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Bihar makhana news: मखाने पर चर्चा बहुत... लेकिन रिसर्च सेंटर की बदहाली का जिम्मेदार कौन ?

Bihar makhana news:बिहार का मखाना देश-विदेश में अपनी गुणवत्ता के लिए मशहूर है, लेकिन इसके अनुसंधान और विकास के लिए स्थापित राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र खुद बदहाली का शिकार है।

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06-Mar-2025 08:12 PM


Bihar makhana news: आजकल मखाने को लेकर ब्यापक चर्चाएं हो रही हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  हाल ही में जब बिहार के भागलपुर दौरा पर थे ,तब उन्होंने मखाना का जिक्र किया था ,और उन्होंने कहा था कि वो साल में 300 दिन मखाना का सेवन करते हैं .वहीं  वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने  हालिया बजट पेश करते समय मखाना बोर्ड गठन करने का  ऐलान की थी . इसके वाबजूद बिहार के दरभंगा स्थित राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र उपेक्षा का शिकार है।


यह केंद्र 2002 में खुला था , लेकिन 2005 में 'राष्ट्रीय' दर्जा छिन लिया  गया, जो 2023 में वापस मिला।अगर हम इस रिसर्च सेंटर में मैनपावर की बात करें तो आपको बता दें कि यहां सिर्फ 10 स्टाफ के भरोसे  काम हो रहा है, 42 पदों में से 32 रिक्त हैं, और यहाँ के  निदेशक भी अतिरिक्त प्रभार में हैं।देश भर में मखाने को लेकर कितनी भी चर्चा हो रही हो, लेकिन बिहार के दरभंगा में एनएच 57 पर स्थित राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र की स्थिति बेहद खराब है। करीब 25 एकड़ में फैले इस सेंटर का प्रशासनिक ब्लॉक एक ओर है, जबकि दूसरी ओर पुराने और बदहाल रेजिडेंशियल एरिया  नजर आता हैं। बाहर केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के स्वागत का बैनर  लगा हुआ है, जो वहां से गुजरने वाली गाड़ियों की धूल की परतों से ढका हुआ है।


इस रिसर्च  केंद्र की स्थापना की योजना नौवीं पंचवर्षीय योजना (1997-2002) के दौरान की गयीं  थी, जिसके तहत 2002 में इसका कैम्प ऑफिस पटना के आलू अनुसंधान केंद्र में खोला गया। बाद में इसे दरभंगा में स्थापित किया गया था | इसका उद्देश्य मखाना उत्पादन से जुड़ी तकनीकी चुनौतियों को पूरा करना, उत्पादकता बढ़ाना, रोजगार सृजित करना, वैल्यू एडिशन और मार्केटिंग को प्रोत्साहित करना था।इस केंद्र ने मखाने की नई किस्म ‘स्वर्ण वैदेही’ विकसित किया  है। साथ ही, किसानों को तालाब आधारित मखाना खेती के लिए तैयार  किया गया हैं .कई नई मशीनें लगायीं गईं है , जिससे पहले 15,000 हेक्टेयर में की जाने वाली खेती का दायरा बढ़कर 36,000 में बढाया गया  है ।

हालांकि, इन उपलब्धियों के बावजूद, 23 सालों के सफर में यह केंद्र खुद कई समस्याओं से जूझता रहा है।2019-24 के बीच इस केंद्र ने मात्र 3.4 करोड़ रुपये खर्च किए, जबकि संसाधन और शोध कार्यों के लिए पर्याप्त बजट की जरूरत है। इस स्थिति में मखाना किसानों को असल फायदा कब मिलेगा, यह एक बड़ा सवाल है?