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26-Jun-2025 02:47 PM
By First Bihar
Success Story: बिहार की सांस्कृतिक विरासत से गहराई से जुड़ी, 17 वर्षीय शाम्भवी शर्मा, जो वर्तमान में दिल्ली स्थित संस्कृत स्कूल की कक्षा 12 की छात्रा है। यह न केवल एक प्रतिभाशाली शास्त्रीय नृत्यांगना हैं, बल्कि उन्होंने कुचिपुड़ी नृत्य को मानसिक और भावनात्मक आरोग्य के साधन के रूप में स्थापित करने का अनूठा प्रयास भी किया है। पद्मश्री से सम्मानित गुरुओं राजा और राधा रेड्डी के संरक्षण में 9 वर्षों तक प्रशिक्षित शाम्भवी ने अपने नृत्य प्रोजेक्ट ‘नृत्यमृत’ के माध्यम से इस दिव्य कला को चिकित्सा, जागरूकता और समाजसेवा का माध्यम बना दिया है।
दरअसल, ‘नृत्यमृत’ केवल एक प्रदर्शन मंच नहीं, बल्कि एक अंतःकरणीय अभियान है, जिसमें शाम्भवी शर्मा बच्चों, रोगियों और समाज के संवेदनशील वर्गों के लिए कुचिपुड़ी नृत्य को एक उपचारात्मक और अभिव्यंजक साधन के रूप में प्रस्तुत करती हैं। भाव-भंगिमाओं और मुद्राओं में संप्रेषित कथाओं के ज़रिए यह शैली न केवल दर्शकों का मनोरंजन करती है, बल्कि उन्हें आत्मिक संतुलन और मानसिक सुकून भी प्रदान करती है। G20 समिट 2023 के दौरान राजगीर, बिहार में भारत की सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व कर चुकीं शाम्भवी ने इस मंच से विश्व को यह संदेश दिया कि भारतीय शास्त्रीय नृत्य केवल परंपरा नहीं, बल्कि एक जीवंत उपचार पद्धति है।
एक विशेष मोहल्ला-सत्र के दौरान, शाम्भवी ने दिल्ली की एक बस्ती में बिहार की सांस्कृतिक छाया को नृत्य के माध्यम से जीवंत किया। इस कार्यक्रम में 13 वंचित बच्चों को कुचिपुड़ी नृत्य की बुनियादी मुद्राओं जैसे 'समभंग' और 'त्रिभंग' से परिचित कराया गया। संगीत की मधुर लहरों के बीच इन बच्चों ने अपने भीतर के भावों को नृत्य के माध्यम से व्यक्त करना सीखा। एक इंस्टाग्राम रील में इस सत्र की झलक 500 से अधिक बार देखी जा चुकी है, जो दर्शाता है कि कैसे कला समाज में संवेदना जगा सकती है।
10 वर्षीय गरिमा ने 'शांति मुद्रा' के माध्यम से अपने भीतर की बेचैनी को शांत किया, जबकि 12 वर्षीय खुशी ने 'आशा मुद्रा' को अपनी दिवाली की यादों से जोड़ा। अंत में जब बच्चों को अपने अनुभव चित्रों में उतारने के लिए कहा गया, तो उनके रंग-बिरंगे चित्र इस बात का प्रमाण बन गए कि नृत्य उनके लिए शब्दहीन अभिव्यक्ति बन चुका था।
शाम्भवी की यह यात्रा आर्मी बेस अस्पताल, दिल्ली तक पहुँची, जहाँ उन्होंने ‘दशावतार’ पर आधारित एक विशेष कुचिपुड़ी प्रस्तुति दी। यह प्रस्तुति किसी कथा से अधिक एक 'चिकित्सकीय संवाद' बन गई। पताका मुद्रा की शांत लहरों से लेकर शिखर की शक्ति और कपित्था की करुणा तक हर मुद्रा रोगियों के अंतर्मन को छू गई। मरीजों ने इसे अपनी स्मृतियों और भावनाओं से जोड़ा।
38 वर्षीय श्रीमती सरोज को यह प्रस्तुति अपने गाँव की पूजा की याद दिला गई, जबकि पूर्व सैनिक श्रीमती सुरेश ने इसे एक आंतरिक ऊर्जा का संचार बताया। एक नर्स द्वारा करवाए गए अनौपचारिक सर्वेक्षण में 83% मरीजों ने सत्र के बाद खुद को अधिक शांत और भावनात्मक रूप से सशक्त महसूस किया। 'नृत्यमृत' द्वारा अभी तक 150+ प्रतिभागियों पर किए गए सामूहिक विश्लेषण में 90% प्रतिभागियों ने अपने मानसिक स्वास्थ्य में सकारात्मक बदलाव दर्ज किया।
शाम्भवी न केवल एक कलाकार हैं, बल्कि संस्कृत स्कूल में सांस्कृतिक परिषद की अध्यक्ष के रूप में भी नेतृत्व कर रही हैं। उनके प्रोजेक्ट ‘Unruly Art’ के माध्यम से उन्होंने रचनात्मक अभिव्यक्ति को शिक्षा और उपचार से जोड़ा है। उनकी सोच यह मानती है कि कला केवल मंच की शोभा नहीं, बल्कि समाज के सबसे कोमल हिस्सों को छूने और सशक्त बनाने की एक साधना है।
शाम्भवी शर्मा की नृत्ययात्रा बिहार की सांस्कृतिक गहराई से निकलकर दिल्ली की विविधता और समाज के उपचारात्मक स्पर्श तक पहुंचती है। उनका काम यह सिद्ध करता है कि नृत्य केवल ‘प्रदर्शन’ नहीं, बल्कि ‘प्रेरणा’, ‘प्रेरणा’ से ‘चिकित्सा’, और अंततः ‘मानवीय जुड़ाव’ का एक सेतु है। कुचिपुड़ी की हर मुद्रा उनके भीतर बसे ग्राम्य जीवन, शिक्षकों के आशीर्वाद और समाज के प्रति उनके समर्पण की प्रतिध्वनि है।