1st Bihar Published by: First Bihar Updated Thu, 11 Dec 2025 09:38:16 PM IST
सुनील सिंह ने किया पलटवार - फ़ोटो सोशल मीडिया
Bihar Politics: बिहार विधानसभा चुनाव में RJD की करारी हार के बाद पार्टी के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी लगातार हमलावर बने हुए हैं। लेकिन अब शिवानंद तिवारी को जवाब देने के लिए राबड़ी देवी के मुंहबोले भाई और एमएलसी सुनील सिंह सामने आ गये हैं।
सुनील सिंह ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म फेसबुक के माध्यम से बिना नाम लिये शिवानंद तिवारी पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि तथाकथित अवसरवादी तिवारी बाबा को जब तक जेडीयू या बीजेपी कुछ बनाने का आश्वासन नहीं देगा, तब तक ये आरजेडी के खिलाफ रूदाली विलाप करते रहेंगे!
बता दें कि पिछले दिनों शिवानंद तिवारी ने बिहार चुनाव में आरजेडी की हार के बाद सोशल मीडिया के माध्यम से तेजस्वी यादव पर हमला बोला था। बिहार की सत्ता में एक बार फिर से एनडीए की वापसी के बाद से गायब हुए तेजस्वी यादव को शिवानंद तिवारी ने बड़ी नसीहत दे दी है और कहा है कि जय-पराजय सहज और सामान्य नियम है लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि हम उसे किस रूप में लेते हैं। उन्होंने कहा कि जीतने वाले से हारने वाले की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है।
शिवानंद तिवारी ने फेसबुक पर लंबा चौड़ा पोस्ट पिछले दिनों लिखा था और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव को बड़ी नसीहत दी थी। उन्होंने लिखा, “तेजस्वी यादव के संदर्भ में. जो उनको भेजा. कल यानी 9 दिसंबर को मेरा जन्मदिन था.संयोग ऐसा है कि नौ दिसंबर मेरी प्यारी नतिनी शाएबा के विवाह का भी दिन है. उसका विवाह कर्नाटक के एक नौजवान के साथ हुई है. दोनों को जर्मनी में एक साथ पढ़ते थे और वहीं उनकी दोस्ती हुई. लड़का किस बिरादरी का है इसकी जानकारी मुझे आज तक नहीं है. क्योंकि लड़का इतना अच्छा और भला है कि इसके आगे कभी नजर ही नहीं गई. वह विवाह जमशेदपुर हुआ था.
संयोग है कि जिस दिन मेरी नातिन का विवाह हुआ यानी 9 दिसंबर 2021, उसी दिन तेजस्वी यादव का भी विवाह हुआ था. वह विवाह अंतर्धार्मिक था. लेकिन उस विवाह के विषय में इससे ज़्यादा मुझे कोई जानकारी नहीं थी. फ़ोन पर मैंने तेजस्वी को बधाई दी और उसे बताया कि नातिन के विवाह में हूँ. आज मेरा जन्मदिन भी है. इसलिए तुम्हारे विवाह का दिन मुझे हमेशा याद रहेगा. कल मैंने जब अपने नातिन और दामाद को फोन पर बधाई दी तो मुझे तेजस्वी के विवाह की याद आई.
हालाँकि लालू परिवार से मैं थोड़ा अलग थलग चल रहा हूँ. फिर भी मैंने फोन पर उसे बधाई संदेश भेजा. उसने भी इस 🙏इमोजी के ज़रिए मुझे जवाब दिया. तेजस्वी, लालू यादव के बेटे हैं. उनके वारिस हैं. बल्की राष्ट्रीय जनता दल का कमान अब तेजस्वी के ही हाथ में है. पिछले चुनाव में तो घोषित हो गया था कि महागठबंधन के बहुमत में आने पर तेजस्वी यादव ही मुख्यमंत्री होंगे. लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. बल्कि उल्टा हुआ. जय और पराजय तो किसी भी क्षेत्र में सहज और सामान्य नियम है. लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण सवाल यह है कि हम अपने जय या पराजय को किस रूप में लेते हैं.
