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Popcorn Brain Syndrome: क्या आप भी दिनभर करते हैं रील्स स्क्रॉल? तो हो जाएं सावधान; वरना हो सकते हैं पॉपकॉर्न ब्रेन सिंड्रोम का शिकार

Popcorn Brain Syndrome: अगर आप घंटों मोबाइल चलाते रहते हैं और रील्स देखते हुए लगातार स्क्रॉलिंग की आदत है और बार-बार एप्स बदलकर देखते रहते हैं तो ये आपकी सेहत के लिहाज से खतरे की घंटी है।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Mon, 24 Nov 2025 02:57:10 PM IST

Popcorn Brain Syndrome

पॉपकॉर्न ब्रेन सिंड्रोम - फ़ोटो GOOGLE

Popcorn Brain Syndrome: अगर आप दिनभर मोबाइल पर समय बिताते हैं, लगातार रील्स देखते हैं, बार-बार ऐप्स बदलकर स्क्रॉलिंग करते हैं, तो यह आपकी मानसिक और शारीरिक सेहत के लिए खतरे की घंटी है। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे लोग "पॉपकॉर्न ब्रेन सिंड्रोम" के शिकार हो रहे हैं। जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के मनोरोग विभाग के प्रोफेसर एंड हेड डॉ. कुमार गौरव ने बताया कि ओपीडी में ऐसे मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है।


डॉ. गौरव के अनुसार, जनवरी 2025 से अक्टूबर 2025 तक पॉपकॉर्न ब्रेन सिंड्रोम के 113 मरीज इलाज के लिए आए हैं। इनमें अधिकांश युवा हैं, जिनकी उम्र 25 से 45 साल के बीच है। ऐसे मरीजों में सबसे पहले डिजिटल उपवास की सलाह दी जाती है, यानी मोबाइल पर कम समय बिताना और सप्ताह में दो दिन बिना मोबाइल के रहना।


सदर अस्पताल के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. पंकज कुमार मनस्वी ने बताया कि लगातार मोबाइल और सोशल मीडिया की तेज रफ्तार सामग्री देखने से दिमाग एक जगह टिक नहीं पाता। विचार "पॉपकॉर्न की तरह" फूटने लगते हैं। इसका परिणाम मानसिक थकान, एकाग्रता में कमी, निर्णय लेने में कठिनाई, चिड़चिड़ापन, याददाश्त की समस्या और ब्रेन फॉग की स्थिति के रूप में सामने आता है। गंभीर मामलों में व्यक्ति सोचने-समझने और कार्य पर ध्यान केंद्रित करने में असमर्थ हो सकता है।


डिजिटल डिटॉक्सिंग और जीवनशैली में बदलाव इस समस्या से निजात पाने का मुख्य उपाय हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि मोबाइल उपयोग को सीमित करना, सप्ताह में निश्चित समय के लिए सोशल मीडिया से दूर रहना, ध्यान और योग करना दिमाग को आराम देने के लिए आवश्यक है। यदि भूलने की समस्या या मानसिक थकान बनी रहती है, तो मनोचिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए।


अध्ययनों से पता चला है कि पॉपकॉर्न ब्रेन सिंड्रोम का मुख्य कारण तेज गति से बदलती जानकारी को लगातार देखने की आदत है। लोग बार-बार नए कंटेंट की खोज में मोबाइल पर समय बर्बाद करते हैं, जिससे न्यूरोट्रांसमीटर पर दबाव पड़ता है और मस्तिष्क की कार्यक्षमता प्रभावित होती है। इसके अलावा नींद की कमी, लगातार स्क्रीन पर रहने और सोशल मीडिया पर तुलना करने की आदत इस समस्या को और बढ़ा देती है।


विशेषज्ञों का सुझाव है कि डिजिटल लाइफ को संतुलित करना अत्यंत आवश्यक है। मोबाइल का इस्तेमाल केवल आवश्यक कामों के लिए करें और सोशल मीडिया पर समय बिताने की सीमा तय करें। बच्चों और युवाओं में इस समस्या की संभावना अधिक है, इसलिए अभिभावकों को बच्चों की स्क्रीन टाइम पर निगरानी रखनी चाहिए। इसके अलावा, नियमित व्यायाम, पर्याप्त नींद, संतुलित आहार और माइंडफुलनेस तकनीक अपनाना भी मस्तिष्क के लिए लाभकारी है।


पॉपकॉर्न ब्रेन सिंड्रोम केवल मानसिक थकान या याददाश्त की समस्या तक सीमित नहीं है। लंबे समय तक यह ध्यान केंद्रित करने की क्षमता और निर्णय लेने की शक्ति को प्रभावित कर सकता है। इसलिए समय रहते सावधानी बरतना और डिजिटल डिटॉक्सिंग को जीवनशैली का हिस्सा बनाना जरूरी है। डॉक्टरों ने बताया कि अगर किसी को कार्य करने में मन नहीं लगता या लगातार ध्यान भटकता है, तो तुरंत विशेषज्ञ से सलाह लें। शुरुआती चेतावनी के संकेतों को नजरअंदाज करना गंभीर मानसिक समस्याओं का कारण बन सकता है।