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नीतीश के गुड गवर्नेंस पर हाईकोर्ट ने उठाये सवाल, कोरोना से हुई मौतों की सही जानकारी नहीं देने पर जतायी नाराजगी

नीतीश के गुड गवर्नेंस पर हाईकोर्ट ने उठाये सवाल, कोरोना से हुई मौतों की सही जानकारी नहीं देने पर जतायी नाराजगी

19-Jun-2021 08:27 AM

PATNA : बिहार में नीतीश सरकार भले ही सुशासन का दावा करती हो लेकिन अब सरकार के ऊपर पटना हाईकोर्ट ने सरकार के गुड गवर्नेंस पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जी हां, सूबे में कोरोना से हुई मौतों का सही आंकड़ा सामने नहीं आने के बाद हाईकोर्ट ने सरकार के ऊपर यह कड़ी टिप्पणी की है। हाईकोर्ट ने कोरोना।से हुई मौतों के सही आंकड़े नहीं देने के लिए सरकार से नाराजगी भी जताई है। हाईकोर्ट ने शिवानी कौशिक समेत अन्य की जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सरकार को कहा है कि कोरोना से हुई मौतों के बारे में सही जानकारी नहीं देना सरकार का अड़ियल रुख बताता है जो कहीं से भी उचित नहीं है। हाईकोर्ट ने कहा है कि यह ना तो कानूनन सही है और ना ही यह गुड गवर्नेंस की कसौटी पर खरा उतरता है। 


हाईकोर्ट ने शुक्रवार को इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि पारदर्शिता ही गुड गवर्नेंस की कसौटी है और जब केंद्र और राज्य सरकार नेशनल डाटा शेयरिंग एक्सेसिबिलिटी पॉलिसी 2012 को सफल बनाने में जुटी हुई हो तब यह और जरूरी हो जाता है। सरकार को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर यह बताना चाहिए कि राज्य में कोरोना से कितनी मौतें हुई। राज्य की जनता को यह जानने का कानूनी अधिकार है। हाईकोर्ट ने कहा कि कितनी जानें गई यह जानना लोगों का मौलिक हक भी है। हाईकोर्ट ने इस बात पर भी अफसोस जाहिर किया कि बार-बार कहने के बावजूद सरकार जन्म मृत्यु के तमाम पोर्टल पर अपडेट कर उसे जनता के सामने खोलने में आनाकानी कर रही है। हाईकोर्ट ने सरकार की उस दलील को भी खारिज किया कि यह पोर्टल आम पब्लिक के लिए नहीं खोले जा सकते क्योंकि वह भारत सरकार के अधीन होते हैं। कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि बिहार में रह रहे लोगों की पहुंच राज्य के जन्म मृत्यु से जुड़े तमाम जानकारियां डिजिटल पोर्टल पर समय अपडेट होते रहे।


पटना हाईकोर्ट ने सरकार को स्पष्ट तौर पर कहा है कि सभी पोर्टल पर पिछले एक साल से कोरोना से मौतों की सटीक जानकारी उपलब्ध कराई जाए। सभी पोर्टल पारदर्शी और जनसुलभ हों। हाईकोर्ट ने 28 पन्नों के आदेश में यह तय किया है कि कोरोना से हुई मौतों के आंकड़ों को जानना लोगों का मौलिक अधिकार है और सटीक आंकड़े देना सरकार का संवैधानिक दायित्व है। कोर्ट ने सरकार की उदासीनता के पीछे की वजह भी जानी चाही है।