अगर विजयी पक्ष विजय के बाद अहंकार का प्रदर्शन करता है. पराजित पक्ष को नीचा दिखाने का प्रयास करता है तो भविष्य में वह अपनी पराजय की गाथा लिख देता है. उसी प्रकार पराजित पक्ष के नेता की भूमिका विजयी पक्ष के नेता के मुक़ाबले ज़्यादा बड़ी हो जाती है. क्योंकि अपने सहयोगियों और समर्थकों के मनोबल को बनाए रखने की जवाबदेही उसको ही निभानी होती है. पराजय के बाद अगर वह मैदान छोड़ देता है तो वह स्वयं ही घोषित कर देता है कि वह भविष्य में मैदान में उतरने की लायकियत उसमें नहीं है.
लोकतंत्र में राजनीतिक दल अपनी अपनी विचारधारा के आधार पर अपने पक्ष में जनमत बनाने का प्रयास करते हैं. भले ही उक्त विचारधारा के आधार पर ईमानदारी से आचरण करते हों या नहीं. लेकिन संगठन के बनावट में किन लोगों को कैसी जगह मिलती है. आप किन लोगों को विधान परिषद, विधानसभा, राज्यसभा या लोकसभा में उम्मीदवार बनाते हैं. यह सब सार्वजनिक है. सबके नजर के सामने है. इन्हीं के आधार पर लोग आपकी विचारधारा का आकलन करते हैं. आपकी पार्टी के साथ जुड़ते या अलग हैं.
तेजस्वी को देखना चाहिए कि जिन सिद्धांतों की आप घोषणा कर रहे हैं उसकी छवि विधान परिषद, राज्य सभा में दिखाई देती है या नहीं. समाज का कमज़ोर तबका चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान उसको वहां जगह मिल रही है या नहीं. उनको आप उनको यहाँ जगह नहीं दे रहे हैं तो आप उनके समर्थन की अपेक्षा कैसे कर सकते हैं ! तेजस्वी को जब पार्टी का नया नया कमान मिला था उस समय मैंने उसको कहा था कि तुम्हारे पिताजी तुम्हारे लायक़ गुरु नहीं हो सकते हैं. क्योंकि 90 में मंडल अभियान और आडवाणी जी की गिरफ़्तारी के बाद तो "न भूतो न भविष्यति" जैसा जन समर्थन उनको मिला था. राजनीति में एक नायक जैसी छवि उनकी बन गई थी. मैंने स्वयं देश के कई इलाक़ों में उनके साथ गया हूँ और इसको प्रत्यक्ष देखा है.
लेकिन कितनी जल्दी सब कुछ बिखर गया ! 90 के हीरो 2010 में 22 सीट पर सिमट गए. विरोधी दल की मान्यता भी नहीं मिली. तुमने तो थोड़ा बेहतर किया है. विपक्ष के मान्यता प्राप्त नेता हो. लेकिन नतीजा के बाद तुम ग़ायब हो गए ! तुम्हें तो अपने सहयोगियों के साथ बैठना था. पार्टी के निचले स्तर तक के साथियों के साथ बैठना था. उनको ढाढ़स देनी थी. ताकि हार के बाद भी उनका मनोबल थोड़ा बहुत क़ायम रहे. लेकिन तुमने तो मैदान ही छोड़ दिया. समता पार्टी के गठन में मेरी मेरी किसी से कम भूमिका नहीं थी. पहले चुनाव में पार्टी महज़ सात सीटों पर ही सिमट गई. लेकिन हमने मैदान नहीं छोड़ा. लेकिन तुम तो दो दिन भी नहीं टिक पाए. अपने सहयोगियों और समर्थकों का मन छोटा कर दिया.
