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10-Nov-2025 09:41 AM
By First Bihar
बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण के मतदान का महाकुंभ कल यानी 11 नवंबर को होगा, जिसमें 20 जिलों की 122 विधानसभा सीटों पर मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे। इस चरण में सभी राजनीतिक दलों ने भारी प्रचार अभियान चलाया है। विशेष रूप से एनडीए ने अपने स्टार प्रचारकों और प्रचार के नए हथियारों का उपयोग किया। पार्टी ने लगभग 30 से अधिक हैलिकॉप्टर उतारकर विभिन्न क्षेत्रों में अपनी ताकत और समर्थन दिखाने की कोशिश की। प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और कई वरिष्ठ नेताओं की भव्य रैलियों ने चुनावी माहौल को और गरमा दिया। लेकिन इस प्रचार महासमर में एक रोचक पहलू सामने आया है। एनडीए के स्टार प्रचारक और हैलिकॉप्टर प्रचार ने लगभग सभी क्षेत्रों में दमदार प्रदर्शन किया, लेकिन एक ऐसा क्षेत्र है जहां एनडीए का कोई स्टार प्रचारक नहीं पहुंचा और न ही कोई हैलिकॉप्टर उतारा गया।
इस अनदेखी ने चुनावी चर्चा का विषय बना दिया है। यह मामला इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि बिहार में चुनाव जीतने की राह प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में प्रभावशाली प्रचार और मतदाताओं से सीधा संवाद करने से होकर गुजरती है। इससे यह सवाल उठता है कि एनडीए ने इस क्षेत्र को नजरअंदाज क्यों किया और क्या यह रणनीति उन्हें भारी पड़ेगी या उनके पक्ष में जाएगी। आगे की खबर में हम इस अनदेखे क्षेत्र और इसकी राजनीतिक अहमियत के बारे में विस्तार से जानेंगे।
दरअसल, झंझारपुर विधानसभा सीट इस बार बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में राजनीतिक दृष्टि से बेहद अहम मानी जा रही है। यह सीट न केवल पूर्वी मिथिलांचल के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यहां की राजनीतिक हलचल पूरे बिहार में सुर्खियों में रहती है। इस बार झंझारपुर से एनडीए के उम्मीदवार निवर्तमान उद्योग मंत्री नीतीश मिश्रा मैदान में हैं। नीतीश मिश्रा ने उद्योग मंत्री और पर्यटन मंत्री के तौर पर राज्य में कई परियोजनाओं को आगे बढ़ाया है। उनके पास अनुभवी प्रशासनिक और राजनीतिक पृष्ठभूमि है, लेकिन चर्चा यह है कि क्या झंझारपुर को एनडीए या भाजपा की सेफेस्ट सीट माना जा सकता है।
वहीं, नीतीश मिश्रा ने हमेशा यह दावा किया है कि वे जनता के भरोसे पर विश्वास करते हैं और झंझारपुर के विकास को प्राथमिकता देते हैं। उन्होंने स्थानीय उद्योग, छोटे व्यवसायों और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं। उनका यह मानना है कि स्थानीय जनता की भागीदारी और विकास योजनाओं की सफलता ही उन्हें चुनाव में मजबूती देती है।
इस सीट पर महागठबंधन से रामनारायण यादव चुनावी मैदान में हैं। उनका कोर वोट उनके सामाजिक समीकरण और जातीय प्रभाव पर आधारित है। यादव की राजनीतिक ताकत इस क्षेत्र में सीपीआई और अन्य पिछड़े वर्गों के वोटों से भी जुड़ी हुई है। इस बार उनके समर्थन में पूर्व विधायक गुलाब यादव भी शामिल हैं। रामनारायण यादव का जोर विकास के साथ-साथ समाजिक न्याय और स्थानीय हितों पर है। उनके प्रचार अभियान के दौरान मधेपुर में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और सांसद मीसा भारती भी सक्रिय रही हैं। यह उनके अभियान को मजबूत और व्यापक बना रहा है।
तीसरा प्रमुख उम्मीदवार जनसुराज पार्टी से केशव चंद्र भंडारी हैं। उनका चुनावी संदेश युवाओं के उत्साह, पलायन रोकने और स्थानीय रोजगार के अवसर बढ़ाने के इर्द-गिर्द केंद्रित है। जनसुराज पार्टी की रणनीति इस बार युवाओं को अपने पाले में करना और स्थानीय मुद्दों को प्राथमिकता देना है। भंडारी का मानना है कि पलायन रोकने और रोजगार सृजन की प्रतिबद्धता उन्हें अन्य उम्मीदवारों से अलग बनाती है।
झंझारपुर विधानसभा में मतदाता वर्ग का विश्लेषण भी दिलचस्प है। यहां की जनता न केवल विकास योजनाओं पर ध्यान देती है, बल्कि रोजगार, उद्योग, पलायन और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों पर भी अपने निर्णय को केंद्रित करती है। युवा मतदाता और पहली बार वोट डालने वाले मतदाता इस बार निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। स्थानीय किसानों, छोटे व्यापारियों और मजदूर वर्ग के मतदाता अपने अनुभव और विकास की वास्तविक तस्वीर के आधार पर वोट करेंगे।
सियासत में इस बार तीनों उम्मीदवारों के बीच मुकाबला बेहद कड़ा है। एनडीए की ताकत नीतीश मिश्रा की प्रशासनिक छवि और पिछले कार्यकाल की उपलब्धियों पर आधारित है। वहीं महागठबंधन के रामनारायण यादव का सामाजिक समीकरण और वोट बैंक उनके लिए निर्णायक साबित हो सकता है। तीसरा कोण, जनसुराज के केशव चंद्र भंडारी की रणनीति युवाओं और पलायन रोकने के मुद्दे को केंद्र में रखकर तीनों तरफ से चुनौतीपूर्ण स्थिति पैदा कर रही है।
इस सीट पर प्रचार अभियान में ध्यान देने वाली बात यह है कि कोई बड़े स्टार प्रचारक एनडीए से नहीं पहुंचे, जबकि महागठबंधन ने बड़े नेताओं की मौजूदगी से अपने प्रचार को मजबूती दी। इसने मतदाताओं के बीच चर्चा को और बढ़ा दिया है कि उम्मीदवार की अपनी लोकप्रियता ही यहां निर्णायक भूमिका निभाएगी। मतदाता अब इस सीट पर निर्णय लेने के लिए तैयार हैं। सवाल यह है कि झंझारपुर की जनता किसे अपना समर्थन देगी विकास और प्रशासनिक अनुभव वाले नीतीश मिश्रा को, सामाजिक समीकरण और गठबंधन शक्ति वाले रामनारायण यादव को, या युवाओं और पलायन रोकने के मुद्दे पर आधारित केशव चंद्र भंडारी को।
झंझारपुर विधानसभा का यह चुनाव यह तय करेगा कि स्थानीय विकास, रोजगार और सामाजिक समीकरण किस दिशा में आगे बढ़ेंगे। इस सीट की परिणाम जनता की पसंद और उनके मुद्दों की प्राथमिकता पर आधारित होगी। सभी तीन उम्मीदवार अपने-अपने दावे और रणनीति के साथ मैदान में हैं, लेकिन अंतिम फैसला मतदाताओं की सोच और उनकी आकांक्षाओं पर निर्भर करेगा। इस प्रकार झंझारपुर विधानसभा 2025 का चुनाव केवल एक सीट की लड़ाई नहीं है, बल्कि पूरे बिहार की राजनीतिक दिशा और स्थानीय विकास के मुद्दों की पहचान भी