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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Wed, 08 Oct 2025 08:46:25 AM IST
पटना हाईकोर्ट - फ़ोटो FILE PHOTO
Bihar High Court : पटना हाईकोर्ट ने अपहरण और हत्या के मामले में सीपीआई (माले) के पूर्व विधायक मनोज मंजिल सहित 23 आरोपियों की सजा को बरकरार रखा है। न्यायालय ने आरोपियों की ओर से दायर तीन आपराधिक अपीलों को खारिज करते हुए आरा सिविल कोर्ट के एमपी-एमएलए कोर्ट के फैसले को सही ठहराया है। अदालत ने अपने 72 पन्नों के विस्तृत निर्णय में सभी आरोपियों को एक सप्ताह के भीतर आरा कोर्ट में आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया है।
हाईकोर्ट की खंडपीठ, जिसमें जस्टिस राजीव रंजन प्रसाद और जस्टिस अजीत कुमार शामिल थे, ने अपने आदेश में यह भी स्पष्ट किया कि जिन आरोपियों को जमानत दी गई थी, उनकी जमानत तुरंत प्रभाव से रद्द की जाती है। कोर्ट ने कहा कि दोषियों को अब किसी भी प्रकार की राहत नहीं दी जाएगी और उन्हें कानून के अनुसार आत्मसमर्पण करना होगा।
यह मामला वर्ष 2015 के अजीमाबाद थाना क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। शिकायतकर्ता चंदन सिंह ने अपनी लिखित शिकायत में आरोप लगाया था कि उनके पिता जेपी सिंह, जो अगड़ी जाति से आते थे, भाकपा-माले की आमसभा से लौटते समय हमलावरों के निशाने पर आ गए। उन्होंने बताया कि रास्ते में मनोज मंजिल और उनके साथियों ने जेपी सिंह को पकड़ लिया और लाठी, डंडे, ईंट और पत्थर से बेरहमी से पिटाई की। गंभीर चोटों के कारण मौके पर ही उनकी मौत हो गई।
इसके बाद आरोपी शव को अपने साथ लेकर चले गए। पुलिस ने बाद में शव बरामद किया और मामले में कांड संख्या 51/2015 दर्ज की गई। जांच और सुनवाई के बाद, आरा सिविल कोर्ट के एमपी-एमएलए कोर्ट ने बीते वर्ष 13 फरवरी 2024 को सभी 23 आरोपियों को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। आरा एमपी-एमएलए कोर्ट ने दोषियों पर 10-10 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया था। इसी फैसले को चुनौती देते हुए आरोपियों की ओर से हाईकोर्ट में आपराधिक अपील दायर की गई थी। लेकिन हाईकोर्ट ने अब निचली अदालत के फैसले को सही मानते हुए अपील खारिज कर दी।
हाईकोर्ट के इस फैसले पर भाकपा (माले) राज्य सचिव कुणाल ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने इस निर्णय को “दुर्भाग्यपूर्ण और राजनीतिक दबाव में लिया गया फैसला” बताया। कुणाल ने कहा कि पार्टी इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी। उनका कहना है कि मनोज मंजिल और अन्य साथियों को झूठे आरोपों में फंसाया गया है और न्यायिक प्रक्रिया में कई खामियां हैं।
कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद अब आरोपियों के पास सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) दाखिल करने का विकल्प है। यदि वहां से भी राहत नहीं मिलती, तो उन्हें उम्रकैद की सजा भुगतनी होगी। हाईकोर्ट के इस फैसले ने बिहार की सियासत में नई हलचल पैदा कर दी है। एक तरफ भाकपा (माले) इस निर्णय को राजनीतिक साजिश बता रही है, वहीं दूसरी ओर विरोधी दल इसे न्याय की जीत करार दे रहे हैं। आने वाले दिनों में इस मामले का असर बिहार की राजनीति और आगामी विधानसभा चुनावों पर भी देखने को मिल सकता है।