वैसे आज कल रजद के राज्य कार्यालय में समीक्षा बैठक चल रही है. मँगनी लाल जी कार्यकर्ताओं के आदमी हैं. कार्यकर्ताओं की बात सुनते हैं. उनकी इज़्ज़त है. कार्यकर्ता जगता भाई की इज़्ज़त नहीं करते थे. उनसे डरते थे. वे नेता नहीं साहब थे. जैसे साहब लोग मंत्री को वही सुनाते हैं जो उनको अच्छा लगता है. संजय और जगता भाई, दोनों ने तुम्हारी आँखों पर पट्टी बाँध दी थी. खूब हरियाली दिखाई. एवज़ में दोनों ने भरपूर हासिल भी कर लिया. तुमको भी वही अच्छा लगता था. सब कुछ लूट जाने के बाद जब सत्य सामने आया तो तुम सामना नहीं कर पाए. मैं तो सलाह दूँगा कि तत्काल वापस लौटो. बिहार में घूमो. नेता की तरह नहीं. बल्कि कार्यकर्ता की तरह. उनसे बराबरी से मिलो. साहब की तरह नहीं. तभी भविष्य बचेगा. याद रखना समय किसी का इंतज़ार नही करता है. तुम्हारा शुभचिंतक-शिवानन्द".
इससे पहले बिहार विधानसभा सत्र के दौरान नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव की गैरहाजिरी को लेकर राज्य की सियासत तेज हो गई थी। जहां सत्ता पक्ष लगातार सवाल उठा रहा था, वहीं आरजेडी के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने भी तेजस्वी यादव पर सीधा हमला बोला। उन्होंने कहा कि तेजस्वी ने मैदान छोड़ दिया। शिवानंद तिवारी ने दावा किया कि तेजस्वी यादव विधानसभा सत्र के बीच ही अपने परिवार के साथ यूरोप टूर पर चले गए हैं। उन्होंने कहा कि तेजस्वी ने "मैदान छोड़ दिया है" और उनमें अगले पांच वर्षों तक विपक्ष के नेता की भूमिका निभाने की क्षमता दिखाई नहीं देती।
शिवानंद तिवारी ने कहा कि अभी बिहार विधानसभा का सत्र चल रहा है। राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान तेजस्वी यादव सदन में मौजूद नहीं थे। पहले कहा गया कि वे दिल्ली गए हैं, जबकि उनकी पत्नी और बच्ची पहले ही दिल्ली जा चुकी थीं। अब जानकारी सामने आई है कि तेजस्वी अपने परिवार के साथ विदेश यात्रा पर निकल गए हैं। उन्होंने कहा कि बिहार में विरोध की राजनीति का पूरा मैदान खाली हो गया है। नीतीश कुमार पांच वर्षों तक मुख्यमंत्री बने रहेंगे या नहीं, इस पर भी संदेह है। बिहार में आरएसएस का प्रभाव बढ़ता दिख रहा है, लेकिन इसके लिए केवल जदयू या उसके नेताओं को जिम्मेदार कहना उचित नहीं होगा।
गौरतलब है कि एनडीए की प्रचंड जीत और महागठबंधन की हार के बाद हाल ही में नीतीश कुमार के नेतृत्व में नई सरकार का गठन हुआ है। 1 दिसंबर से शुरू हुए विधानसभा सत्र के पहले दिन नए विधायकों का शपथ ग्रहण और दूसरे दिन स्पीकर का चुनाव हुआ था, जिन दोनों में तेजस्वी यादव मौजूद रहे और उन्हें आधिकारिक तौर पर नेता प्रतिपक्ष घोषित किया गया। हालांकि, सत्र के तीसरे दिन जब राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने सदन को संबोधित किया, उस दौरान तेजस्वी यादव अनुपस्थित रहे। इसके बाद जेडीयू और बीजेपी के नेताओं ने आरजेडी पर निशाना साधना शुरू कर दिया है। इसी बीच उनकी विदेश यात्रा की खबरों से बिहार का राजनीतिक तापमान और बढ़ गया।
पटना से प्रिंस कुशवाहा की रिपोर्ट
