1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sun, 07 Dec 2025 05:03:52 PM IST
'राइट टू डिस्कनेक्ट विधेयक, 2025' - फ़ोटो सोशल मीडिया
Right To Disconnect: यदि आप ऑफिस खत्म होने के बाद भी बॉस के ईमेल या फोन से परेशान रहते हैं, तो यह खबर आपके लिए हैं। बॉस की मनमानी से अब आपको जल्द ही कानूनन मुक्ति मिलेगी। इसे लेकर संसद में 'राइट टू डिस्कनेक्ट' विधेयक पेश किया गया है। जिसमें कर्मचारियों को छुट्टियों के दौरान काम से जुड़े फोन कॉल और ईमेल से डिस्कनेक्ट होने का प्रावधान है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) सांसद सुप्रिया सुले ने इस विधेयक को पेश किया। लोकसभा में पेश किये गये प्राइवेट मेंबर बिल का उद्धेश्य कर्मचारियों को ऑफिस की छुट्टी के बाद काम से जुड़े फोन कॉल और ईमेल का जवाब देने से छूट देना है।
एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले ने राइट टू डिस्कनेक्ट बिल, 2025 पेश किया। जो कर्मचारियों के लिए वेलफेयर अथॉरिटी बनाने और हर कर्मचारी को ऑफिस समय के बाद और छुट्टियों के दौरान काम से जुड़े कॉल और ईमेल से पूरी तरह दूर रहने का अधिकार देता है। इस बिल के पास होने के बाद कर्मचारियों को ऑफिस से छुट्टी के बाद बॉस के बार-बार आने वाले कॉल से निजात मिल सकेगा।
क्या है Right To Disconnect विधेयक?
'राइट टू डिस्कनेक्ट विधेयक, 2025' में कर्मचारियों को काम के घंटों यानी अपनी शिफ्ट के बाद ऑफिस के ईमेल और कॉल से डिस्कनेक्ट होने का अधिकार देने की बात की गई है। नौकरीपेशा लोगों को काम के घंटों के बाद पूरी तरह 'डिस्कनेक्ट' होने का कानूनी अधिकार मिल जाएगा। विधेयक में कर्मचारी कल्याण प्राधिकरण बनाने का प्रस्ताव है, जो यह सुनिश्चित करेगी कि किसी भी कर्मचारी पर ऑफिस के बाद कॉल या ईमेल का दबाव न डाला जाए।
विधेयक के अहम प्रावधान जानिए
विधेयक में प्रावधान है कि कर्मचारियों को ऑफिस के बाद आधिकारिक ईमेल-कॉल के लिए मजबूर न किया जाए। ऑफिस टाइम खत्म होते ही कर्मचारी का निजी समय शुरू हो जाता है। इस दौरान किसी भी तरह के फोन या ईमेल का जवाब देना बाध्यकारी नहीं होगा। ये नियम छुट्टियों पर भी लागू होगा। अगर विधेयक कानून बनता है, तो कर्मचारी कह सकेंगे कि वे ऑफिस समय के बाद किए गए कॉल-ईमेल का जवाब देने के लिए बाध्य नहीं हैं।
क्या पारित हो सकेगा विधेयक?
इस विधेयक को एक निजी विधेयक के तौर पर पेश किया गया है। दरअसल, लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों को उन विषयों पर विधेयक पेश करने की अनुमति है, जिन पर उन्हें लगता है कि सरकार को कानून बनाना चाहिए। कुछ मामलों को छोड़कर आमतौर पर ऐसे विधेयकों को प्रस्तावित कानून पर सरकार द्वारा जवाब देने के बाद वापस ले लिया जाता है। इन्हें पारित करा पाना बेहद मुश्किल होता है।