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तेजस्वी और चिराग की नजर नियोजित शिक्षकों के बड़े वोट बैंक पर, वादा कर तो देंगे लेकिन पूरा कैसे करेंगे ?

तेजस्वी और चिराग की नजर नियोजित शिक्षकों के बड़े वोट बैंक पर, वादा कर तो देंगे लेकिन पूरा कैसे करेंगे ?

01-Mar-2020 11:42 AM

PATNA : बिहार में अपनी राजनीतिक स्थिति मजबूत करने के लिए दो युवा नेताओं की नजर नए वोट बैंक पर गड़ी हुई है. नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव और एलजेपी अध्यक्ष चिराग पासवान इन दिनों नियोजित शिक्षकों की खूब फिक्र करते दिख रहे हैं. तेजस्वी यादव और चिराग पासवान नियोजित शिक्षकों की मांग के समर्थन में उतर गए हैं.


दरअसल इन दोनों नेताओं को ऐसा लगता है कि बिहार के साढे तीन लाख नियोजित शिक्षकों के साथ-साथ उनके परिवार में कम से कम अगर तीन सदस्यों की गिनती कर ली जाए तो यह आंकड़ा 10 लाख के आस पास पहुंच जायेगा. 10 लाख वाले मजबूत वोट बैंक को साधने के लिए यह दोनों नेता लगातार नियोजित शिक्षकों की मांग का समर्थन कर रहे हैं. चिराग पासवान ने नियोजित शिक्षकों की मांगों को अपनी पार्टी के मेनिफेस्टो में जगह देने का ऐलान किया है. चिराग ने कह दिया है कि विधानसभा चुनाव में बीजेपी का घोषणा पत्र नियोजित शिक्षकों के मुद्दे के साथ होगा वही तेजस्वी यादव भी बेरोजगारी हटाओ यात्रा के दौरान हर जगह नियोजित शिक्षकों को वेतनमान देने की बात करें हैं. पैसे बताना नहीं भूलते हैं कि 8 महीने बाद अगर बिहार में अगर उनकी सरकार आई तो नियोजित शिक्षकों को वेतनमान दिया जायेगा. हालांकि इससे पहले सीएम नीतीश भी बिहार विधानसभा में यह कह चुके हैं कि शिक्षकों के मानदेय में समय-समय  पर बढ़ोतरी की जाएगी. लेकिन फिर भी हड़ताली शिक्षक अपनी मांग पर अड़े हुए हैं. 

 


चुनावी साल में वोट बैंक साधने के लिए नियोजित शिक्षकों के साथ खड़े तेजस्वी और चिराग शायद इस बात को समझ नहीं पा रहे हैं. नियोजित शिक्षकों को वेतनमान का लाभ देना उनके लिए आसान नहीं होगा. अगर यह दोनों बिहार के सत्ता में काबिज भी हो गए तो वित्तीय प्रबंधन के लिहाज से नियोजित शिक्षकों को वेतनमान देने में सरकार के पसीने छूट जायेंगे. 

राज्य की वित्तीय स्थिति इन शिक्षकों को वेतनमान देने से घबरा सकती है. सरकार नियोजित शिक्षकों के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में पहले ही अपनी स्थिति स्पष्ट कर चुकी है. लेकिन फिर भी चुनावी फायदे के लिए चिराग और तेजस्वी नियोजित शिक्षकों से वादा कर रहे हैं. अब ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि अगर नियोजित शिक्षकों ने इन्हें अपना समर्थन दे दिया तो सत्ता में आने के बाद वेतनमान देना इन नेताओं के लिए कितना आसान होगा.