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चाचा–भतीजे की पार्टी अब एक नहीं होगी, पहले चिराग ने किया इनकार.. अब पारस की भी ना

चाचा–भतीजे की पार्टी अब एक नहीं होगी, पहले चिराग ने किया इनकार.. अब पारस की भी ना

25-Nov-2022 08:33 AM

PATNA : लोक जनशक्ति पार्टी की स्थापना पूर्व केंद्रीय मंत्री और स्वर्गीय रामविलास पासवान ने की थी. एक दौर था जब रामविलास पासवान अपने भाइयों के साथ राजनीति में मिसाल रखते थे. लेकिन उनके निधन के बाद पार्टी भी टूटी और परिवार भी बिखर गया. रामविलास पासवान के भाई और केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस ने राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी बना ली तो बेटे चिराग पासवान के पास लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास रह गई. चिराग पासवान एनडीए गठबंधन से बाहर हो गए. लेकिन अब बीजेपी एनडीए गठबंधन में हो चुकी है तो यह सवाल भी उठने लगा कि क्या एक बार फिर लोक जनशक्ति पार्टी अपने पुराने अस्तित्व में लौट सकती है.



राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी और लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास का मेल क्या भविष्य में हो सकता है यह सवाल सियासी गलियारे में हर वक्त चर्चा के केंद्र में रहा है. पिछले दिनों फर्स्ट बिहार में चिराग पासवान से खास बातचीत की थी. इस लंबी बातचीत में चिराग में हर सवाल का जवाब दिया था. चिराग से यह पूछा गया कि क्या चाचा पारस के साथ एक बार फिर वह आ सकते हैं तो उन्होंने इस सवाल का सीधा जवाब दिया था. चिराग ने कहा था कि यह उनके लिए पुरानी बात हो चुकी है. उन्होंने कहा था कि उनके पास जो पार्टी और नेता हैं उन्हीं की बेहतरीन और बिहार की जनता के लिए कैसे काम किया जाए उनका फोकस केवल इसी बात पर है. उन्होंने पशुपति कुमार पारस के साथ मिलने की संभावना को सिरे से खारिज कर दिया था.



चिराग पासवान के बाद अब राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के नेता पशुपति कुमार पारस ने भी ऐसी ही राय जाहिर की है. विलय को लेकर जताई जा रही संभावना को पशुपति पारस ने सिरे से खारिज किया है. पशुपति पारस ने कहा है कि अब दोनों दलों का विलय संभव नहीं है. पारस ने कहा है कि कोई दल अगर टूटे तो भविष्य में जुड़ जाता है लेकिन अगर दिल टूटता है तो उसके जोड़ने का सवाल ही पैदा नहीं होता. सियासी जानकार मानते हैं कि भारतीय जनता पार्टी चिराग पासवान के साथ-साथ पशुपति पारस का इस्तेमाल एनडीए गठबंधन के अंदर करना चाहती है, लेकिन फिलहाल चिराग और पारस के बीच इतनी दूरियां बढ़ चुकी हैं कि दोनों साथ मिलने को तैयार नहीं है. ऐसे में आने वाले वक्त में सियासत कौन सी करवट लेती है इस पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं.