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11-Nov-2025 02:36 PM
By Dhiraj Kumar Singh
कभी नक्सल आतंक के साए में दहशत से कांपता रहा बिहार का जमुई ज़िला आज एक नई कहानी लिख रहा है। ज़िले के सबसे संवेदनशील इलाक़ों में से एक चोरमारा गांव में 25 साल बाद मतदान हो रहा है। इस बार यहां के लोग डर के साए से निकलकर लोकतंत्र के उत्सव में शामिल हो रहे हैं।
यह वही गांव है जहां कभी नक्सलियों का दबदबा था। गांव में न पुलिस जाती थी, न अधिकारी, और न ही विकास की कोई किरण पहुंचती थी। लेकिन आज तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है। पहली बार गांव के लोग अपने ही गांव के प्राथमिक विद्यालय में बने मतदान केंद्र संख्या 220 पर वोट डाल रहे हैं बिना किसी डर या खतरे के।
डर से लोकतंत्र तक का सफर
कभी इस गांव के नाम से आसपास के इलाके दहशत में रहते थे। नक्सल कमांडर बलेश्वर कोड़ा का यहां पर राज चलता था। उनकी दहशत इतनी थी कि लोग रात में बाहर निकलने से भी कतराते थे। लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। लगातार चल रहे सुरक्षा अभियानों और केंद्र व राज्य सरकार के प्रयासों से चोरमारा गांव को नक्सल मुक्त घोषित किया गया है।
पहले यहां के ग्रामीणों को 22 किलोमीटर दूर बारहट प्रखंड के कोयवा स्कूल तक जाकर मतदान करना पड़ता था। सफर लंबा और खतरनाक होता था — रास्ते में बारूदी सुरंगों का डर, जंगलों में घात लगाए बैठे नक्सलियों की निगाहें, और असुरक्षा की गहरी छाया।
अब वही लोग अपने ही गांव में, उसी जगह वोट डाल रहे हैं जहां कभी नक्सलियों ने स्कूल भवन को ब्लास्ट कर उड़ा दिया था। आज उसी स्कूल में लोकतंत्र का उत्सव मनाया जा रहा है — यह बदलाव की सबसे बड़ी मिसाल है।
“अब हम डर में नहीं, आज़ादी में जी रहे हैं”
फर्स्ट बिहार झारखंड न्यूज़ की ग्राउंड रिपोर्ट में संजय कोड़ा, नक्सल कमांडर बलेश्वर कोड़ा के बेटे ने कहा —“हां, मेरे पिता नक्सल कमांडर थे। उस समय गांव में बहुत डर था। कोई नहीं जानता था अगला शिकार कौन बनेगा। लेकिन अब मैं खुद मतदान केंद्र तैयार कर रहा हूं। हमें गर्व है कि अब हम आज़ादी से वोट डाल सकते हैं।”
बलेश्वर कोड़ा की बहू, जो अब गांव की प्राथमिक स्कूल में टीचर हैं, कहती हैं —“हम लोग आतंक में जीते थे। लेकिन कल हम सब वोट डालेंगे — हमारे लिए ये किसी त्योहार से कम नहीं। मेरे ससुर ने बाद में सरेंडर किया था, अब हम सब चाहते हैं कि गांव में शिक्षा और विकास बढ़े।”
बलेश्वर की पत्नी ने कहा — “जब मेरे पति नक्सल कमांडर थे, तब हम रोज़ डर में जीते थे। कई हत्याएं अपनी आंखों से देखी हैं। पुलिस भी परेशान करती थी। पर अब हालात बदल गए हैं। कल मैं अपने बच्चों के साथ वोट डालूंगी — पहली बार। बहुत खुशी है।”
महिलाओं में उत्साह, गांव सजा लोकतंत्र के रंगों में
गांव की महिलाएं और बच्चे मतदान केंद्र की सजावट में जुटे हैं। कोई फूलों की माला लगा रहा है, तो कोई तिरंगा झंडा। महिलाओं ने कहा — “पहले हमें 22 किलोमीटर दूर जाकर वोट डालना पड़ता था, वो भी डरते-डरते। अब पहली बार गांव में ही वोट डाल रहे हैं। ये हमारे लिए त्योहार है।” अब गांव में सड़क, पानी, बिजली और मोबाइल नेटवर्क तक पहुंच चुका है। लोग कहते हैं —“नीतीश सरकार ने काम किया है, लेकिन अब और विकास चाहिए।”
सीआरपीएफ की सर्च ऑपरेशन से सुरक्षा पुख्ता
भले ही चोरमारा गांव को अब नक्सल मुक्त घोषित कर दिया गया हो, लेकिन सुरक्षा एजेंसियां सतर्क हैं। सीआरपीएफ और राज्य पुलिस के जवानों ने इलाके में सघन तलाशी अभियान चलाया। गांव के हर कोने की जांच की जा रही है ताकि मतदान शांतिपूर्ण तरीके से हो सके। स्थानीय प्रशासन ने बताया कि गांव में भारी सुरक्षा बलों की तैनाती की गई है। ड्रोन से निगरानी रखी जा रही है और मतदान केंद्र के चारों ओर सुरक्षाबलों की लगातार गश्त जारी है।
नया भारत — नक्सल मुक्त भारत
कभी बंदूक की गोलियों से गूंजने वाला यह इलाका आज लोकतंत्र के जयघोष से भर गया है। गृहमंत्री अमित शाह ने जिस “नक्सल मुक्त भारत” का संकल्प लिया था, उसकी झलक अब चोरमारा जैसे गांवों में दिख रही है। फर्स्ट बिहार झारखंड न्यूज़ की यह ग्राउंड रिपोर्ट सिर्फ एक गांव की नहीं, बल्कि उस बदलते भारत की कहानी है जहां डर की जगह अब विश्वास ने ले ली है, और बंदूक की जगह बैलेट ने।