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01-Nov-2025 07:07 PM
By FIRST BIHAR
Bihar News: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बार फिर से 2005 से पहले वाले बिहार की याद लोगों को दिलाई है। सीएम ने एक्स पर लंबा चौड़ा पोस्ट किया है और बताने की कोशिश की है कि जब 2005 में पहली बार वह बिहार के सीएम बने तो राज्य में स्वास्थ्य सेवा की क्या स्थिति थी। 2005 से पहले बिहार में आरजेडी-कांग्रेस के शासनकाल के दौरान स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली और अब बदले हालात को मुख्यमंत्री ने अपने पोस्ट के जरिए बताने की कोशिश की है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक्स पर कुछ तस्वीरें साझा की है और लिखा है कि, “वर्ष 2005 से पहले के वो दिन आप सबको याद होंगे, जब राज्य में स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह से चरमरायी हुई थीं। स्वास्थ्य के क्षेत्र में कोई काम नहीं होता था। छोटी-मोटी बीमारियों के इलाज के लिए भी लोगों को मजबूरी में राज्य के बाहर जाना पड़ता था। उस वक्त डॉक्टर और नर्सों की संख्या बहुत कम थी। स्वास्थ्य केन्द्र लगभग बंद ही रहते थे। ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के नाम पर सिर्फ एक से दो कमरों के जर्जर भवन होते थे। उन अस्पतालों में न डॉक्टर होते थे, न नर्स और न ही इलाज की कोई व्यवस्था होती थी। अस्पतालों में दवा की उपलब्धता नगण्य थी। जर्जर अस्पताल भवनों में लोग जानवर बांध देते थे। अस्पताल के बेड पर मरीज की जगह कुत्ते लेटे हुए पाये जाते थे, तब ऐसी कई तस्वीरें देखने को मिलती थी। स्वास्थ्य-व्यवस्था की स्थिति बहुत भयावह थी। उस दौर की बदहाल व्यवस्था में बिहार का पूरा हेल्थ सिस्टम आईसीयू में अपनी अंतिम सांसें गिन रहा था।
मुझे याद है- जब मैं सांसद था तो एक बार मेरी मां की तबीयत खराब हो गई थी और तब मैं अपनी मां को लेकर पटना के पीएमसीएच स्थित आईजीआईसी आया था, लेकिन वहां की व्यवस्था बहुत खराब थी। बाद में जब हमलोगों की सरकार बनी तो सबसे पहले हमलोगों ने वहां की व्यवस्था को दुरुस्त करवाया और आज भी मुझे कहीं कोई कमी दिखाई पड़ती है तो उसे मैं ठीक करवाता हूं।
उस वक्त स्वास्थ्य विभाग का कुल बजट मात्र 705 करोड़ रुपये था। सरकारी अस्पतालों में एक्स-रे, पैथोलोजी आदि जांच की सुविधाएं उपलब्ध नहीं होती थीं। राज्य में सरकारी चिकित्सा महाविद्यालयों की संख्या मात्र 6 थी, वे भी 1990 के पूर्व ही बने थे और जर्जर हालत में थे। 1990 से 2005 के बीच राज्य में एक भी नया चिकित्सा महाविद्यालय नहीं बनाया गया था। यही कारण था कि वर्ष 2005 में और उससे पूर्व राज्य के सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए औसतन प्रतिमाह मात्र 39 मरीज ही आते थे यानि प्रतिदिन एक से दो ही मरीज सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए पहुंच पाते थे।
24 नवंबर 2005 को राज्य में नयी सरकार के गठन के बाद हमलोगों ने प्राथमिकता के आधार पर स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतरी के लिए काम करना शुरू किया। स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार और उसमें सुधार के लिए विशेष अभियान चलाया गया। सबसे पहले वर्ष 2006 से हमलोगों ने अस्पतालों में निःशुल्क दवा का वितरण शुरू किया, जिसका शुभारंभ तत्कालीन माननीय उपराष्ट्रपति स्व॰ भैरो सिंह शेखावत जी द्वारा पटना स्थित गार्डिनर रोड अस्पताल से किया गया। राज्य भर के अस्पतालों में विभिन्न प्रकार की दवायें निःशुल्क उपलब्ध करायी गयीं और आज की तारीख में मरीजों को 500 से अधिक तरह