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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Fri, 10 Oct 2025 07:04:48 AM IST
प्रतीकात्मक - फ़ोटो Meta
Global Warming: धीरे-धीरे जलवायु परिवर्तन का असर अब साफ-साफ दिखने लगा है और ये सिर्फ गर्मी या बाढ़ तक ही सीमित नहीं है। वैज्ञानिकों का नया अध्ययन चेतावनी दे रहा है कि अगर हम जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को तुरंत न रोके तो इस सदी के अंत तक दुनिया की 10 करोड़ से ज्यादा इमारतें समुद्र की चपेट में आ सकती हैं। ये आंकड़ा अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया, मध्य और दक्षिण अमेरिका के तटीय इलाकों के लिए है। इस अध्ययन में 0.5 मीटर से लेकर 20 मीटर तक समुद्र स्तर के बढ़ने के सीनैरियो का विश्लेषण किया गया है।
यह अध्ययन बताता है कि अगर उत्सर्जन कम न हुआ तो 5 मीटर या इससे ज्यादा बढ़ोतरी हो सकती है, जिससे 10 करोड़ इमारतें खतरे में पड़ेंगी। यहां तक कि 0.5 मीटर की मामूली बढ़ोतरी से भी 30 लाख इमारतें डूब सकती हैं। प्रोफेसर जेफ कार्डिले कहते हैं, "हमें छोटी बढ़ोतरी से भी इतनी इमारतों पर खतरा होना चौंकाने वाला लगा।" ये न सिर्फ घरों को नुकसान पहुंचाएगा, बल्कि बंदरगाह, रिफाइनरी और सांस्कृतिक साइट्स को भी तबाह कर देगा। ग्लोबल साउथ के घनी आबादी वाले तटीय इलाकों में ये संकट सबसे ज्यादा होगा, जहां अर्थव्यवस्था समुद्र पर ही निर्भर है।
वहीं, भारत भी इससे अछूता नहीं है। मुंबई में 830 वर्ग किमी इलाका डूब सकता है और 2100 तक आंकड़ा 21.8% तक पहुंच सकता है। चेन्नई का 7.3% हिस्सा अगले 16 सालों में जलमग्न हो सकता है और सदी के अंत तक ये 18% हो जाएगा। यनम और थूथुकुड़ी में 10% जमीन, जबकि पणजी, कोच्चि, मंगलुरु, विशाखापत्तनम, हल्दिया, उडुपी, पारादीप और पुरी में 1-5% क्षेत्र प्रभावित हो सकता है। लक्षद्वीप के छोटे द्वीप जैसे चेतलाट और अमिनी में 70-80% तट रेखा खतरे में है, जहां समुद्र स्तर सालाना 0.4-0.9 मिमी बढ़ रहा। ये आंकड़े बताते हैं कि भारत के तटीय शहरों को तत्काल प्लानिंग की जरूरत है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि ये खतरा अनिवार्य है, लेकिन उत्सर्जन कटौती से इसे कम किया जा सकता है। प्रोफेसर एरिक गल्ब्रेथ कहते हैं, "समुद्र स्तर बढ़ना हर किसी को प्रभावित करेगा, चाहे हम तट पर रहें या न रहें।" शहरी प्लानर्स को अब मजबूत बाढ़ रोधी दीवारें, ऊंचे भवन और माइग्रेशन प्लान बनाने होंगे। भारत में मुंबई-चेन्नई जैसे शहरों के लिए ये चेतावनी घंटी है वरना करोड़ों लोगों का विस्थापन और अरबों का आर्थिक नुकसान हो सकता है।