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राजकुमार हत्याकांड:डॉक्टर और पुलिस अधिकारियों की गिरफ्तारी का कोर्ट ने दिया आदेश, 16 जून तक हर हाल में पेश करने को कहा

राजकुमार गोंड हत्याकांड में गैर जमानती वारंट के बावजूद 7 वर्षों से अनुपस्थित डॉक्टर और पुलिस अफसरों को कोर्ट ने गिरफ्तार कर 16 जून तक पेश करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने बगहा एसपी से जवाब भी तलब किया है कि अब तक वारंट की तामिला क्यों नहीं की गई।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Wed, 04 Jun 2025 02:45:05 PM IST

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8 साल पहले हुई थी राजकुमार की हत्या - फ़ोटो google

BAGAHA: बगहा अनुमंडलीय अस्पताल के डॉक्टर, भिंतहा ओपी के पूर्व प्रभारी और आइओ को गिरफ्तार कर कोर्ट में प्रस्तुत करने का निर्देश एसपी को दिया गया है। बगहा कोर्ट ने वहां के एसपी से पूछा कि दो वर्षों में किस परिस्थिति में निर्गत गैर जमानती वारंट की तामिला प्रस्तुत नहीं की गई। जबकि 7 साल पहले ही कोर्ट ने सूचक समेत चार आरोपियों पर गैर जमानती वारंट जारी किया था। 16 जून को तिथि मुकर्रर किया गया है इस दिन सभी को कोर्ट में पेश करने को कहा गया है। इनकी गिरफ्तारी नहीं होने पर पटना हाईकोर्ट और बिहार के डीजीपी को रिपोर्ट भेजा जाएगा। 



बगहा के जिला जज-चतुर्थ मानवेंद्र मिश्र की कोर्ट में बुधवार को राजकुमार गोंड हत्याकांड की सुनवाई के दौरान खाकी की मनमानी सामने आई। हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी डॉक्टर व कांड के आइओ कोर्ट में गवाही देने नहीं पहुंचे थे। 13 वर्षों से इनके साक्ष्य के अभाव में कोर्ट से डेट पर डेट लिया जा रहा है। सात वर्ष पूर्व, 13 अगस्त 2018 को गैर जमानती वारंट कोर्ट से जारी हो चुका था। इसके बाद भी अनुमंडल अस्पताल बगहा के प्रभारी डॉक्टर आरपी सिंह, भिंतहा के पूर्व प्रभारी सब-इंस्पेक्टर विनोद कुमार सिंह व आइओ लखीचंद साह कोर्ट में आना उचित नहीं समझे।


कोर्ट ने इसे गंभीरता से लिया। बगहा के एसपी से जवाब तलब करते हुए तीनों को तत्काल प्रभाव से अरेस्ट कर 16 जून को कोर्ट में प्रस्तुत करने का आदेश जारी किया है। कोर्ट ने पुलिस कप्तान से शो-कॉज करते हुए पूछा है कि जब तीनों के खिलाफ गैर जमानती वारंट निर्गत किया जा चुका है, तो तामिला संबंधी रिपोर्ट 28 नवंबर 2023 को न्यायालय द्वारा मांगी गई थी। इन दो वर्षों में पुलिस द्वारा किस परिस्थिति में निर्गत गैर जमानती वारंट की तामिला प्रस्तुत नहीं की गई।


एसपी को निर्देश दिया गया कि वे अपने स्तर से न्यायालय द्वारा निर्गत गैर जमानती वारंट की तामिला सुनिश्चित करते हुए डॉ. आरपी सिंह, एसआई विनोद कुमार सिंह, एसआई लखीचंद साह को गिरफ्तार कर साक्ष्य देने के लिए इस न्यायालय में प्रस्तुत करें, जिससे उच्च न्यायालय पटना द्वारा दिए गए निर्देश का ससमय अनुपालन हो सके।


अभियोजन ने 12 वर्षों से कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया 

बचाव पक्ष के विद्वान अधिवक्ता ने कोर्ट से अपील की कि यह वाद अभियोजन साक्ष्य के लिए 22 नवंबर 2009 से लंबित चला आ रहा है। इस वाद में कुल 17 साक्षी हैं, जिनमें 13 साक्षियों का साक्ष्य हो चुका है, केवल अनुसंधानकर्ता एवं चिकित्सक का साक्ष्य शेष है। दिनांक 17 अप्रैल 2013 के बाद से 12 वर्षों से अभियोजन द्वारा कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है। अभियोजन साक्ष्य का अवसर समाप्त कर दिया जाए।


अभियोजन पदाधिकारी मन्नू राव ने कोर्ट को बताया कि यह हत्याकांड का वाद है। अनि विनोद कुमार सिंह एवं अनि सखीचंद साह का यहां से स्थानांतरण हो चुका है। वे उपस्थित नहीं हो सके हैं। यह सही है कि डॉक्टर आरपी सिंह, अनुमंडल अस्पताल बगहा, अनि विनोद कुमार सिंह, थानाध्यक्ष भिंतहा ओपी, अनि सखीचंद साह और लालजी गोंड के विरुद्ध 13 अगस्त 2018 को गैर जमानती वारंट साक्ष्य देने के लिए निर्गत किया जा चुका है। बावजूद इसके वे अब तक उपस्थित नहीं हुए हैं।


सरेआम 18 साल पहले हुई थी राजकुमार की हत्या

ठकराहां थाना के जिगनही गांव के रहने वाले स्व. बृक्षा गोंड के पुत्र लालजी गोंड द्वारा लिखित तहरीर देकर अपने पुत्र राजकुमार की हत्या के संबंध में नामजद अभियुक्तों राजेश चौधरी एवं अनिल चौधरी के विरुद्ध दिनांक 06 फरवरी 2007 को प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। कुल 17 साक्षियों में से 13 साक्षियों का साक्ष्य हो चुका है।


हाईकोर्ट के आदेश पर भी भारी पड़ रही मनमानी

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने माना कि उच्च न्यायालय द्वारा पुराने वाद में निस्तारण के संबंध में दिए गए निर्देश के आलोक में स्पीडी विचारण प्रभारी, अभियोजन पदाधिकारी, पुलिस अधीक्षक को साक्ष्य देने के लिए निर्धारित तिथि से अवगत कराया जा चुका है। बावजूद इसके पिछले 12 वर्षों में हत्याकांड जैसे जघन्य अपराध में अनुसंधानकर्ता, डॉक्टर (सरकारी साक्षी) सहित सूचक का साक्ष्य देने के लिए उपस्थित नहीं होना, अभियोजन द्वारा प्रस्तुत नहीं करना यह अभियोजन के अपने कर्तव्य के प्रति उदासीनता का प्रत्यक्ष उदाहरण है। पुलिस पदाधिकारी एवं अभियोजन पदाधिकारी के कृत्य से न्याय का उद्देश्य विफल हो सकता है।