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BIHAR NEWS : शिक्षा विभाग की बड़ी लापरवाही, लाखों की आयरन-फोलिक एसिड की दवाइयाँ बर्बाद; DEO ने दिए यह आदेश

BIHAR NEWS : कुदरा प्रखंड संसाधन केंद्र (BRC) में आयरन-फोलिक एसिड (Iron-Folic Acid – IFA) की दवाइयाँ बर्बाद हालत में पाई गईं। ये वही दवाइयाँ थीं, जिन्हें स्कूलों में बच्चों को खून की कमी यानी एनीमिया से बचाने के लिए वितरित किया जाना था।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Tue, 16 Sep 2025 01:37:17 PM IST

कुदरा प्रखंड संसाधन केंद्र (BRC)

कुदरा प्रखंड संसाधन केंद्र (BRC) - फ़ोटो FILE PHOTO

BIHAR NEWS : बिहार के कैमूर जिले से शिक्षा विभाग की लापरवाही की एक चौंकाने वाली खबर सामने आई है। कुदरा प्रखंड संसाधन केंद्र (BRC) में आयरन-फोलिक एसिड (Iron-Folic Acid – IFA) की दवाइयाँ बर्बाद हालत में पाई गईं। ये वही दवाइयाँ थीं, जिन्हें स्कूलों में बच्चों को खून की कमी यानी एनीमिया से बचाने के लिए वितरित किया जाना था। लेकिन विभागीय लापरवाही और समय पर वितरण न होने के कारण ये दवाइयाँ धूल और कचरे में मिल गई हैं।


जांच में पता चला कि पैकेट फट गए हैं और कई टैबलेट जमीन पर बिखरी हुई हैं। खास बात यह है कि ये दवाइयाँ जुलाई 2026 तक पूरी तरह उपयोगी थीं। यानी इन दवाइयों को अभी भी कई महीनों तक बच्चों को दिया जा सकता था, लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों की लापरवाही ने इस स्वास्थ्य अभियान को नाकाम कर दिया।


इस मामले पर कैमूर के जिला शिक्षा पदाधिकारी (DEO) ने गंभीर प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि बच्चों के बीच समय पर दवा बांटने का निर्देश पहले ही स्कूल प्रशासन को दिया गया था। इसके बावजूद ऐसा क्यों नहीं हुआ, इसकी जांच कराई जाएगी। DEO ने स्पष्ट किया कि दोषी लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। यह बयान इस बात का संकेत है कि प्रशासन अब इस लापरवाही को गंभीरता से ले रहा है।


सरकार का उद्देश्य बच्चों को एनीमिया से बचाना और उनके पोषण स्तर को बढ़ाना है। हर महीने आयरन-फोलिक एसिड की मुफ्त दवाइयाँ स्कूलों में भेजी जाती हैं, ताकि बच्चों की सेहत में सुधार हो सके। लेकिन विभागीय लापरवाही ने इस सरकारी योजना पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जब योजनाओं की दवाइयाँ बीआरसी भवन में ही सड़ जाती हैं, तो बच्चों के स्वास्थ्य पर इसका सीधा असर पड़ता है।


अभिभावकों में इस मामले को लेकर गुस्सा है। उनका कहना है कि बच्चों की सेहत सुधारने की योजनाएँ सिर्फ कागजों तक सीमित रह गई हैं। लाखों रुपए की दवाइयाँ बर्बाद होने से यह स्पष्ट हो गया है कि सरकारी संसाधन और जनता का भरोसा दोनों ही खतरे में हैं। अभिभावकों का आरोप है कि प्रशासनिक लापरवाही और निगरानी की कमी के कारण बच्चों को मिलने वाला लाभ पूरी तरह नष्ट हो गया है।


विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की लापरवाही न केवल बच्चों के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है, बल्कि सरकारी स्वास्थ्य और शिक्षा अभियानों की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़ा करती है। बच्चों में खून की कमी जैसी गंभीर समस्या को समय पर रोकने के लिए आयरन-फोलिक एसिड का वितरण अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि दवाइयाँ सही समय पर बच्चों तक नहीं पहुंचतीं, तो इसका परिणाम एनीमिया और पोषण की कमी के रूप में सामने आता है।


इस घटना से यह भी स्पष्ट होता है कि योजना बनाने से ज्यादा जरूरी है उसे समय पर लागू करना और जिम्मेदार अधिकारियों की निगरानी सुनिश्चित करना। विभागीय स्तर पर यदि त्वरित सुधार नहीं किया गया, तो भविष्य में ऐसे ही स्वास्थ्य और पोषण संबंधी कार्यक्रमों का लाभ बच्चों तक नहीं पहुंच पाएगा।


इस पूरे मामले ने प्रशासन और शिक्षा विभाग के लिए चेतावनी का संकेत दिया है। यह केवल दवाइयों की बर्बादी का मामला नहीं है, बल्कि बच्चों के स्वास्थ्य और भविष्य से जुड़ा गंभीर मुद्दा है। समय पर कार्रवाई और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई ही इसे दोबारा होने से रोक सकती है।


कुल मिलाकर, कैमूर जिले की यह घटना सरकारी योजनाओं की प्रभावशीलता, विभागीय जिम्मेदारी और बच्चों के स्वास्थ्य पर सीधे प्रभाव डालती है। यह मामला दिखाता है कि योजनाओं के सही क्रियान्वयन में ही बच्चों की भलाई निहित है, और कोई भी लापरवाही इसे गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है।