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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sun, 09 Nov 2025 12:12:48 PM IST
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Bihar Election 2025 : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दूसरे चरण में अब सियासी माहौल और भी गरम हो गया है। इस चरण में मुख्य रूप से सिमांचल के इलाके में मतदान होना है, जो राज्य का मुस्लिम बहुल इलाका माना जाता है। इस क्षेत्र में भाजपा के लिए राजनीतिक ज़मीन मजबूत करना हमेशा से एक चुनौती रहा है। ऐसे में संघ प्रमुख मोहन भागवत का हालिया बयान राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बन गया है। विपक्षी दल इसे मुद्दा बनाकर भाजपा पर हमलावर हो गए हैं, जबकि भाजपा बैकफुट पर नज़र आ रही है।
दरअसल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने हाल ही में एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि भारत में कोई भी "अहिंदू" नहीं है। उन्होंने कहा कि इस देश में रहने वाला हर व्यक्ति हिंदू सभ्यता से जुड़ा है और उसके पूर्वज हिंदू ही रहे हैं। भागवत ने कहा, “हमारे देश में मुसलमान हों या ईसाई, हम सभी एक ही सभ्यता से उपजे हैं। हमारे पूर्वज एक ही हैं। वास्तव में भारत में कोई भी अहिंदू नहीं है।”
उनके इस बयान ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। सिमांचल, पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज और अररिया जैसे जिलों में जहां मुस्लिम आबादी 45 से 70 प्रतिशत तक है, वहां इस बयान का असर चुनावी समीकरणों पर पड़ सकता है। भाजपा इन इलाकों में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए काफी प्रयास कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह समेत कई केंद्रीय नेताओं ने यहां जनसभाएं की हैं। लेकिन आरएसएस प्रमुख के इस बयान के बाद विपक्ष को भाजपा पर हमला करने का मौका मिल गया है।
भागवत का बयान और उसका सियासी सन्दर्भ
मोहन भागवत ने अपने संबोधन में कहा, “अंग्रेजों ने हमें राष्ट्र नहीं बनाया। भारत प्राचीन काल से ही एक राष्ट्र रहा है। हमारी संस्कृति हिंदू संस्कृति है और यही हमारी पहचान है। हम खुद को कुछ भी कहें — हिंदू, मुसलमान, ईसाई — लेकिन हमारी जड़ें एक ही हैं।” उन्होंने आगे कहा कि “भारत एक हिंदू राष्ट्र है और संविधान भी इसका विरोध नहीं करता। सनातन धर्म और भारत को अलग नहीं किया जा सकता। भारत की प्रगति, सनातन धर्म की प्रगति के साथ ही संभव है।”
भागवत ने यह भी स्पष्ट किया कि आरएसएस सत्ता के लिए काम नहीं करता, बल्कि समाज को एकजुट करने और भारत माता की महिमा बढ़ाने के लिए प्रयासरत है। उन्होंने कहा कि “हमारा लक्ष्य किसी राजनीतिक दल को फायदा पहुंचाना नहीं बल्कि समाज में एकता और आत्मगौरव की भावना को मजबूत करना है।”
सियासी प्रतिक्रिया और विपक्ष का हमला
जैसे ही यह बयान सामने आया, विपक्षी दलों ने भाजपा और संघ पर हमला बोलना शुरू कर दिया। राजद के नेता ने कहा कि “जब चुनाव सिमांचल में है, तब ऐसे बयान आना स्वाभाविक है। भाजपा और संघ जानबूझकर धार्मिक मुद्दों को उछालकर असली मुद्दों – बेरोजगारी, महंगाई और विकास – से ध्यान भटकाना चाहते हैं।”
दूसरी ओर भाजपा ने इस बयान से दूरी बनाने की कोशिश की है। पार्टी के प्रवक्ताओं ने कहा कि “मोहन भागवत का बयान सांस्कृतिक एकता की दृष्टि से दिया गया है, इसका कोई राजनीतिक अर्थ नहीं निकाला जाना चाहिए।” भाजपा ने यह भी कहा कि वह “सबका साथ, सबका विकास” के एजेंडे पर चुनाव लड़ रही है और समाज के हर वर्ग तक पहुंचने का प्रयास कर रही है।
सिमांचल की सियासत पर असर
सिमांचल का इलाका हमेशा से बिहार की राजनीति में अहम भूमिका निभाता रहा है। यहां की 24 विधानसभा सीटों में से अधिकतर सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में रहते हैं। आरजेडी, कांग्रेस और जदयू इस क्षेत्र में परंपरागत रूप से मजबूत मानी जाती हैं, जबकि भाजपा का प्रभाव अपेक्षाकृत कम रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मोहन भागवत का बयान भाजपा की रणनीति को प्रभावित कर सकता है। भाजपा जहां विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर वोट मांग रही है, वहीं विपक्ष अब इस बयान को लेकर भाजपा पर “धार्मिक ध्रुवीकरण” का आरोप लगा रहा है।
पॉलिटिकल एनालिस्ट के मुताबिक, “भागवत का बयान संघ की विचारधारा को दर्शाता है, लेकिन चुनावी संदर्भ में यह भाजपा के लिए उल्टा भी पड़ सकता है, खासकर मुस्लिम बहुल इलाकों में।” उन्होंने कहा कि “सिमांचल में भाजपा पहले से ही कमजोर स्थिति में है। इस बयान से विपक्ष को वोटर्स को एकजुट करने का अवसर मिल सकता है।”
भाजपा की रणनीति और आगे की राह
भाजपा ने सिमांचल के इलाके में सामाजिक समीकरणों को ध्यान में रखते हुए इस बार कई नए चेहरे मैदान में उतारे हैं। पार्टी ने पिछड़े वर्गों और महिलाओं पर विशेष ध्यान दिया है। साथ ही, प्रधानमंत्री मोदी ने भी अपनी रैलियों में “विकास” और “सशक्त बिहार” को मुख्य विषय बनाया है।
लेकिन अब जब चुनाव प्रचार अपने अंतिम दौर में है, तो मोहन भागवत का यह बयान भाजपा के संदेश को पीछे धकेल सकता है। भाजपा के अंदरूनी सूत्र मानते हैं कि पार्टी को अब अपने प्रचार का फोकस विकास और स्थानीय मुद्दों पर रखना होगा ताकि विपक्ष के आरोपों का प्रभाव कम किया जा सके।
सिमांचल के चुनावी परिदृश्य में मोहन भागवत का यह बयान निश्चित रूप से नई हलचल पैदा कर चुका है। भाजपा जहां इसे सांस्कृतिक एकता का संदेश बता रही है, वहीं विपक्ष इसे चुनावी ध्रुवीकरण की कोशिश करार दे रहा है। अब देखना यह होगा कि 11 नवंबर को होने वाले मतदान में इस बयान का क्या प्रभाव पड़ता है — क्या भाजपा अपनी स्थिति संभाल पाती है या विपक्ष को इसका राजनीतिक लाभ मिलेगा।