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कौन सुनेगा काबर के हजारों किसान का दर्द, 2013 से जमीन बेचने पर लगी है रोक

कौन सुनेगा काबर के हजारों किसान का दर्द, 2013 से जमीन बेचने पर लगी है रोक

13-Jan-2020 02:19 PM

By Jitendra Kumar

BEGUSARAI : काबर के किसानों का दर्द कम नहीं रहा है. 2013 में ही काबर की जमीन बिक्री का मामला पटना-दिल्ली पहुंचा, वायदें भी किए गए, लेकिन कार्रवाई नहीं हो रही है. जिसके कारण सब कुछ रहने के बाद भी बेटी के हाथ पीले करने और बच्चों के उच्च शिक्षा के लिए उठाए गए कर्ज के तले किसान दबते जा रहे हैं.

मंझौल निवासी प्रभात भारती समेत काबर के कई किसानों ने बताया कि पक्षी आश्रयणी का गलत परिसीमन कर 15780 एकड़ जमीन 20 फरवरी 1986 में जिला गजट तथा 20 जून 1989 में राज्य गजट द्वारा वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 18 के तहत सुरक्षित कर दिया गया. अधिसूचित में से 5095 एकड़ गैर मजरुआ जमीन है तथा उसमें से अधिकांश की बंदोबस्ती भी हो चुकी है. लेकिन, इसके बाद भी पांच जनवरी 2013 को डीएम ने 1989 के बाद काबर परिक्षेत्र में किए गए सभी जमीन रजिस्ट्री को खारिज करते हुए, जमीन की खरीद-बिक्री पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दिया. जिससे हालत यह हो गई है कि जमीन की बिक्री नहीं होने के कारण कई किसान बच्चों की उच्च शिक्षा, बेटी के शादी, गम्भीर बिमारियों के उचित इलाज के लिए टकटकी लगाए बैठे हैं.

स्थानीय किसानों ने कई बार डीएम से पीएम तक गुहार लगाई. सांसद डॉ भोला सिंह ने संसद में भी यह मामला उठायाा था, उसके बाद राज्यसभा सांसद प्रो राकेश सिन्हा तथा केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने भी इस मामले को हाथों-हाथ लिया है. 2017 में मंझौल आए तत्कालीन राज्यपाल (वर्तमान राष्ट्रपति) रामनाथ कोविंद तक भी मामले को पहुंचाया गया. 2018 में उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी को भी किसानों की पीड़ा से अवगत कराया गया. लेकिन कहीं से कोई फायदा नहीं मिल रहा है. मामला हाई प्रोफाइल होने के बाद सात सितम्बर 2018 में जयमंगला गढ़ में वन्य प्राणी पर्षद द्वारा विकास आयुक्त की अध्यक्षता में गठित टीम ने वन एवं पर्यावरण विभाग सह जल संसाधन विभाग के प्रधान सचिव त्रिपुरारी शरण के नेतृत्व में बैठक किया. लेकिन, अधिसूचित क्षेत्र में सुधार के बदले आद्र भूमि संरक्षण एवं संवर्धन कानुन के तहत फिर से अधिसूचना की बातें कह दी गई. इसके बाद काबर किसान महासभा ने राज्य वन्य प्राणी पार्षद, राष्ट्रीय वन्य प्राणी पार्षद एवं नेशनल ग्रीन ट्रिबुनल में आपत्ति दर्ज कराया है. प्रभात भारती कहते हैं कि वन्यजीव संरक्षण के नाम पर 31 वर्षों से किसान बदहाल हैं. देश में कहीं भी इतने बड़े भूभाग पर विसंगत गजट नहीं किया गया. सरकार को मालगुजारी दे रहे हैं, लेकिन जमीन बेच नहीं सकते हैं.