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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Mon, 17 Nov 2025 07:58:49 AM IST
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राज्य में विधानसभा चुनावों के संपन्न होने और परिणाम आने के बाद सरकार गठन की प्रक्रिया कई संवैधानिक चरणों से गुजरती है। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण चरण वह होता है जब मौजूदा मुख्यमंत्री राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंपते हैं।
यह केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की एक अनिवार्य परंपरा और संवैधानिक बाध्यता है। मुख्यमंत्री द्वारा प्रस्तुत किया गया यह इस्तीफा नई सरकार के गठन के लिए रास्ता साफ करता है और यह सुनिश्चित करता है कि पुरानी मंत्रिपरिषद, जिसे पिछले जनादेश पर चुनी गई विधानसभा का समर्थन प्राप्त था, उसका कार्यकाल विधिवत रूप से समाप्त हो जाए।
संविधान क्या कहता है?
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 164 राज्य में मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद की नियुक्ति, अधिकारों और कार्यकाल से संबंधित बुनियादी प्रावधानों को निर्धारित करता है। इस अनुच्छेद के तहत:
मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है।
मंत्रीगण भी राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री की सलाह पर नियुक्त किए जाते हैं।
मुख्यमंत्री और सभी मंत्री राज्यपाल के प्रसादपर्यंत अपने पद पर बने रहते हैं।
व्यवहार में, वे तब तक पद पर बने रहते हैं जब तक उन्हें विधानसभा में बहुमत का समर्थन प्राप्त हो।
चुनाव परिणाम आने के बाद पिछले मुख्यमंत्री को इस्तीफा इसलिए देना होता है, क्योंकि उनकी सरकार पिछली विधानसभा के समर्थन पर टिकी होती है। नई विधानसभा के गठन के साथ ही पिछली मंत्रिपरिषद का आधार स्वतः समाप्त हो जाता है। मुख्यमंत्री का इस्तीफा इस विघटन को संवैधानिक रूप से औपचारिक बनाता है और इस बात की पुष्टि करता है कि अब नई सरकारं बनाने का अधिकार नवीन जनादेश को प्राप्त है।
क्या इस्तीफा देने के साथ ही सरकार खत्म हो जाती है?
मुख्यमंत्री का इस्तीफा स्वीकार होने के बाद निवर्तमान सरकार तकनीकी रूप से भंग हो जाती है, लेकिन व्यवहारिक तौर पर शासन का कामकाज अचानक रुक नहीं सकता। इसलिए राज्यपाल आमतौर पर निवर्तमान मुख्यमंत्री को कार्यवाहक मुख्यमंत्री के रूप में तब तक काम करते रहने के लिए कहते हैं, जब तक नई सरकार का गठन और शपथ ग्रहण पूरा न हो जाए। यह व्यवस्था राज्य में शासन की निरंतरता बनाए रखने के लिए होती है।
कार्यवाहक मुख्यमंत्री और उनकी मंत्रिपरिषद सामान्य प्रशासन चलाने का अधिकार रखते हैं, लेकिन वे कोई बड़ा नीतिगत फैसला नहीं ले सकते। इस अवधि में वित्तीय आवंटन, नई योजनाएं, बड़े प्रशासनिक तबादले और संवेदनशील फैसलों पर रोक रहती है। इसे 'लिमिटेड अथॉरिटी' की स्थिति कहा जाता है, जो केवल दिन-प्रतिदिन के शासन संचालन तक सीमित रहती है।
नया जनादेश और नई सरकार का रास्ता
जैसे ही मुख्यमंत्री राज्यपाल को इस्तीफा सौंपते हैं, अगले चरण की शुरुआत होती है — यानी नई सरकार के गठन की प्रक्रिया। संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार:
1. राज्यपाल नई विधानसभा में बहुमत साबित करने वाले दल या गठबंधन के नेता को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करते हैं।
2. आमंत्रित नेता मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते हैं।
3. इसके बाद वे अपनी नई मंत्रिपरिषद का गठन करते हैं, जिसे विधानसभा में बहुमत साबित करना होता है।
यह पूरा क्रम दर्शाता है कि भारत में सत्ता का हस्तांतरण न केवल शांतिपूर्ण तरीके से होता है, बल्कि वह सख्त संवैधानिक नियमों और लोकतांत्रिक परंपराओं से संचालित होता है। चुनाव परिणाम चाहे कितने भी जटिल क्यों न हों, संवैधानिक ढांचा हर स्थिति में सरकार गठन की प्रक्रिया को स्पष्ट दिशा प्रदान करता है।
क्यों आवश्यक है यह प्रक्रिया?
विशेषज्ञों के अनुसार, मुख्यमंत्री द्वारा इस्तीफा देना एक ऐसे लोकतांत्रिक दायित्व का प्रतीक है, जो जनता के नए जनादेश का सम्मान करता है। यह संदेश देता है कि सत्ता किसी व्यक्ति या दल की स्थायी संपत्ति नहीं, बल्कि जनता द्वारा निर्धारित अधिकार है, जो हर चुनाव में बदल सकता है। इस इस्तीफे से यह भी सुनिश्चित होता है कि नई विधानसभा और नई सरकार का अधिकार निर्विघ्न रूप से स्थापित हो सके।
इसके अलावा, यह प्रक्रिया मामलों में भ्रम और विवाद को कम करती है। यदि पुरानी सरकार स्वतः पद पर बनी रहती, तो सत्ता हस्तांतरण अस्पष्ट होता, जिससे संवैधानिक व्यवस्थाओं पर प्रश्न उठ सकता था।
चुनाव परिणाम आने के बाद मुख्यमंत्री का इस्तीफा भारतीय लोकतंत्र का वह महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो वर्षों से स्थापित संवैधानिक परंपराओं को मजबूत करता है। यह कदम न केवल पुरानी मंत्रिपरिषद के कार्यकाल को विधिवत समाप्त करता है, बल्कि नई सरकार को जिम्मेदारियों के हस्तांतरण का आधिकारिक अवसर देता है। इसी प्रक्रिया से लोकतांत्रिक शासन की स्थिरता और पारदर्शिता सुनिश्चित होती है, और जनता के नए जनादेश को सम्मान मिलता है।