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11-Aug-2025 09:43 AM
By First Bihar
Success Story: जब मेहनत और लगन से कोई काम किया जाय तो सफलता जरुर मिलती है।उत्तर प्रदेश कैडर की आईएएस अधिकारी मेधा रूपम इन दिनों देशभर में चर्चा का विषय बनी हुई हैं। हाल ही में उन्हें नोएडा की पहली महिला जिलाधिकारी (DM) नियुक्त किया गया है, जो प्रशासनिक सेवाओं में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी का एक अहम उदाहरण है। खास बात यह है कि मेधा के पिता ज्ञानेश कुमार गुप्ता, जो एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी रह चुके हैं, हाल ही में भारत के चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त हुए हैं।
बता दें कि1988 बैच के केरल कैडर के अधिकारी ज्ञानेश कुमार मूल रूप से आगरा के रहने वाले हैं और वे अपने सख्त प्रशासनिक फैसलों व अनुच्छेद 370 हटाने जैसे ऐतिहासिक फैसलों के दौरान गृह मंत्रालय में सचिव की भूमिका के लिए जाने जाते हैं। मेधा रूपम का सफर भी किसी प्रेरणादायक कहानी से कम नहीं रहा। करियर की शुरुआत उन्होंने एक प्रतिभाशाली शूटिंग खिलाड़ी के रूप में की थी। केरल स्टेट शूटिंग चैंपियनशिप में तीन गोल्ड मेडल जीतकर उन्होंने राज्य का रिकॉर्ड तोड़ दिया था। लेकिन पिता की प्रेरणा और मार्गदर्शन ने उनके करियर की दिशा बदली और उन्हें प्रशासनिक सेवा की ओर मोड़ा। कड़ी मेहनत और समर्पण से उन्होंने यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा 2014 में 10वीं रैंक हासिल की और उसी वर्ष यूपी कैडर से आईएएस बनीं।
उनकी पहली तैनाती बरेली में सहायक मजिस्ट्रेट के रूप में हुई। इसके बाद उन्होंने मेरठ और उन्नाव में ज्वाइंट मजिस्ट्रेट रहते हुए भी अपने शूटिंग के जुनून को नहीं छोड़ा और स्वर्ण पदक जीतती रहीं। उन्होंने यह साबित कर दिया कि एक ही समय में दो क्षेत्रों में उत्कृष्टता हासिल करना संभव है। लखनऊ में महिला कल्याण विभाग की विशेष सचिव और यूपीएएएम की संयुक्त निदेशक के रूप में काम करने के बाद उन्हें बाराबंकी में मुख्य विकास अधिकारी और फिर हापुड़ की डीएम के रूप में नियुक्त किया गया। उनकी प्रशासनिक कार्यशैली को कुशल, संवेदनशील और सख्त निर्णयों से परिभाषित किया जाता है।
मेधा के पति मनीष बंसल भी 2014 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। पंजाब में जन्मे मनीष ने एमटेक की पढ़ाई की है और दोनों की मुलाकात मसूरी के प्रशासनिक प्रशिक्षण के दौरान हुई थी। वहीं से दोनों का साथ शुरू हुआ और आज वे दो बच्चों के साथ परिवार और प्रशासनिक जीवन के बीच बेहतरीन संतुलन बनाए हुए हैं। मेधा रूपम कहती हैं कि उनके जीवन में लिए गए हर बड़े फैसले में उनके पिता का मार्गदर्शन निर्णायक रहा है। पिता और बेटी की यह जोड़ी एक चुनाव आयुक्त और दूसरी जिलाधिकारी न सिर्फ प्रशासनिक सफलता की मिसाल है बल्कि भावी पीढ़ियों के लिए प्रेरणा भी है। एक ओर जहां पिता राष्ट्रीय लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पारदर्शिता देने की जिम्मेदारी निभा रहे हैं, वहीं बेटी जिला स्तर पर शासन की नई परिभाषा गढ़ रही हैं।