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1st Bihar Published by: First Bihar Updated Fri, 10 Oct 2025 10:33:29 AM IST
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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नजदीक आते ही राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। राज्य में दो चरणों में मतदान होना है और इसी बीच गठबंधन और पार्टी स्तर पर सीटों को लेकर असंतोष और अनबन भी देखने को मिल रही है। इसी कड़ी में अब एक बड़ा राजनीतिक झटका जदयू को लगा है। पार्टी के दो कद्दावर नेता, जो कुशवाहा जाति से आते हैं, ने पार्टी छोड़ने की घोषणा की है। इन दोनों नेताओं के राष्ट्रीय जनता दल (राजद) में शामिल होने की संभावना जताई जा रही है, जिससे विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जदयू के लिए राजनीतिक समीकरण चुनौतीपूर्ण हो गए हैं।
पूर्णिया के पूर्व सांसद और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेहद करीबी माने जाने वाले संतोष कुशवाहा ने जदयू की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। संतोष कुशवाहा अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ आज राजद में शामिल होंगे। संतोष कुशवाहा पूर्वी बिहार की राजनीति में एक बड़ा नाम हैं और उनके जनाधार की पकड़ विशेषकर पूर्णिया, किशनगंज और अररिया जिलों में मजबूत रही है। पिछले कुछ समय से वे पार्टी नेतृत्व से नाराज चल रहे थे और संगठन में उन्हें दरकिनार किया जा रहा था। ऐसे में उनका जदयू छोड़ना पार्टी के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। तेजस्वी यादव उन्हें अपने पाले में लाकर इस क्षेत्र में राजद की स्थिति और मजबूत कर सकते हैं।
जदयू के अजय कुशवाहा ने भी पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। अजय कुशवाहा पहले उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी से जुड़े थे और 11 माह पहले ही जदयू में शामिल हुए थे। उन्हें महासचिव अशोक चौधरी द्वारा पार्टी की सदस्यता दिलाई गई थी। उस समय यह उम्मीद जताई जा रही थी कि अजय कुशवाहा को विधानसभा चुनाव में उतारा जा सकता है, लेकिन चुनाव से ठीक पहले उनका इस्तीफा जदयू के लिए बड़ा झटका है। अजय कुशवाहा के भी राजद में जाने की संभावना पर चर्चा चल रही है।
जदयू में नेताओं का पलायन लगातार बढ़ रहा है। पार्टी के कई दिग्गज नेता नीतीश कुमार का साथ छोड़ चुके हैं। हाल ही में पूर्व मंत्री लक्ष्मेश्वर राय ने भी जदयू छोड़कर राजद में शामिल होने की घोषणा की। उन्होंने जदयू पर हमला करते हुए कहा कि “जदयू अब अतिपिछड़ों की पार्टी नहीं रही है। अतिपिछड़ा समाज अब पार्टी में सम्मान नहीं पा रहा है और अनदेखी हो रही है।”
इन इस्तीफों से जदयू के लिए चुनावी समीकरण कठिन हो गए हैं। संतोष और अजय कुशवाहा जैसे कुशल और प्रभावशाली नेताओं का पाला बदलना विशेष रूप से पूर्णिया और आसपास के क्षेत्रों में जदयू की स्थिति को कमजोर कर सकता है। वहीं, राजद के लिए यह अवसर है कि वह इन नेताओं को अपने पाले में लेकर महागठबंधन की स्थिति को और मजबूत कर सके।
जैसा कि चुनाव नजदीक हैं, यह पलायन और नेताओं की नई राजनीति में बड़ी हलचल पैदा कर रही हैं। जदयू को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह अपने जनाधार और पुराने नेताओं को जोड़कर चुनावी मैदान में मजबूती बनाए। वहीं, राजद इस मौके का फायदा उठाकर कुशवाहा समाज के नेताओं के जरिए अपने क्षेत्रीय प्रभाव को और बढ़ाने की कोशिश करेगा।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि विधानसभा चुनाव से पहले जदयू के दो बड़े नेताओं का इस्तीफा पार्टी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए बड़ा झटका है। इन इस्तीफों से राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं और इस क्षेत्र में महागठबंधन को बढ़त मिल सकती है। यह देखना रोचक होगा कि आने वाले दिनों में अन्य नेता किस दिशा में रुख करते हैं और चुनावी रणनीति पर इसका क्या असर पड़ता है।