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25-Mar-2025 08:29 AM
History Untold : यह घटना 1761 की है, जब भरतपुर (डीग) के जाट राजा महाराजा सूरजमल ने आगरा पर कब्जा कर लिया था। सूरजमल ने न केवल आगरा के किले पर कब्जा किया, बल्कि ताजमहल के चांदी से मढ़े मुख्य द्वार को उखड़वाकर पिघला दिया और वहां भूसा भरवा दिया। इतिहास में इस घटना को मुगल साम्राज्य की गिरती साख का प्रतीक माना जाता है।
आगरा पर कब्जा और ताजमहल का हाल
महाराजा सूरजमल (1707-1763) भरतपुर के एक शक्तिशाली जाट शासक थे, जिन्हें "जाटों का प्लेटो" भी कहा जाता है। 12 जून 1761 को, सूरजमल ने अपनी 4,000 जाट सैनिकों की फौज के साथ एक महीने की घेराबंदी के बाद आगरा के किले पर कब्जा कर लिया। इसके बाद उनकी सेना ने ताजमहल पर हमला बोला। इतिहासकारों के अनुसार, सूरजमल के सैनिकों ने ताजमहल का चांदी से मढ़ा हुआ मुख्य द्वार उखाड़ लिया और उसे पिघलाकर अपने खजाने में डाल लिया।
मुगल साम्राज्य की प्रतिष्ठा पर प्रहार
सूरजमल के कुछ सहयोगियों ने उन्हें ताजमहल को ढहाने की सलाह दी थी, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया। इसके बजाय, उन्होंने ताजमहल को एक अस्थायी अस्तबल में बदल दिया। वहां घोड़ों को बांधा गया और भूसा भरवा दिया गया। यह कदम मुगल साम्राज्य की प्रतिष्ठा पर एक बड़ा प्रहार था, जो उस समय पहले ही कमजोर हो चुका था। अगर सूरजमल ने अपने सहयोगियों की बात मान ली होती, तो शायद आज ताजमहल केवल इतिहास की किताबों में ही रह जाता।
1761
यह घटना 1761 में हुई, जो भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण साल था। कुछ महीने पहले, 14 जनवरी 1761 को पानीपत का तीसरा युद्ध लड़ा गया था। इस युद्ध में मराठा सेना, जिसका नेतृत्व सदाशिवराव भाऊ कर रहे थे, को अहमद शाह अब्दाली ने बुरी तरह हरा दिया था। इस हार से मराठों की ताकत को गहरा झटका लगा, और मुगल साम्राज्य की स्थिति और कमजोर हो गई। इसी अस्थिरता का फायदा उठाकर सूरजमल ने आगरा पर कब्जा किया।
सूरजमल का फैसला
सूरजमल का ताजमहल को नष्ट न करने का फैसला आज हमारे लिए एक वरदान साबित हुआ। अगर उन्होंने इसे ढहा दिया होता, तो विश्व धरोहर और भारत की शान ताजमहल शायद आज मौजूद न होता। लेकिन ताजमहल को अस्तबल में बदलने का उनका कदम उस समय की राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता को दर्शाता है। मुगल बादशाह शाह आलम उस समय दिल्ली में नाममात्र के शासक थे, और उनकी ताकत इतनी कमजोर हो चुकी थी कि वे आगरा की रक्षा तक नहीं कर सके।
विवादास्पद कदम
हालांकि, सूरजमल का यह कदम विवादास्पद भी रहा। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह मुगल सत्ता के खिलाफ एक प्रतीकात्मक हमला था, लेकिन इससे सांस्कृतिक धरोहर को नुकसान पहुंचा। 1764 में जब मराठों ने आगरा पर फिर से कब्जा किया, तो उन्होंने ताजमहल को मुक्त कराया और इसकी मरम्मत शुरू की। लेकिन उस समय तक ताजमहल की हालत काफी खराब हो चुकी थी।