया है...


कैसे शुरू होती है भगवत की कहानी ?

फिल्म 'भागवत' की शुरुआत साल 2009 में रॉबर्ट्सगंज नाम के शहर से होती है। पूनम मिश्रा नाम की एक लड़की अचानक घर नहीं लौटती। उसके परिवार को शक होता है कि किसी दूसरे धर्म के लड़के ने उसे भगा लिया है। वे पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराते हैं। मामला धीरे-धीरे राजनीतिक रूप ले लेता है और शहर में दंगे भड़क उठते हैं। इसके बाद लखनऊ से एसीपी विश्वास भागवत (अरशद वारसी) का ट्रांसफर रॉबर्ट्सगंज किया जाता है। विश्वास एक गुस्सैल पुलिस अफसर हैं, जो सीधे अपराधियों की पिटाई करने से नहीं हिचकते। उनका खुद का भी कोई अतीत है, जिससे उन्हें जूझना पड़ता है। जब वे पूनम केस की जांच शुरू करते हैं, तो पता चलता है कि इस तरह की और भी कई लड़कियां गायब हुई हैं। जांच के दौरान इन सभी केसों का कनेक्शन एक प्रोफेसर समीर उर्फ राजकुमार (जितेंद्र कुमार) से जुड़ता है।


क्या दिखाती है फिल्म की कहानी ?

यह दिखाती है कि बिना सोच-समझे किसी पर भरोसा करना, लड़कियों का प्यार में पड़ना, कितना खतरनाक हो सकता है।

समीर लड़कियों को अपने जाल में फंसाता है और फिर भयानक अपराध करता है।

लेकिन फिल्म समीर के अतीत या उसकी मानसिक स्थिति को ठीक से नहीं समझा पाती। बस यही बताया जाता है कि वह बहुत तेज दिमाग का है, लेकिन क्यों वह ऐसा बन गया, इसका जवाब साफ नहीं मिलता।



कहानी की कमज़ोरियां:

कुछ किरदार अधूरे लगते हैं।

कई जगहों पर कहानी भटकती है और तर्कहीन बातें होती हैं (जैसे: गायब लड़की का फोन पुलिस ट्रैक क्यों नहीं करती? 2009 में बस अड्डे या लॉज में कैमरे क्यों नहीं हैं?).

अदालत का सीन, जिसमें समीर खुद वकील बनकर केस लड़ता है, अविश्वसनीय लगता है।


फिल्म में क्या अच्छा है?

कहानी सच की लड़ाई और साहस के बारे में एक गहरा संदेश देती है।

यह हकीकत से प्रेरित लगती है और कई सीन दिल को छू जाते हैं।

निर्देशक अक्षय शेरे ने कमजोर स्क्रिप्ट को भी अपने डायरेक्शन से बांधकर रखा है।

कैमरा वर्क और एडिटिंग भी अच्छी है।


अभिनय-

अरशद वारसी ने एक बार फिर साबित किया है कि वह सिर्फ कॉमेडी नहीं, गंभीर रोल भी बहुत अच्छे से कर सकते हैं।

जितेंद्र कुमार ने अपनी पुरानी इमेज से हटकर एक डरावना किरदार निभाया है, जो दर्शकों को चौंकाता है।

मीरा के रोल में आयेशा कदुसकर ने छोटा लेकिन अच्छा काम किया है।


फिल्म में कुछ कमज़ोरियां जरूर हैं, लेकिन ये एक अहम कहानी है जो दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती है — खासकर लड़कियों की सुरक्षा और भरोसे के मामलों पर। अंत में जब समीर को सजा मिलती है, तो एक तसल्ली महसूस होती है।