की दवायें निःशुल्क उपलब्ध करायी जा रही हैं। साथ ही, सरकारी संस्थानों में अनेक बीमारियों की जांच के लिए निःशुल्क सुविधा मरीजों को उपलब्ध करायी जा रही है। आज राज्य के सभी चिकित्सा महाविद्यालयों और सदर अस्पतालों में सीटी स्कैन की सुविधा मुहैया करायी गयी है, जबकि राज्य के 7 चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पतालों में रियायती दर पर एमआरआई की सुविधा उपलब्ध है। वर्ष 2005 से पूर्व राज्य के किसी भी सरकारी अस्पताल में डायलिसिस की सुविधा नहीं थी, आज सभी 38 जिलों के स्वास्थ्य संस्थानों में लोक-निजी साझेदारी के तहत डायलिसिस केंद्र संचालित किये जा रहे हैं।
इसके अलावा राज्य के सभी जिलों में कैंसर स्क्रीनिंग की व्यवस्था की जा रही है, जबकि कुछ चिह्नित अस्पतालों में कीमोथेरेपी की व्यवस्था की गयी है। साथ ही, मुजफ्फरपुर में 425 करोड़ रुपये की लागत से होमी भाभा कैंसर अस्पताल एवं अनुसंधान केंद्र बनाया जा रहा है।
राज्य के निर्धन मरीजों पर गंभीर बीमारियों के इलाज का बोझ नहीं पड़े, इसके लिए वर्ष 2006-07 में हमारी सरकार ने मुख्यमंत्री चिकित्सा सहायता कोष की शुरुआत की। तब से लेकर अब तक करीब 2 लाख मरीजों को गंभीर बीमारियों की चिकित्सा हेतु 1550 करोड़ रुपये से अधिक की राशि अनुदान के रूप में दी गयी है।
वर्ष 2004-05 में स्वास्थ्य विभाग का बजट मात्र 705 करोड़ रुपये था, जो बढ़कर अब 20035 करोड़ रुपये से भी अधिक हो गया है। स्वास्थ्य सुविधाओं में विस्तार का ही परिणाम है कि आज राज्य में कई स्वास्थ्य सूचकांकों जैसे संस्थागत प्रसव, शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर और संपूर्ण टीकाकरण में अप्रत्याशित सुधार हुआ है।
वर्तमान में राज्य में सरकारी चिकित्सा महाविद्यालयों की संख्या 12 हो गयी है। पटना स्थित इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान को विस्तारित करते हुए नये मेडिकल कॉलेज की स्थापना एवं केंद्र सरकार द्वारा संचालित चिकित्सा महाविद्यालयों को भी जोड़ा जाय तो यह संख्या 15 हो गयी है। इसके अतिरिक्त राज्य में 20 नये सरकारी चिकित्सा महाविद्यालय निर्माणाधीन है, जिसे जल्द ही पूरा कर लिया जायेगा। इस प्रकार राज्य में सरकारी चिकित्सा महाविद्यालयों की कुल संख्या 35 हो जायेगी। इसके अतिरिक्त प्रदेश में 9 निजी चिकित्सा महाविद्यालय भी खोले जा रहे हैं। पटना स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के साथ-साथ दरभंगा में भी नये अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) का निर्माण कराया जा रहा है। साथ ही पटना चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल (PMCH) को 5462 बेड के अस्पताल के रूप में पुनर्विकसित कर देश के सबसे बड़े अस्पताल के रूप में बनाया जा रहा है। अन्य पुराने 5 मेडिकल कॉलेज एवं अस्पतालों को भी 2500 बेड के अस्पताल के रूप में विकसित किया जा रहा है। पटना स्थित इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान को भी 3000 बेड के अस्पताल के रूप में विकसित किया जा रहा है।
राज्य में अब जिला अस्पतालों की संख्या बढ़कर 35 हो गई है, जबकि अनुमंडलीय अस्पतालों की संख्या 55 और स्वास्थ्य उपकेंद्रों की संख्या 10788 से भी अधिक हो गयी है। यही कारण है कि आज सरकारी अस्पतालों में प्रति महीने 11600 से भी अधिक मरीज अपना इलाज कराने पहुंच रहे हैं। राज्य के लोगों की सुविधा के लिए हमलोगों ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में जो आपके लिए काम किए हैं, उसे याद रखिएगा। आगे भी हमलोग ही काम करेंगे। हमलोग जो कहते हैं, उसे पूरा करते हैं। जय बिहार!”