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Bihar politics news : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में भाजपा ने ‘मिशन रिकवरी प्लान’ के तहत 2020 में हारी 36 सीटों पर दोबारा कब्जा जमाने की रणनीति बनाई है। पार्टी ने इन सीटों को दो चरणों में बांटकर बूथ स्तर पर जातीय समीकरण और संगठन की ताकत से जीत की तैया

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Fri, 10 Oct 2025 09:32:07 AM IST

Bihar politics news

Bihar politics news - फ़ोटो FILE PHOTO

Bihar politics news : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारी में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने पूरी ताकत झोंक दी है। इस बार पार्टी ने “मिशन रिकवरी प्लान” नाम से विशेष अभियान शुरू किया है, जिसका मकसद 2020 में हारी हुई सीटों पर दोबारा कब्जा जमाना है। 2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 110 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 74 सीटों पर जीत दर्ज की थी। हालांकि, बाद में हुए उपचुनावों में कुढ़नी, रामगढ़ और तरारी जैसी सीटों पर पार्टी ने वापसी की थी।


अब भाजपा की निगाह उन 36 सीटों पर है जहां 2020 में हार मिली थी। पार्टी ने इन सीटों को दो चरणों में बांटकर अलग-अलग रणनीति तैयार की है। पहले चरण की सीटों में बैकुंठपुर, दरौली, सीवान, राघोपुर, गरखा, सोनपुर, कुढ़नी, मुजफ्फरपुर, बखरी, उजियारपुर, बक्सर, तरारी, शाहपुर, बख्तियारपुर, फतुहा, दानापुर, मनेर और बिक्रम शामिल हैं। दूसरे चरण में कल्याणपुर, भागलपुर, रजौली, हिसुआ, बोधगया, गुरुआ, औरंगाबाद, गोह, डिहरी, काराकाट, रामगढ़, मोहनिया, भभुआ, चैनपुर, जोकिहाट, बायसी, किशनगंज और अरवल सीटें शामिल हैं।


इन सभी सीटों के लिए पार्टी ने बूथ स्तर पर जातीय और सामाजिक समीकरणों की गहराई से समीक्षा की है। खासकर उन जिलों पर फोकस किया गया है, जहां 2020 में पार्टी का “संपूर्ण सफाया” हुआ था जैसे औरंगाबाद, रोहतास, कैमूर और बक्सर। दिलचस्प बात यह है कि 2015 में कैमूर की चारों सीटें भाजपा के खाते में थीं, लेकिन 2020 में यहां एक भी सीट नहीं मिली। यही वजह है कि शाहाबाद और मगध क्षेत्र इस बार भाजपा के लिए प्राथमिक फोकस बन गए हैं।


पार्टी ने इन इलाकों में लोकप्रिय चेहरों को मैदान में उतारने की रणनीति अपनाई है। भोजपुरी स्टार पवन सिंह को फिर से भाजपा के प्रचार अभियान में सक्रिय किया गया है। पवन सिंह की क्षेत्रीय पकड़ और लोकप्रियता को देखते हुए पार्टी उन्हें जनसंपर्क अभियान का अहम चेहरा बना रही है। इसके अलावा, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLM) प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा का मगध और शाहाबाद में गहरा प्रभाव है। हाल ही में भाजपा के बिहार प्रभारी विनोद तावड़े ने दिल्ली में पवन सिंह और कुशवाहा की मुलाकात कराई थी, जिसे राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण संकेत माना जा रहा है।


भाजपा संगठन ने हर हारी हुई सीट के लिए अलग-अलग ‘माइक्रो प्लान’ तैयार किया है। इसमें पिछले उम्मीदवारों का मूल्यांकन, स्थानीय नेताओं से फीडबैक, सामाजिक समीकरणों का पुनर्विश्लेषण और एनडीए सहयोगियों के साथ संभावित सीट तालमेल पर विशेष जोर दिया गया है। हालांकि, एनडीए में सीटों का बंटवारा अभी तय नहीं हुआ है, लेकिन भाजपा ने स्पष्ट कर दिया है कि चाहे सीट बदले या न बदले, पार्टी हर क्षेत्र में संगठन के दम पर पूरी ताकत झोंकेगी।


रणनीतिकारों का मानना है कि 2020 में भाजपा की कुछ सीटें हार की वजह से नहीं, बल्कि सीट शेयरिंग की मजबूरियों के चलते छूटी थीं। इस बार पार्टी ऐसे इलाकों पर भी फोकस कर रही है, जहां उसका संगठन मजबूत है लेकिन पिछली बार सहयोगियों को उम्मीदवार बनाया गया था।


कुल मिलाकर, भाजपा ने बिहार चुनाव को दो हिस्सों में बांट दिया है। ‘सेव द सीट्स’ (जीती सीटें बचाओ अभियान) और ‘रिक्लेम द लॉस्ट’ (हारी सीटें वापस पाओ रणनीति)।शाहाबाद और मगध की धरती भाजपा के लिए इस चुनाव में सबसे बड़ी परीक्षा साबित होगी। यहां से पार्टी अपने खोए जनाधार को फिर से पाने की पूरी कोशिश में है, ताकि 2025 में बिहार की सत्ता में फिर से दमदार वापसी की जा सके।